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स्कूल के स्तर से ही भेदभाव: प्रो. थोराट

यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन के पूर्व प्रमुख प्रो. सुखदेव थोराट का मानना है कि देश में स्कूली शिक्षा के स्तर से ही भेदभाव शुरू हो जाता है. वे इसकी मिसाल देते हुए कहते हैं कि दिल्ली में एमसीडी के स्कूल में बेहद गरीब बच्चे पढ़ते हैं.

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प्रोफेसर थोराट
प्रोफेसर थोराट

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यूनिवर्सिटी ग्रांट कमिशन के पूर्व प्रमुख प्रो. सुखदेव थोराट का मानना है कि देश में स्कूली शिक्षा के स्तर से ही भेदभाव शुरू हो जाता है. वे इसकी मिसाल देते हुए कहते हैं कि दिल्ली में एमसीडी के स्कूल में बेहद गरीब बच्चे पढ़ते हैं. केंद्र सरकार के कर्मचारियों के बच्चों के लिए केंद्रीय स्कूल हैं. सैनिक स्कूल और एयरफोर्स स्कूल सैनिकों के बच्चों के लिए हैं. मेधावी समझे जाने वाले बच्चों के लिए नवोदय स्कूल हैं. ब्यूरोक्रेट्स के बच्चों के लिए संस्कृति स्कूल है. इन स्कूलों में अमीर-गरीब के बीच भेद साफ दिखता है.

जामिया कलेक्टिव के पाक्षिक कार्यक्रम गुफ्तगू में प्रो. थोराट ने कहा कि भेदभाव बुनियादी तौर पर दलित और अल्पसंख्यकों की समस्या है. ऊंची जाति के लोगों को इसका ऐहसास नहीं होगा. उन्होंने विभिन्न शोधों का हवाला देते हुए कहा कि नौकरी के मामले में दोनों वर्गों के साथ भेदभाव किया जाता है. यही नहीं, ऊंची जाति के लोगों की कॉलोनी या बस्ती में मुसलमानों को किराये पर घर मिलना लगभग नामुमकिन होता है.

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सोच बदलनी होगी:
प्रो. थोराट ने कहा कि हालांकि कानून में सबको बराबरी का दर्जा हासिल है लेकिन सामाजिक सोच की वजह से उस पर अमल नहीं हो पाता. कानून की वजह से उच्च शिक्षा की संस्थाओं में हर जाति-वर्ग का प्रतिनिधित्व दिखता है, पर वहां भी भेदभाव साफ नजर आता है. देश के कई विश्वविद्यालयों में विभिन्न जातियों के लिए अलग-अलग हॉस्टल हैं. छात्र जाति, क्षेत्र और धर्म आधारित समूहों में बंटे हुए हैं.

भेदभाव और एक्सक्लूजन:
प्रो. थोराट ने कहा कि अब कुछ जगहों पर यह भेदभाव सेपरेशन और एक्सक्लूजन में बदल गया है. उन्होंने कहा कि भेदभाव उनके साथ होता है जो साथ में रहते हैं लेकिन सेपरेशन या एक्सक्लूजन में कोई संबंध या संपर्क नहीं रखा जाता. उन्होंने इसके लिए अहमदाबाद में मुसलमानों की अलग बस्तियों का हवाला दिया. वहीं हिंदु बहुल बस्तियों में मुसलमानों को नहीं रहने दिया जाता.

सीमित कारोबार:
यूजीसी के पूर्व प्रमुख ने कहा कि इस तरह के भेदभाव से दलित और मुसलमानों का कारोबार भी प्रभावित होता है. उन्होंने शोध के हवाले से कहा कि हरियाणा में ऊंची जाति के लोग दलितों को दूध नहीं बेचने देते थे. इसी तरह उनके दूसरे कारोबार का भी बहिष्कार होता है. वे अपने लोगों से माल लेने और उन्हें ही बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं. ऐसे में सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. वह कुल सरकारी खरीद में ऐसे वर्गों के लिए कोटा तय कर सकती है

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जामिया कलेक्टिव:
प्रो. थोराट जामिया कलेक्टिव की ओर से आयोजित डिस्क्रिमिनेशन अगेंस्ट दलित ऐंड माइनॉरिटी स्टुडेंट्स विषय पर बोल रहे थे. जामिया कलेक्टिव स्थानीय बुद्धिजीवियों की एक पहल है जिसके तहत अन्य कार्यक्रमों के अलावा हर 15 दिन पर गुफ्तगू में एक विशेषज्ञ को लेक्चर के लिए आमंत्रित किया जाता है, जिसे सुनने के लिए इलाके के स्टुडेंट्स, लेक्चरर-प्रोफेसर, प्रोफेशनल्स और पत्रकार मौजूद रहते हैं. लेक्चर के बाद विशेषज्ञ उनके सवालों के जवाब देते हैं. गुलमोहर एवेन्यू स्थित सैयदैन मंजिल के लॉन में आयोजित होने वाले गुफ्तगू में अब तक प्रो. जोया हसन, प्रो. रिजवान कैसर और प्रो. इम्तियाज अहमद सरीखे पांच विशेषज्ञों का लेक्चर हो चुका है.

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