सरकार ने डीजल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करने का फैसला ले लिया है. सरकार के इस कदम से डीजल के दाम में शनिवार-रविवार आधी रात से 3.37 रुपये प्रति लीटर की कटौती हो जाएगी. डीजल के दाम में पांच साल में यह पहली कटौती है. इससे पहले 29 जनवरी 2009 को डीजल में दो रुपये की कटौती की गई थी
डीजल के दाम में पिछली बार एक सितंबर को 50 पैसे की वृद्धि की गई थी और जनवरी 2013 के बाद से इसमें 19 किस्तों में 11.81 रुपये लीटर की वृद्धि हो चुकी है. डीजल के दाम नियंत्रणमुक्त करने का इससे अच्छा अवसर नहीं हो सकता था, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम चार साल के निचले स्तर पर हैं. उधर दो प्रमुख राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हो चुका है.
भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने हाल ही में सरकार से इस मौके का फायदा उठाने को कहा था. ऐसा समय जब मुद्रास्फीति पांच साल के निचले स्तर पर है और तेल कंपनियां पहली बार डीजल पर मुनाफा कमा रही हैं. ब्रेंट क्रूड तेल के दाम इस साल 25 फीसदी टूटकर लगभग 83 डॉलर प्रति बैरल पर आ गए हैं और इनके निकट भविष्य में 100 डॉलर प्रति बैरल का स्तर छूने का अनुमान नहीं है.
उल्लेखनीय है कि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने 2010 में पेट्रोल की कीमतों को नियंत्रण मुक्त कर दिया था. इसके साथ ही उसने पिछले साल जनवरी में डीजल के दाम में हर महीने 50 पैसे लीटर वृद्धि का फैसला किया था. पेट्रोल के दाम तब से कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों के हिसाब से ही तय होती हैं और अगस्त के बाद से इसमें पांच बार कमी की जा चुकी है.
डीजल बिक्री से होने वाला नुकसान या अंडर रिकवरी समाप्त हो चुकी है और तेल कंपनियों को सितंबर के दूसरे पखवाड़े से मुनाफा होने लगा है. कंपनियों को इसकी बिक्री से होने वाला मुनाफा ओवर रिकवरी 3.56 रुपये प्रति लीटर तक पहुंच गया. कीमतों के नियंत्रण मुक्त होने का मतलब है कि सरकार एवं ओएनजीसी सहित सार्वजनिक तेल उत्खनन कंपनियां अब डीजल पर सब्सिडी नहीं देंगी.
वित्त मंत्री अरूण जेटली ने पेट्रोलियम सब्सिडी के लिए बजट में 63,400 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है जो कि पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 25 प्रतिशत कम है. लेकिन इस बार कच्चे तेल के दाम में गिरावट को देखते हुए सब्सिडी बिल बजट प्रावधान से दफपर निकलने की संभावना नहीं लगती. मूल रूप से पेट्रोल व डीजल के दाम अप्रैल 2002 में नियंत्रण मुक्त किया गए थे, जबकि एनडीए सरकार सत्ता में थी. लेकिन एनडीए शासनकाल के आखिरी दिनों में जब कच्चे तेल के दाम बढ़ने लगे, सरकारी नियंत्रण वाली प्रशासनिक मूल्य प्रणाली फिर से लौट आई.
इसके बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम जब आसमान छूने लगे तो मूल्यों पर सरकारी नियंत्रण बनाए रखा. हालांकि, जून 2010 में पेट्रोल के दाम नियंत्रण मुक्त कर दिए गए. उसके बाद से ही पेट्रोल के दाम नियंत्रणमुक्त हैं. तब सरकार ने डीजल के दाम भी नियंत्रण मुक्त करने का सिद्धांत: फैसला कर लिया था. देश की कुल ईंधन खपत में डीजल की खपत 43 प्रतिशत तक है.
जनवरी 2013 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने डीजल की बिक्री पर होने वाले नुकसान को धीरे धीरे छोटी-छोटी वृद्धि के साथ समाप्त करने का फैसला किया. इस तरह डीजल के दाम में आखिरी 50 पैसे की वृद्धि सितंबर 2014 में हुई, जिसके साथ डीजल बिक्री पर नुकसान पूरी तरह समाप्त हो गया.
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने शनिवार को कहा कि सरकार ने डीजल मूल्य नियंत्रण मुक्त करने का फैसला किया है. अब इसकी कीमत बाजार आधारित होगी. यह फैसला नई दिल्ली में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में लिया गया. जेटली ने संवाददाताओं से कहा, ‘डीजल की कीमत अब बाजार आधारित होगी और लागत के आधार पर उपभोक्ताओं को उसकी कीमत अदा करनी होगी.’
उन्होंने कहा, ‘पेट्रोल मूल्य की तरह ही डीजल की कीमत अब बाजार से तय होगी. पिछले कुछ महीनों में डीजल की कीमत 50 पैसे प्रति लीटर बढ़ाई जाती रही है.’ जेटली के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों और घरेलू मांग पर अब डीजल मूल्य निर्धारित होगी. उन्होंने ने कहा, ‘डीजल की कीमत अब नीचे आएगी, क्योंकि पिछले कुछ समय में वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई है.’
इनपुट: भाषा