लगता है सरकार ने भी नक्सलियों के आगे घुटने टेक दिए हैं. रेलवे ने फैसला किया है कि नक्सल प्रभावित इलाकों से फिलहाल रात में ट्रेने नहीं गुजरेंगी. ट्रेन के ड्राइवरों ने भी इन इलाकों में रात में ट्रेन चलाने से इनकार कर दिया है.
खड़गपुर के पास हुए ट्रेन हादसे के बाद ड्राइवरों में डर बैठा है. जाहिर है ड्राइवरों और रेलवे का डर, सरकार की नाकामी दिखा रहा है. ड्राइवरों की एसोशिएशन ने फैसला किया है कि जब तक उन्हें सुरक्षा नहीं मुहैया कराई जाती है तब तक वे नक्सली इलाकों में रात के समय ट्रेन नहीं चलाएंगे.
इस बीच ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस ट्रेन हादसे में अब तक 73 लोगों की मौत की खबर आ चुकी है. नक्सलियों की नाराजगी सरकार और प्रशासन से है लेकिन इस हादसे में अगर किसी ने जान गंवाई है तो वो कोई और नहीं आम इंसान है.
सकते में डालने वाली बात ये है कि नक्सलियों ने पिछले कुछ महीने से अपने निशाने पर सेना और पुलिस के साथ-साथ आम जनता को भी ले लिया है. पिछले एक साल में नक्सलियों ने आठ हमले ऐसे किए हैं जिनमे जान गई है तो सिर्फ और सिर्फ आम लोगों की. इससे साफ होता है कि अब खतरा आम जनता के लिए ज्यादा बढ़ चुका है.
बहुत ज्यादा वक्त नहीं बीता है जब 17 मई को नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ में बम ब्लास्ट से एक बस को उड़ा दिया था जिसमे 40 लोगों की मौत हो गई थी. इससे पहले भी नक्सली महाराष्ट्र, झारखंड और छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों में 22 अप्रैल 2009 तक 8 हमलों में 58 बेगुनाहों को मौत के घाट उतार चुके हैं.
कहा जा रहा है कि नक्सलियों का गुस्सा सरकार के ऑपरेशन ग्रीनहंट के खिलाफ है. अब तक के घटनाक्रम के बाद ये साफ हो चुका है कि सरकार नक्सलियों पर लगाम लगाने के अपने मिशन में नाकाम रही है. उससे भी बड़ा खतरा ये है कि अब देश के लिए नासूर बन चुका ये लाल साज़िश आम जनता के खून से अपने हाथ लाल कर रहा है.