भारतीय रेलवे में घाटे की बात किसी से छिपी नहीं है. यूपीए सरकार से लेकर एनडीए सरकार तक सभी इस ओर रोना रोते रहे हैं, वहीं दिल्ली मेट्रो को पहचान दिलाने वाले 'मेट्रो मैन' ई श्रीधरन ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि अगर रेलवे बोर्ड भारतीय रेलवे के लिए की जाने वाली केंद्रीकृत खरीदारी पर रोक लगा दे तो इससे हर साल 10 हजार करोड़ रुपये की बचत होगी.
'टाइम्स ऑफ इंडिया' की खबर के मुताबिक, भारतीय रेलवे को सामानों की खरीदारी में हर साल कम से कम 10 हजार करोड़ रुपये का चूना लग रहा है. श्रीधरन की रिपोर्ट में कहा गया है कि खरीद अधिकारों को विकेंद्रित करने यानी निचले स्तर तक देने से इस लूट को रोका जा सकता है.
कुछ हाथों तक सिमित है रेलवे का पैसा
श्रीधरन ने रेलवे के जनरल मैनेजर्स को वित्तीय अधिकार देने और अधिकारों के विकेंद्रीकरण संबंधी अपनी फाइनल रिपोर्ट सौंपी है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि खरीद
अधिकार सीमित होने के कारण रेलवे का बहुत ज्यादा पैसा महज कुछ हाथों में है, जिससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है. श्रीधरन की अध्यक्षता वाली कमेटी ने अपनी
रिपोर्ट में रेलवे के कई वरिष्ठ अधिकारियों की भी राय ली है. मौजूदा खरीद प्रक्रिया का विश्लेषण कर कमेटी इस नतीजे पर पहुंची है कि जवाबदेही तय करने और
अधिकारों को विकेंद्रित करने से रेलवे की सालाना आय में भारी अंतर आ जाएगा. इससे हर साल सामान की खरीद में करीब 5 हजार करोड़ रुपये और कामों के ठेके देने
में भी इतने ही रुपयों की बचत होगी.
खरीदारी करने में अव्वल है रेलवे
श्रीधरन की कमेटी ने अपनी फाइनल रिपोर्ट 15 मार्च को दाखिल की थी. इसमें कहा गया है कि बोर्ड को कोई भी वित्तीय फैसले नहीं लेने चाहिए. खुद अपनी जरूरत के
सामान की खरीदारी भी उत्तरी रेलवे से करानी चाहिए. ये अधिकार जनरल मैनेजर और निचले स्तर के अधिकारियों को दिए जाने की भी सिफारिश की गई है.
गौरतलब है कि भारतीय रेलवे देश में सबसे ज्यादा खरीदारी करने वाली दूसरी सबसे बड़ी एजेंसी है. इससे ज्यादा की खरीदारी सिर्फ डिफेंस के सामान की होती है. रेलवे
हर साल खरीदारी पर करीब 1 लाख करोड़ रुपये खर्च करती है, जिसमें से करीब आधी रकम से रेलवे बोर्ड खरीदारी करता है.
इससे पहले बीते साल नवंबर में श्रीधरन के प्रारंभिक रिपोर्ट देने के बाद से ही रेलवे ने अधिकारों के विकेंद्रीकरण का काम शुरू कर दिया है. कमेटी ने विस्तार से विश्लेषण के लिए डीजल, कंक्रीट स्लीपर्स, 53S सीमेंट जैसे सामनों की खरीद प्रक्रिया का भी अध्ययन किया. उनके मुताबिक, रेलवे देश में सबसे ज्यादा डीजल की खरीद करता है और पिछले 15 महीनों से इसका नया ठेका ही फाइनल नहीं हुआ है. कई चीजों के ठेके तो दशकों से तय नहीं हुए हैं.