कोलकाता में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी बदले-बदले नजर आए. आम तौर पर खुद को पीएम पद का दावेदार जताने से परहेज न करने वाले मोदी ने एक सवाल के जबाव में ये जताने की कोशिश की कि उन्हें प्रधानमंत्री बनने की ख्वाहिश नहीं.
अब सवाल ये है कि पीएम पद की उम्मीदवारी को लेकर बीजेपी में जिस तरह से मोदी के लिए मुश्किलें खड़ी हो रही है, क्या उससे मोदी को लगने लगा है कि दिल्ली अभी दूर है.
सियासत की सारी कला में माहिर नरेंद्र मोदी के बोल बंगाल में बदल गए. गुजरात के बाद देश का कर्ज चुकाने की चाहत का इजहार कर ऐलानिया तौर पर खुद को दिल्ली के तख्त का दावेदार बताने को लेकर ताल ठोंकने वाले मोदी पीएम को लेकर हुए सवाल को चालाकी से टाल गए.
देशभर में गुजरात के सुशासन और विकास का ढ़ोल पीट कर देश का कर्ज उतारने की बात को बेहिचक कहने वाले मोदी आखिरकार खुल कर क्यों नहीं बोल रहे? सात रेसकोर्स की रेस में अकेले दौड़ रहे मोदी के लिए मुश्किल की आहट बीजेपी की तरफ से भी आई, तो संघ की तरफ से भी.
अहमदाबाद से लेकर दिल्ली तक. दिल्ली से लेकर कोलकाता तक. मोदी ने अपने भाषण में जिस तरह से खुद को इशारों-इशारों में भावी प्रधानमंत्री के तौर पर पेश किया, उससे भी बीजेपी के रणनीतिकारों की मुश्किलें बढ़ गई.
सूत्रों की माने तो रविवार पार्टी के चुनाव समिति की बैठक वरिष्ठ नेता अरुण जेटली ने चिंता जताई कि नमो नमो के ज्यादा जाप से कहीं अल्पसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण न हो जाए और कांग्रेस को इसका फायदा न मिल जाए, हालांकि कैमरे के सामने जेटली इसे मीडिया की करतूत करार देकर बच निकले लेकिन संकेत जरूर दे गए बिना आग के धुंआ नहीं उठता.
गुजरात की चमक दमक के दम पर मोदी खुद को विकास पुरुष के तौर पर पेश करने में परहेज नहीं कर रहे. विकास के मोर्चे पर देश का कायाकल्प कर देने वाले करिश्माई नेता की जिस छवि को बनाने की कोशिश में मोदी लगे हैं, उस पर बीजेपी के भीतर ही सवाल खड़े होने लगे हैं.
मिशन दिल्ली पर निकले मोदी का रास्ता काटने की तमाम कोशिश कर चुके जेडीयू ने भी मौका देख कर वार करने से परहेज नहीं किया. मोदी के बहाने बीजेपी पर चुटकी ली और सरकार बनाने के लिए एनडीए की अहमियत को जता दिया.