चुनाव आयोग ने चुनाव में काले धन के प्रवाह पर रोक के प्रयास के तहत सरकार से कानूनों में संशोधन का आग्रह किया है ताकि राजनीतिक दलों को दो हजार रुपये और उसके ऊपर दिए जाने वाले गुप्त योगदानों पर रोक लगाई जा सके. राजनीतिक दलों द्वारा गुप्त चंदा प्राप्त करने पर कोई संवैधानिक या वैधानिक निषेध नहीं है.
जनप्रतिनिधि कानून, 1951 की धारा 29 सी के तहत चंदों की घोषणा जरूरी होने के तहत गुप्त चंदों पर अप्रत्यक्ष आंशिक निषेध है. लेकिन इस प्रकार की घोषणा 20 हजार रुपये से अधिक के योगदान पर ही की जानी चाहिए. आयोग की ओर से सरकार को भेजे गए प्रस्तावित चुनावी सुधारों के तहत दो हजार रुपये के बराबर या उससे ऊपर का गुप्त चंदे पर रोक होनी चाहिए. प्रस्तावित संशोधन चुनाव सुधार पर उसकी सिफारिशों का हिस्सा है. राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने स्पष्ट किया कि राजनीतिक पार्टियां 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट चंदों के तौर पर स्वीकार नहीं कर सकती क्योंकि दोनों अब कानूनन चलन में नहीं हैं.
उन्होंने ट्वीट करके कहा, राजनीतिक दलों को कथित विशेषाधिकार की सभी खबरें झूठी एवं गुमराह करने वाली हैं. नोटबंदी और कराधान संशोधन अधिनियम, 2016 के बाद राजनीतिक दलों को कोई छूट या विशेषाधिकार प्रदान नहीं किया गया है. अधिया ने कहा, नोटबंदी के बाद कोई भी राजनीतिक पार्टी 500 और 1000 रूपये में चंदा स्वीकार नहीं कर सकती क्योंकि अब ये कानूनन चलन में नहीं हैं. यदि कोई विसंगति है तो अन्य की तरह ही राजनीतिक पार्टियों से भी आयकर विभाग के अधिकारी सवाल कर सकते हैं. उन्हें कोई छूट प्राप्त नहीं है.
आयोग ने यह भी प्रस्तावित किया है कि आयकर छूट ऐसी ही पार्टियों को दी जानी चाहिए जो चुनाव लड़ती हैं और लोकसभा या विधानसभा चुनाव में सीटें जीतती हैं. आयकर कानून, 1961 की धारा 13ए राजनीतिक दलों को मकान सम्पत्ति से आय, स्वैच्छिक गदान से होने वाली आय, पूंजी लाभ से आय और अन्य स्रोतों से आय पर छूट प्रदान करती है. भारत में राजनीतिक पार्टियों की केवल वेतन मद में होने वाली आय और व्यापार या पेशे से होने वाली आय कर के दायरे में आती है.