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क्या हमारे समाज को वाकई जरूरत है AIB की?

यूट्यूब चैनल AIB के 18 महीनों में 10 लाख सब्सक्राइबर हो गए हैं. यूट्यूब और डिजिटल माध्यमों पर प्रसारित होने वाली इसकी गाली-गलौच भरी कुछ सामग्री पिछले काफी समय से चर्चा में रही है. ऐसे कार्यक्रम कितने सही हैं, कितने गलत हैं. लेकिन बुनियादी सवाल तो यही है कि ये कार्यक्रम बनाया ही क्यों गया. 

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एआईबी
एआईबी

यूट्यूब चैनल AIB के 18 महीनों में 10 लाख सब्सक्राइबर हो गए हैं. यूट्यूब और डिजिटल माध्यमों पर प्रसारित होने वाली इसकी गाली-गलौच भरी कुछ सामग्री पिछले काफी समय से चर्चा में रही है. ऐसे कार्यक्रम कितने सही हैं, कितने गलत हैं. लेकिन बुनियादी सवाल तो यही है कि ये कार्यक्रम बनाया ही क्यों गया. 

शुरुआत हल्की कॉमेडी से...
2 फरवरी 2013, कॉमेडी ग्रुप AIB ने अपने यूट्यूब चैनल पर पहला वीडियो अपलोड किया. बातचीत फिल्मों के सीन पर हो रही थी. बीच-बीच में गालियां भी दी जा रही थीं. करीब आठ लाख लोग उसे अब तक देख चुके हैं. बहुत ज्यादा नहीं सराहा गया. हो सकता है कई ने इस ग्रुप के विवादों में आ जाने के बाद इसे देखा हो. 

गंभीर मुद्दों पर जबरदस्त क्रिएटिविटी...
19 सितंबर 2013, कल्की कोचलिंग को फीचर करते हुए एक वीडियो अपलोड किया गया, जिसमें कल्की ने व्यंग्य करते हुए बेहद ही प्रभावशाली ढंग से ये बताया कि महिलाओं के कपड़े, उनके मोबाइल फोन इस्तेमाल को रेप के लिए उकसाने वाला बताया जाना कितना बकवास है. उस वीडियो को अब तक 46 लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं.

5 मार्च 2014, इसी ग्रुप ने डोनेशन के साइड इफैक्ट शीर्षक से एक वीडियो जारी किया. 12 लाख से ज्यादा लोग इस वीडियो के जरिए इस ग्रुप के जीनियस को देख चुके हैं जिन्होंने एक बच्चे के गुस्से को बड़े ही रोचक ढंग से फिल्माया है, जो अपने पिता को डांट रहा है कि वह ईमानदार बने रहकर कैसे उसका एडमिशन बड़े कॉलेज में करवा पाएगा. कहां से लाएगा वह डोनेशन के पैसे.

...और 15 अगस्त 2014 के अपलोड किए गए वीडियो ने तो कमाल ही कर दिया. भारत-पाकिस्तान के युवाओं की टेलीफोन पर हुई आपसी बातचीत का यह वीडियो 21 लाख से ज्यादा लोगों ने देखा. 29 हजार से ज्यादा ने इसे सराहा.

इन सभी वीडियो को लोगों ने खूब देखा. जमकर सराहा. और शेयर किया. हां, ये अचानक वायरल नहीं हुए. और देश में इन्हें केंद्र में रखकर कहीं चर्चा नहीं हुई. क्योंकि, इन विषयों पर प्रयोग होते रहे हैं. 

तो कुछ अलग करने के लिए फूहड़ता ही क्यों?
AIB रोस्ट का आइडिया लाया गया. गाली-गलौच भले इस कार्यक्रम का वीडियो वेब की दुनिया में आते ही कोहराम मच गया. हर तरह के दर्शक, हर तरह की प्रतिक्रियाएं. युवा, बुजुर्ग, सेलिब्रिटी और सरकार. यूट्यूब और ट्विटर पर दुनिया में यह टॉप ट्रेंडिंग तक पहुंचा. लेकिन जिन वीडियो के बारे में ऊपर जिक्र किया गया है, उन्हें दर्शक कभी भी देखें तो उनसे खुद को रिलेट कर पाएंगे. बजाए हंसाने के नाम पर आयोजित किए गए गाली-गलौच भरे किसी कार्यक्रम के. 

चार युवाओं ने मिलकर AIB बनाया है. गुरसिमरन खंबा, तनमय भट्ट, रोशन जोशी और आशीष साइकिया का दिमाग है इसके पीछे. शुरुआत में ये अपने कार्यक्रम को पॉडकास्ट (डिजिटल टेलिकास्ट) करते थे. फिर फंड की जरूरत पड़ी तो यूट्यूब पर आए. खुद को कारोबारी रूप से सफल साबित करने के लिए उन्होंने एक ऐसा रास्ता चुना, जो विवादित हो गया. हां, कमाई भी हुई.

दरअसल, मुद्दा सिर्फ गाली-गलौच वाले कार्यक्रम का नहीं है. सवाल इन जीनियस युवाओं की प्रतिभा का भी है. जो पहले रेप, भारत-पाकिस्तान और डोनेशन जैसे विषय पर कमाल के क्रिएटिविटी करते हैं. लेकिन बाद में उन्हें AIB रोस्ट के रास्ते पर आना पड़ता है. क्यों? 

प्रतिभा में कोई कमी आ गई हो, ऐसा तो हो नहीं सकता. हां, थोड़ी मेहनत लगती है. लेकिन ये मेहनत करने से बचना चाहते थे ऐसा भी नहीं है. तो क्या महज तेजी से लोकप्रियता पाने और पैसा कमाने के लिए ये सब किया? कारण इनमें से जो भी हो, यह तर्क खारिज हो जाता है कि ऐसे कार्यक्रमों को मंजूरी दी जानी चाहिए.

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