आज तक ऐसी कोई तकनीक विकसित नहीं की जा सकी है, जिससे भूकंप आने के पहले ही इसका पता लगाया जा सके. भूकंप आ जाने पर भले ही वैज्ञानिक रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता मापते हैं. रिसर्च में ऐसा पाया गया है कि पशु-पक्षियों को भूकंप का आभास पहले ही हो जाता है.
दरअसल, धरती ऊपर से जितनी शांत दिखती है, वैसी शांति इसके अंदर के भागों में नहीं है. पृथ्वी का केंद्रीय भाग द्रव से बना है, जिसके ऊपर कई टेक्टोनिक प्लेट्स तैरती रहती हैं. जब ये प्लेट्स आपस में टकराती हैं, तो धरती की सतह की ओर भी तरंगें पैदा होती है, जिससे भूकंप आता है.
इंसानों में उन तरंगों को महसूस करने की क्षमता नहीं होती, जबकि पशु-पक्षी या कुछ अन्य जीव इसे पहले ही भांप जाते हैं. कुत्ते, बिल्ली, हाथी, गाय-भैस जैसे जानवर भूकंप की तरंगों को महसूस करके बैचैनी से भागने लगते हैं. खूंटे से बंधे जानवर रस्सी तोड़कर भागने की कोशिश करते पाए गए हैं.
बिलों में रहने वाले सांप और चूहे जैसे जीव भी भूकंप की तरंगों को पहले महसूस कर लेते हैं. भूकंप के खतरे का आभास होते ही ये बिल से बाहर आ जाते हैं. ऐसा पाया गया है कि मछलियों और मेढकों को भी भूकंप का आभास पहले ही हो जाता है.
दरअसल, एक खास फ्रीक्वेंसी से ऊपर या नीचे की तरंगों को इंसान सुन या महसूस नहीं कर पाता है. सुनने की यह क्षमता अलग-अलग जीवों में अलग-अलग होती है. यही वजह है कि भूकंप का आभास किसी को पहले हो जाता है, तो किसी को काफी देर से.