सरकार ने डीजल के दाम को बाजार के हवाले कर के महंगाई का जोरदार इंतजाम कर दिया है क्योंकि डीजल से सिर्फ कार नहीं चलती है. दरअसल जिस तरह से डीजल की कीमत बढ़ने वाली है उससे महंगाई की मार आम आदमी की कमर तोड़ देगी.
अठन्नी पर मत जाइए. इस अट्ठन्नी में अट्ठावन दर्द का इंतज़ाम है. ये तो इस मर्ज़ के मज़े का आग़ाज है. आगे-आगे देखिए होता है क्या.
- ऐसा तो आपको लगता है कि 45 पैसा देके जान छूटी.
- लेकिन ये छूटी नहीं है, महंगाई की खूंटी है.
- एक बार लटक गए तो लटक गए.
आप पूछेंगे कैसे. तो पढि़ए....
- 45 पैसा तो अभी बढ़ाया है.
- लेकिन सच ये है कि ये बढ़ता रहेगा.
- तेल कंपनियों को खुली छूट दे दी है सरकार ने.
- कहने को अठन्नी-अठन्नी हर महीने लेकिन ये कंपनियां तय करेंगी
- जबतक 9 रुपया साठ पैसे की भरपाई ना हो जाए. इसके बाद का राम जाने. वैसे आप समझते ही होंगे. एक बार मुनाफे का मज़ा आ जाए तो जाता नहीं है.
अब इससे होगा क्या ये भी जान लीजिए...
- किराया-मालभाड़ा महंगा
- बस, टैक्सी, ऑटो महंगा
- माल भाड़ा महंगा तो फल-सब्ज़ी-दूध, किराने का सामान महंगा
- जब ट्रैक्टर महंगा चलेगा, पंपिंग सेट महंगा चलेगा, कोल्ड स्टोरेज महंगा चलेगा, थ्रेशर महंगा चलेगा और चलेगा ही, डीज़ल से चलते हैं भाई.
- सीधा मतलब ये कि अनाज महंगा.
- अब जब डीज़ल महंगा तो फैक्ट्रियों में बनने वाला लोहा महंगा, सीमेंट महंगा, ढुलाई महंगा मतलब मकान महंगा.
और ऐसा एक बार नहीं होगा. हर महीने होगा. नहीं होगा तो कब हो जाए इसका डर होगा लेकिन होगा ज़रूर.
अठन्नी तो दर्द की विंडो शॉपिंग है. असल शो रूम तो थोक में है. और ये ऐसा शो रूम में है जहां जाए बग़ैर किसी का गुज़ारा नहीं होगा. डीजल के थोक खरीदार तो अभी से तेल कंपनियों की कृपा पर टंग गए हैं, जो तय होगा देना होगा. और फिलहाल तय ये हुआ है कि हर लीटर पर 10 रुपया 81 पैसा ज्यादा देना होगा. मतलब जो डीज़ल आप दिल्ली में 47 रुपया 15 पैसा में खरीद रहे हैं उसी डीजल के लिए थोक ख़रीदारों को 57 रुपया 96 पैसा चुकाना होगा.
अब थोक ख़रीदारों का एक खाका भी देख लीजिए. हाहाकार की तस्वीर साफ हो जाएगी.
- भारतीय रेल.
- सरकारी ट्रांसपोर्ट सर्विस.
- बिजली बनाने वाली कंपनियां.
- जेनसेट का इस्तेमाल करने वाली विशाल फैक्ट्रियां.
अब आप अंदाज़ा लगा लीजिए कि क्या से क्या हो जाएगा. चलना मुश्किल हो जाएगा, रसोई भी और रास्ता भी.