जब से बिहार में बीजेपी सत्ता से बाहर हुई है, बीजेपी के युवा महासचिव धर्मेंद्र प्रधान की चर्चा पार्टी के हर छोटे-बड़े नेता की जुबां पर है. प्रधान की यह महासचिव के रूप में दूसरी पारी है.
इससे पहले जब वे नितिन गडकरी की टीम में महासचिव थे, तो गडकरी की खास पसंद होने की वजह से उनका राजनैतिक ग्राफ तेजी से बढ़ा. लेकिन नेताओं की जुबां पर चर्चा की वजह उनकी दूसरी पारी नहीं, बल्कि उन पर लगा 'अपशकुनि महामंत्री' का टैग है.
बिहार बीजेपी में हुई बगावत और कुछ विधायकों के टूट कर जेडीयू में जाने की खबर से प्रधान परेशान हैं और उन्होंने हर हाल में विधायकों को टूटने से रोकने के निर्देश बिहार प्रदेश के नेताओं को दिया है.
दरअसल इस युवा महासचिव को गडकरी ने कर्नाटक का प्रभारी बनाया, लेकिन येद्दियुरप्पा पार्टी से बाहर हो गए और अब दक्षिण में पहली बार खिला कमल मुरझा चुका है. जिसका असर लोकसभा चुनाव पर भी होने वाला है, क्योंकि 15वीं लोकसभा में बीजेपी की सर्वाधिक सीटें कर्नाटक से हैं. फिर उन्हें सत्ताधारी राज्य उत्तराखंड का प्रभारी बनाया गया, लेकिन जोशीले महासचिव भी पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी थाम नहीं पाए और बीजेपी की खंडूरी सरकार सिर्फ सत्ता से बाहर नहीं हुई, बल्कि तात्कालीन मुख्यमंत्री खंडूरी भी अपना चुनाव हार गए.
इसी तरह गडकरी ने उन्हें झारखंड का प्रभारी बनाया, लेकिन यहां भी सिर मुंडाते ही ओले पड़े और अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में चल रही गठबंधन सरकार डूब गई. झारखंड में राष्ट्रपति शासन लग गया और अब झामुमो ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना ली है. हालांकि बिहार की सत्ता अब तक बची हुई थी. लेकिन राजनाथ सिंह की टीम में महासचिव बनने के बाद उन्हें दुबारा बिहार का प्रभारी बनाया गया, लेकिन वहां बीजेपी-जेडी यू गठबंधन टूट गया.
खुद प्रधान के मूल राज्य ओडि़शा में पार्टी गर्त में जा रही है और एक खेमा उनकी मनमानी की शिकायत राजनाथ सिंह से कर चुका है. लेकिन इस विरोध के बावजूद उन्हें राजनाथ ने महासचिव बना दिया. लेकिन बिहार की सत्ता जाने के बाद बीजेपी में नेता यही चुटकी ले रहे हैं, 'अब कहां की लुटिया डुबोएंगे.' वैसे प्रधान के कौशल पर पार्टी को शक नहीं है, लेकिन शायद उनकी किस्मत बार-बार दगा दे रही है, तो बेचारे प्रधान क्या करें?