केंद्र सरकार ने कहा कि लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए गठित संयुक्त समिति में समाज के कुछ सदस्यों को लेकर पैदा हुए विवाद का उसके कामकाज पर कोई असर नहीं पड़ेगा और भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कानून बनाने के लिए सदस्यों के साथ मिलकर वह काम करेगी.
सोनिया गांधी की अध्यक्षता में हुई कांग्रेस कोर समूह की बैठक के बाद वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने कहा विवादों से लोकपाल विधेयक की मसौदा समिति के कामकाज पर असर नहीं पड़ेगा.
इस दौरान मुखर्जी के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी मौजूद थीं.
उन्होंने कहा, ‘लोकपाल विधेयक पर संयुक्त समिति के कुछ सदस्यों को लेकर विवाद पैदा हो गया है. मैं यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि सरकार के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी की राय है कि इन विवादों से लोकपाल विधेयक की मसौदा समिति के कामकाज पर असर नहीं पड़ेगा.’
उन्होंने कहा, ‘समिति में सरकार के सदस्य अन्ना हजारे और समिति में शामिल उनके साथियों के साथ काम करने और भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए कठोर लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने को उत्सुक है.’ मुखर्जी का यह बयान कोर समूह की 90 मिनट तक चली बैठक के बाद आया. बैठक में इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की गई.
इस हफ्ते की शुरूआत में हजारे ने सोनिया को पत्र लिखा था जिसमें आरोप लगाया गया था कि कांग्रेस के कुछ नेता समिति में शामिल समाज के सदस्यों को बदनाम करने के लिए अभियान चलाए हुए हैं. उन्होंने जानना चाहा था कि क्या इस अभियान को उनकी मंजूरी हासिल है.
इस पत्र का जवाब देते हुए सोनिया ने कहा था कि उनकी पार्टी इस तरह के अभियान का समर्थन नहीं करती और भ्रष्टाचार को उखाड़ फेंकने के लिए वचनबद्ध है. मुखर्जी का बयान प्रधानमंत्री के उस बयान के एक दिन बाद आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि सरकार को उम्मीद है कि संसद के मॉनसून सत्र में लोकपाल विधेयक को संसद में पेश किया जाएगा. उन्होंने कहा था कि इसपर मंत्रियों और समाज के प्रतिनिधियों की समिति काम कर रही है.
सिंह ने कल कहा था कि उनकी सरकार भ्रष्टाचार की इस चुनौती से निर्भीक तरीके से निपटने को प्रतिबद्ध है क्योंकि लोग तेजीसे और कठोर कार्रवाई की अपेक्षा करते हैं.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि कांग्रेस और सरकार लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए संयुक्त समिति के कामकाज में कोई बाधा नहीं डालेगी. सिंह का यह बयान लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिए गठित संयुक्त समिति में समाज की तरफ से शामिल किए गए सदस्यों शांति भूषण, प्रशांत भूषण और न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े के बारे में उनकी टिप्पणी को लेकर पैदा हुए विवाद के बीच आया.
कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने शांति भूषण और उनके पुत्र प्रशांत भूषण के नोएडा में भूमि हासिल करने और इलाहाबाद में स्टांप ड्यूटी से बचने का आरोप लगाया था. सिंह ने कहा कि पार्टी या सरकार को समिति में उनके बने रहने पर कोई आपत्ति नहीं है, बल्कि यह उनके विवेक पर छोड़ दिया गया है कि वे इसमें रहना चाहते हैं अथवा नहीं.
सिंह ने कहा कि उन्होंने न्यायमूर्ति हेगड़े पर कभी निशाना नहीं साधा. उन्होंने सिर्फ यह सवाल खड़ा किया था कि जब कर्नाटक में सर्वश्रेष्ठ लोकायुक्त राज्य में व्याप्त भ्रष्टाचार को नहीं रोक सके तो व्यवस्था पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए.
उन्होंने इन बातों को खारिज कर दिया कि समिति में शामिल समाज के सदस्यों पर लगाए जा रहे आरोपों के पीछे कांग्रेस और उसके कुछ नेताओं का हाथ है.
उधर, पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा ने संयुक्त समिति में शामिल समाज के सदस्यों से समिति से नहीं हटने को कहा.
देवगौड़ा ने कहा, ‘मीडिया रिपोर्ट से जानकर यह दुख हुआ कि कर्नाटक के लोकायुक्त न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े समिति में रहने के अपने फैसले पर पुनर्विचार कर रहे हैं.’ जबर्दस्त भ्रष्टाचार के असली मुद्दे को दरकिनार करने का प्रयास करने वाली शक्तियों की आलोचना करते हुए देवगौड़ा ने कहा कि समिति के गठन के बाद सदस्यों की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा पर सवाल खड़े करना उचित नहीं है.
इस बीच, भाजपा के वरिष्ठ नेता शांता कुमार ने कहा कि लोकपाल विधेयक को संसद में पेश करने के संबंध में प्रधानमंत्री की ओर से दिया गया बयान पर्याप्त नहीं है. उन्होंने प्रधानमंत्री से कहा कि वह इस बात को सुनिश्चित करें कि संसद के मानसून सत्र के दौरान यह विधेयक पारित हो. उन्होंने इसके लिए अपनी पार्टी की तरफ से पूर्ण समर्थन का भरोसा दिया.