वैसे तो पूरे भारतवर्ष में गणेशोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है पर महाराष्ट्र में इस त्योहार को बहुत ही जोर-शोर से मनाया जाता है. गणेश जी को विघ्नों को हरने वाला बताया गया है. इसलिए यह मान्यता है कि इन दस दिनों के दौरान यदि श्रद्धा एवं विधि-विधान के साथ गणेश जी का पूजन किया जाए तो गणेश भगवान आप के जीवन की समस्त बाधाओं का अन्त कर देते हैं तथा अपने भक्तों पर सौभाग्य, समृद्धि एवं सुखों की बारिश करते हैं.
दस दिनों तक चलने वाला यह त्योहार हिन्दुओं की आस्था का एक ऐसा अद्भुत प्रमाण है जिसमें कि शिव-पार्वती-नंदन श्री गणेश की प्रतिमा को घरों, मन्दिरों अथवा पंडालों में साज-श्रृंगार के साथ चतुर्थी वाले दिन स्थापित किया जाता है. दस दिन तक अर्थात अनंत-चतुर्दशी तक गणेश प्रतिमा का नित्य विधिपूर्वक पूजन किया जाता है, ग्यारहवें दिन इस प्रतिमा को जलाशय जैसे कि नदी अथवा सागर आदि में विसर्जित कर दिया जाता है.
महाराष्ट्र में तो इस दिन विशेष आयोजन होते हैं तथा जलाशयों पर उमड़े जनसैलाब व उनकी आस्था को देखकर मन भावविभोर हो उठता है. इस दिन समस्त श्रद्धालु गणेश-प्रतिमा को हाथों, रथों और वाहनों पर उठा कर बहुत धूम-धाम से गाजों-बाजों के साथ इसे प्रवाहित करने के लिए पैदल ही जलाशयों की ओर चल पड़ते हैं. ऊंची आवाज में ‘गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया’ जैसे नारे लगाते हैं. इसका अर्थ होता है कि मंगल करने वाले, अगले बरस जल्दी आना.
भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश जी के सिद्धि विनायक स्वरूप का पूजन होता है. शास्त्रों की मान्यता अनुसार इस दिन गणेश जी दोपहर में अवतरित हुए थे. इसीलिए यह गणेश चतुर्थी विशेष फलदायी बताई गई है. इसी कारण सारे देश में यह त्योहार गणेशोत्सव के नाम से प्रसिद्ध है. भारत में यह त्योहार प्राचीन काल से ही हिंदू परिवारों में मनाया जाता है. इस दौरान देश में वैदिक सनातन पूजा पद्धति से अर्चना के साथ-साथ अनेक लोक सांस्कृतिक रंगारंग कार्यक्रम भी होते हैं जिनमें नृत्यनाटिका, रंगोली, चित्रकला प्रतियोगिता, हल्दी उत्सव आदि प्रमुख होते हैं.
श्री गणेशजी को विघ्न विनाशक माना गया है. गणेशजी को देवसमाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है. भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को मध्याह्न के समय गणेशजी का जन्म हुआ था.
गणेशजी को बुद्धि का देवता भी माना जाता है. गणेशजी का वाहन चूहा है. इनकी दो पत्नियां भी हैं जिन्हें रिद्धि और सिद्धि नाम से जाना जाता है. इनका सर्वप्रिय भोग मोदक यानी लड्डू है. माना जाता है कि इस दिन रात्रि में चंद्रमा का दर्शन करने से मिथ्या कलंक लग जाता है.
गणेशोत्सव सारे विश्व में बड़े ही हर्ष एवं आस्था के साथ मनाया जाने लगा है. घर-घर में गणेशजी की पूजा होने लगी है. लोग मोहल्लों, चौराहों पर गणेशजी की स्थापना, आरती, पूजा करते हैं. बड़े जोरों से गीत बजाते, प्रसाद बांटते हैं. अनंत चतुर्दशी के दिन गणेशजी की मूर्ति को पूरे विधि विधान के साथ समुद्र, नदी या तालाब में विसर्जित कर अपने घरों को लौट आते हैं.
ये तो आप जानते ही होंगे कि गणेशजी का महत्व भारतीय धर्मों में सर्वोपरि है. उन्हें हर नए कार्य, हर बाधा या विघ्न के समय बड़ी उम्मीद से याद किया जाता है और दुःखों, मुसीबतों से छुटकारा पाया जाता है. गणेशोत्सव में प्रतिष्ठा से विसर्जन तक विधि-विधान से की जाने वाली पूजा एक विशेष अनुष्ठान की तरह होती है जिसमें वैदिक एवं पौराणिक मंत्रों से की जाने वाली पूजा दर्शनीय होती है. महाआरती और पुष्पांजलि का नजारा तो देखने योग्य होता है.
गणेश चतुर्थी में व्रत का विधान
इस दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त हो जाए. इसके बाद 'मम सर्वकर्मसिद्धये सिद्धिविनायक पूजनमहं करिष्ये' मंत्र से संकल्प लें. इसके बाद सोने, तांबे, मिट्टी अथवा गोबर से गणेशजी की प्रतिमा बनाए. गणेशजी की इस प्रतिमा को कोरे कलश में जल भरकर मुंह पर कोरा कपड़ा बांधकर उस पर स्थापित करें. इसके बाद मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाकर उनका पूजन करें और आरती करें. फिर दक्षिणा अर्पित करके इक्कीस लड्डुओं का भोग लगाए. इनमें से पांच लड्डू गणेशजी की प्रतिमा के पास रखकर शेष ब्राह्मणों में बांट दें.
जो गणेश व्रत या पूजा करता है उसे मनोवांछित फल तथा श्रीगणेश प्रभु की कृपा प्राप्त होती है. पूजन से पहले नित्यादि क्रियाओं से निवृत्त होकर शुद्ध आसन में बैठकर सभी पूजन सामग्री को एकत्रित कर पुष्प, धूप, दीप, कपूर, रोली, मौली लाल, चंदन, मोदक आदि एकत्रित कर क्रमश: पूजा करें. भगवान श्रीगणेश को तुलसी दल और तुलसी पत्र नहीं चढ़ाना चाहिए. उन्हें, शुद्ध स्थान से चुनी हुई दूर्वा को धोकर ही चढ़ाना चाहिए.
श्रीगणेश भगवान को मोदक यानी लड्डू अधिक प्रिय होते हैं इसलिए उन्हें देशी घी से बने मोदक का प्रसाद ही चढ़ाना चाहिए. ऐसा करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है. श्रीगणेश के अलावा शिव और गौरी, नन्दी, कार्तिकेय सहित सम्पूर्ण शिव परिवार की पूजा षोड़षोपचार विधि रूप से करना सर्वोत्तम माना जाता है.
शास्त्रों के अनुसार श्रीगणेश की प्रतिमा बनाकर उसे प्राण-प्रतिष्ठित कर पूजन-अर्चन के बाद विसर्जित कर देना चाहिए. हां याद रहे भजन-कीर्तन आदि आयोजनों और सांस्कृतिक आयोजनों के बाद प्रतिमा का विसर्जन करना नहीं भूलना चाहिए.
गणेश चतुर्थी व्रत फल
वस्त्र से ढंका हुआ कलश, दक्षिणा तथा गणेश प्रतिमा आचार्य को समर्पित करके गणेशजी के विसर्जन का उत्तम विधान माना गया है. गणेशजी का यह पूजन करने से बुद्धि और ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति तो होती ही है, विघ्न-बाधाओं का भी समूल नाश हो जाता है.
गणेश जी को गजानन कहते हैं इसका संकेत है हाथी की तरह धैर्यवान और बुद्धिमान होना पड़ेगा.
गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहते हैं. अतः इसके प्रतीक के रूप में उनके हाथ में परशुदंड भी है.
गणेश जी रिद्धि-सिद्धि के स्वामी हैं. अतः राष्ट्र में सुख-संपदा धन-धान्य की कमी न होने पाती है.
गणेश चतुर्थी व्रत में सावधानियां
वैसे तो भगवान की पूजा कभी भी की जा सकती है परन्तु गणेशजी की पूजा सायंकाल के समय की जाए तो बेहतर माना जाता है. पूजन के बाद सर झुकाकर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए और ब्राह्मणों को भोजन कराकर दक्षिणा जरूर देनी चाहिए. सर झुकाकर चंद्रमा को अर्घ्य देने के पीछे भी कारण व्याप्त है. माना जाता है कि जहां तक संभव हो, इस दिन चंद्रमा के दर्शन नहीं करने चाहिए.
भूल वस या कारण वस इस दिन चंद्रमा के दर्शन हो जाते हैं तो आप कलंक के भागी बन जाते हैं. फिर भी घबराएं नहीं! हमारे शास्त्रों में इस तरह की भूल बस होने वाली घटनाओं से मुक्ति पाने के लिए विधान भी मौजूद हैं. ऐसा होने पर गणेश चतुर्थी व्रत कर कलंक से मुक्ति पाई जा सकती है.
गणेश-पूजन में यंत्रों का महत्व
गणेश-पूजन के इन दस दिनों के दौरान गणपति पूजन में इन चुने हुए यंत्रों को गणेश-प्रतिमा के साथ पूजने से निश्चित तौर पर गणपति जी प्रसन्न होकर आपके जीवन को सुख-समृद्धि एवं सौभाग्य से परिपूर्ण कर देते हैं. ऐसा इन यंत्रों के विशेष महत्व के कारण होता है.
क्या है गणपति यन्त्र?
चाहे किसी नए व्यापार की शुरुआत हो, भवन-निर्माण का आरम्भ हो या आपकी किसी किताब, पेन्टिंग या यात्रा का शुभारम्भ हो, गणपति यन्त्र आपके कार्य में आने वाली हर प्रकार की बाधा से आपकी रक्षा करता है. जो इस यन्त्र का पूजन करता है वह अपने हर कार्य में सफल रहता है. इस यन्त्र को आप अपने पूजा के स्थान पर स्थापित कर सकते हैं.
ग्यारह-मुखी रूद्राक्ष का क्या है महत्व?
ग्यारह-मुखी रूद्राक्ष पहनने वाले को विधा एवं ज्ञान का विशेष वरदान मिलता है. इसे पहनने से विभिन्न प्रकार के शारीरिक एवं मानसिक रोगों का भी निदान होता है. जिन लोगों के साथ सदैव ही कठिनाइयां आती हैं, जो लोग धैर्यशील नहीं हैं, जो लोग अपमानित होते रहते हैं व उदास रहते हैं या गलत निर्णय लेते हैं, उन सभी के लिए ग्यारह-मुखी रूद्राक्ष माला जीवनदायिनी बूटी का काम करती है. इस माला को धारण करने से आपकी मानसिक शक्तियों का विकास होता है तथा आप सदैव प्रसन्नता का अनुभव करते हैं. मंगलकारी है गौरी-शंकर रूद्राक्ष
गौरी शंकर रूद्राक्ष माला आप पर और आपके अपनों पर गणपति जी की कृपा की बरसात कर देगी. इस रूद्राक्ष को एक बन्द बक्से में रखकर अपने पूजा के स्थल पर अथवा मंदिर में रख दें तथा पूजा-अर्चना के दौरान इस रूद्राक्ष का भी पूजन कर लें और कुछ ही दिनों में देखें कि कैसे आप के जीवन में मंगल ही मंगल होता है. चाहें तो आप इसे धारण भी कर सकते हैं. ऐसा माना जाता है कि गौरी-शंकर रूद्राक्ष का पूजन और धारण करने वाले को किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता.