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क्या वरुण गांधी से रूठे हैं पीएम मोदी ?

सियासी जानकारों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे रूठे हुए बताए जा रहे हैं. एक तथ्य यह भी आम है कि अपने राजनीतिक सफर में पीएम मोदी की कार्यशैली किसी को भी माफ नहीं करने की रही है. अगर यह सच है, तो पीएम मोदी के वरुण से नाराज होने की वजह क्या है.

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वरुण आजकल नेपथ्य में हैं
वरुण आजकल नेपथ्य में हैं

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कभी भारतीय जनता पार्टी के युवा तुर्क समझे जाने वाले नेता वरुण गांधी इन दिनों काफी कम चर्चा में हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव सिर पर है और उनकी खबरें सिरे से नदारद.

केंद्रीय राजनीति में उनकी चर्चा नहीं के बराबर हो रही, लेकिन यूपी की सीटों से दो बार के सांसद चुनाव पूर्व तैयारियों में न दिखे तो वजह की तलाश वाजिब है. क्या शादी के बाद बढ़ी पारीवारिक जिम्मेदारी ने उन्हें राजनीति से मशरूफ कर रखा है या गांधी-नेहरू परिवार पर सीधा हमला न करना इसकी वजह है. उनसे पार्टी हाईकमान रूठे हैं या शुरुआती कट्टर बयान उन पर भारी पड़ रहा है. या फिर कुछ और है?

मुरादाबाद में मंच टूटने और कम हाजिरी की वजह से संसदीय समितियों से बाहर होने वाले सांसदों में नाम शामिल होने के चलते वह काफी दिनों के बाद खबरों में आए. आइए जानते हैं, उन वजहों को जिनके चलते सबसे कम उम्र में केंद्रीय महासचिव बनाए गए अलग-थलग पड़ गए हैं.

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शुरुआत के कट्टर बयान पड़ रहे भारी
चुनावों के दौरान यूपी में अपने कट्टर बयानों से राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियों में छा गए वरुण गांधी पर तब रासुका लगा दिया गया था. एक समुदाय का नाम लेकर लोगों के हाथ काट देने वाले उनके बयान की छाप अब भी राजनीतिक गलियारों में बनी हुई है. यूपी में ही बीजेपी के कई चेहरे कट्टरता को पोषण देने के लिए पहले से ही हैं. नए-नए और कम ओहदे के चेहरे भी इसमें शामिल हो रहे हैं. ऐसे में वरुण को इसके लिए ही सरगर्म बनाए रखने की कोई राजनीतिक अहमियत नहीं दिखती. यूपी में कुछ साल पहले चली सांप्रदायिक बयानों की गहमागहमी से इसलिए वरुण दूर रहे.

सोनिया-राहुल पर हमले से बचने का असर
वरुण गांधी की शादी में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को न्योता भेजा गया था, लेकिन कोई उन्हें आशीर्वाद देने वाराणसी नहीं आया. जबकि वरुण प्रियंका की शादी में खुद शामिल हुए थे और अपनी शादी का न्योता देने भी खुद उनके घर गए थे. लोकसभा चुनाव के दौरान प्रियंका ने उनको गीता पढ़ने की सलाह दे डाली थी. इस के बावजूद वरुण उन सबको सम्मान देते रहे. राहुल को 10 साल बड़ा भाई बताते रहे हैं. सोनिया गांधी या दोनों भाई बहन के खिलाफ उन्होंने कभी तीखे हमले नहीं किए.

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नदारद हैं वरुण के तेवर बाले बयान
गांधी-नेहरू परिवार को लेकर बीजेपी शुरू से हमलावर रही है. इस सिलसिले में मौजूदा कांग्रेस और इसके सर्वेसर्वा सोनिया गांधी और राहुल गांधी हमेशा इसके निशाने पर रहते आए हैं. लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव बीजेपी के आम कार्यकर्ता से लेकर आलाकमान तक एक सुर में सोनिया-राहुल पर जुबानी हमले करते हैं. वहीं यूपी से दोबारा सांसद चुने गए वरुण गांधी इस मसले पर लगातार चुप्पी साधे रहते हैं. सोनिया या राहुल पर उनके मशहूर तेवर वाले बयान कहीं देखने को नहीं मिलते.

क्या रूठ गए हैं पीएम नरेंद्र मोदी
केंद्र और यूपी की राजनीति की अंदरूनी जानकारी रखनेवाले लोगों की मानें तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनसे रूठे हुए बताए जा रहे हैं. एक तथ्य यह भी आम है कि अपने राजनीतिक सफर में पीएम मोदी की कार्यशैली किसी को भी माफ नहीं करने की रही है. अगर यह सच है, तो पीएम मोदी के वरुण से नाराज होने की वजह क्या है. इसको लेकर कई तरह की बातें सामने आ रही है.

अमित शाह की नजर और पीएम मोदी को खबर
इन सबकी खबर लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी प्रभारी और अब पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को मिलती रही. फिर पीएम नरेंद्र मोदी तक ये बातें पहुंचने में भला देरी कैसे होती. यह वरुण को लेकर उनकी उदासीनता की एक बड़ी वजह समझी जा रही है. क्योंकि वरुण को पार्टी में लाने की सबसे बड़ी वजहों में एक तो उन्हें राहुल के बरअक्श खड़ा करने की ही थी. ऐसे में परिवार मानकर उन पर राजनीतिक हमले से वरुण का पीछे हटना पार्टी और प्रमुख को सही नहीं लगा. वहीं मौजूदा वक्त राहुल के लिए ऐसे भी कमजोर समझा जा रहा है. फिर रणनीतिक तौर पर उनके मुकाबले में ज्यादा लोग या ऊर्जा लगाने को कौन बेहतर मानेगा?

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अंदरखाने भी निशाने पर गांधी-नेहरू परिवार
बीजेपी में सबसे कम उम्र में महासचिव बने वरुण गांधी के सरनेम और उनकी मां मेनका गांधी के केंद्रीय मंत्री होने को भी इसकी एक वजह के तौर पर देखा जा रहा है. बीजेपी में एक ही परिवार से दो लोगों को सरकार या संगठन में समान हैसियत देने से बचने की कोशिश रही है. इसके अलावा वंशवाद का विरोध करती बीजेपी इनको लेकर शुरुआत से असमंजस में रही है. क्योंकि वरुण भी सीधे गांधी-नेहरू परिवार से ही संबंधित हैं. इस परिवार पर लगातार कड़े हमले कर रहे सुब्रमण्यम स्वामी आजकल बीजेपी में काफी सक्रिय दिखते हैं.

सरकार के इमेज मेकओवर की चिंता ज्यादा
कट्टर भाषण देकर चर्चाओं में आना तो आसान है, लेकिन बड़े पैमाने पर लोगों के बीच स्वीकार्य होने में ये वजहें बाधक बनती हैं. केंद्र में सरकार गठन के बाद बीजेपी हमेशा उदार रवैए को लेकर चल रही है. वजह जो भी रही हो पर सरकार की ओर से कट्टर भाषणों का बचाव करना घटा है. सार्वजनिक तौर पर ऐसे बयानों को पीएम मोदी खुद हतोत्साहित करते रहे हैं. उनके इमेज के मेकओवर के दौर में बीजेपी कोई भी रिस्क लेना भला क्यों चाहेगी?

पांच राज्यों के चुनाव भी बड़ी वजह
यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं. इसके पहले दिल्ली और बिहार में बीजेपी संभावनाएं गवां चुकी है. इस साल मई से पहले जिन पांच राज्यों में चुनाव होनेवाले हैं, उनमें स्थानीय मुद्दे ही प्रभावकारी रहने के ट्रेंड रहे हैं. ऐसी हालत में वरुण गांधी के उपयोग की बीजेपी के पास कोई अहम वजह नहीं दिखती. इन राज्यों में बीजेपी के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है और पाने की गुंजाइश ने उसे काफी सतर्क कर रखा है. स्टार प्रचारकों की सूची पर भी स्थानीय नेताओं की मांग मजबूत असर रख रही है.

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शादी के बाद परिवार के लिए ज्यादा वक्त
शादी के बाद वरुण के वक्त का बड़ा हिस्सा परिवार के लिए सुरक्षित हो गया है. कुछ राजनीतिक जानकार बताते हैं कि वह किसी बड़ी भूमिका की तैयारी में अलग-थलग हुए हों. शायद ऐसा सच हो, लेकिन राजनीति लगातार दिखने और सही जगह पर सही लोगों के साथ दिखने से ही आगे बढ़ती है.

यूपी के सीएम उम्मीदवारी की होड़ का असर
साल 1980 में पैदा हुए वरुण गांधी के करीबी मानते हैं कि संसदीय राजनीति के लिए उनके पास काफी वक्त है. प्रशंसक उन्हें यूपी के भावी मुख्यमंत्री के तौर पर भी प्रचारित करते नहीं थकते. वहीं एक धड़ा केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह और मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के लिए भी ऐसे सपने देख रहा है. योगी आदित्यनाथ सहित कई अन्य चेहरे भी अपनी इसके लिए अपनी चर्चा करवा रहे हैं. दो बड़े राजनेताओं और कई स्थानीय नेताओं के सपनों के बीच इतनी जगह नहीं दिखती कि वरुण की अधिक तलाश की जाए.

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