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देह व्‍यापार वैध बनाने को लेकर अलग-अलग मत

मानव सभ्‍यता के विकास के साथ ही अस्तित्व में आए ‘देह व्यापार’ को कानूनी जामा पहनाने के बारे में उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी ने एक नयी सामाजिक बहस को जन्म दे दिया है.

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मानव सभ्‍यता के विकास के साथ ही अस्तित्व में आए ‘देह व्यापार’ को कानूनी जामा पहनाने के बारे में उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी ने एक नयी सामाजिक बहस को जन्म दे दिया है. समाज के विभिन्न वर्गों से जुड़े लोगों की इस बारे में अलग-अलग राय है और अपनी बात को सिद्ध करने के लिए उनके पास ठोस तर्क भी हैं. कुछ लोग इसे सभ्‍यता और संस्कृति के लिए खतरा बता रहे हैं और कुछ की राय में यह इन्सानी सोच में आए खुलेपन का प्रतीक है.

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष और वरिष्ठ कांग्रेस नेता गिरिजा व्यास का कहना है कि वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता देना समस्या का समाधान नहीं है. अगर सरकार वास्तव में इस पेशे में लगीं महिलाओं के लिए कुछ करना चाहती है तो सरकार को उनके पुनर्वास के लिए विशेष प्रयास करने होंगे.

व्यास ने कहा कि वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता देना महिलाओं को प्रताड़ित किए जाने का एक और माध्यम ही साबित होगा, इसलिए महिला आयोग इस टिप्पणी के पक्ष में नहीं है.

उल्लेखनीय है कि उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र सरकार के वेश्यावृत्ति के प्रति रुख पर टिप्पणी करते हुए पूछा था कि अगर सरकार इस पेशे पर पाबंदी नहीं लगा सकती तो इसे कानूनी मान्यता क्यों नहीं दे देती? इस मुद्दे पर न्यायमूर्ति दलबीर भंडारी और न्यायमूर्ति ए के पटनायक की पीठ ने सॉलीसीटर जनरल गोपाल सुब्रह्मण्यम से कहा कि जब आप कहते हैं कि यह विश्व का सबसे पुराना पेशा है और जब आप कानून से उस पर पाबंदी लगाने में सक्षम नहीं हैं तो आप उसे वैध क्यों नहीं बना देते.

इस मुद्दे पर पूर्व मिस यूनीवर्स युक्ता मुखी का मानना है कि वेश्यावृत्ति को वैधानिक मान्यता देना कोई विकल्प नहीं है. सरकार को इस पेशे में लगे लोगों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए, न कि इसको कानूनी जामा पहनाकर बढ़ावा देना. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि इसे वैधानिक मान्यता देना कोई बेहतर विकल्प नहीं है. इस पेशे में लगीं महिलाओं को व्यवसायिक प्रशिक्षण देना चाहिए और उनके लिए रोजगार के अवसर पैदा किए जाने चाहिए. युक्ता ने कहा कि कुछ लोगों को ऐसा लग सकता है कि वेश्यावृत्ति को कानूनी जामा पहनाने से बलात्कार जैसे अपराधों पर रोक लगाने में मदद मिलेगी, लेकिन इसमें संदेह है कि यह निश्चित तौर पर कारगर उपाय साबित होगा.

वेश्वावृत्ति को वैधानिक मान्यता देने की उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी पर ‘हंस’ के संपादक राजेन्द्र यादव ने कहा कि ऐसा किया जाना आज के परिवेश में बेहद आवश्यक है. यादव ने कहा कि जब तक यह गैर कानूनी है, यह समाज में तस्करी जैसी तमाम दूसरी अवैध गतिविधियों का हिस्सा बना रहेगा. इसे कानूनी रूप देने से कम से कम यह होगा कि जो पुलिस वाले इस पेशे में लगीं महिलाओं से हफ्ता वसूली करते हैं, या दूसरी तरह से उन्हें परेशान करते हैं, उससे मुक्ति मिलेगी. उन्होंने कहा कि महज वैधानिक मान्यता देने से बात नहीं बनेगी, सरकार को उनके बच्चों की शिक्षा, उनके स्वास्थ्य समेत अन्य दिक्कतों का समाधान करना चाहिए.

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वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता न देकर इस पेशे में लिप्त महिलाओं के सुधार के लिए सरकार के संभावित पहल करने से जुड़े प्रश्न पर यादव ने कहा कि सरकार ऐसा कुछ नहीं करेगी. देश में आदिवासी अपनी जमीनों के लिए लड़ रहे हैं, उनके लिए सरकार कुछ कर नहीं पा रही है. सरकार सिर्फ अहम मसलों को कानूनी मान्यता देकर हल करना चाहती है, जो हर मामले में संभव नहीं है.

इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस सी अग्रवाल ने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि वेश्यावृत्ति को कानूनी मान्यता दी जानी चाहिए. वहीं भारतीय जनता पार्टी किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य विनोद पाण्डेय का मानना है कि ऐसा करना बिल्कुल उचित नहीं होगा. उन्होंने ऐसे मुद्दों को पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण बताया.

पाण्डेय ने कहा कि यह बिल्कुल भी उचित नहीं है. भारत की सभ्‍यता और संस्कृति के लिहाज से यह अनुचित होगा. हमारे यहां पाश्चात्य संस्कृति को अपनाने की होड़ सी मची हुई है. हाल ही में समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटाना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है. उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि इस घृणित पेशे में लगी औरतों के पुनर्वास के लिए सरकार को काम करना चाहिए. उनके लिए बेहतर परिस्थिति और बेहतर जीवन का माहौल पैदा किए जाने की आवश्यकता है, न कि इसको कानूनी रूप देने की.

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