scorecardresearch
 

आर्थिक समीक्षा में अर्थव्यवस्था को लेकर उत्साह, मंहगाई पर चिंता

आम बजट से एक दिन पहले पेश आर्थिक समीक्षा के सुझावों पर अमल हुआ, तो वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी बजट में उत्पाद एवं सेवाकर बढा कर और सरकारी खर्चों पर लगाम लगा कर प्रोत्साहन पैकेज की विदाई की शुरुआत कर सकते हैं.

Advertisement
X

आम बजट से एक दिन पहले पेश आर्थिक समीक्षा के सुझावों पर अमल हुआ, तो वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी बजट में उत्पाद एवं सेवाकर बढा कर और सरकारी खर्चों पर लगाम लगा कर प्रोत्साहन पैकेज की विदाई की शुरुआत कर सकते हैं.
आर्थिक समीक्षा में राजकोषीय मजबूती के लिये पेट्रोलियम, खाद् और खाद्यन्न सब्सिडी में कटौती करने और इनकी कीमतों का बाजार के हवाले करने का सुझाव दिया गया है. मुखर्जी द्वारा संसद में पेश 2009-10 की आर्थिक समीक्षा में खाद्य पदाथरें की मंहगाई को चिंताजनक बताया गया है, पर नरमी से उबर रही भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य की सुहानी संभावनाएं प्रस्तुत की गई हैं. 
इसमें कहा गया है कि अर्थव्यवस्था वैश्विक मंदी के असर से उबरने लगी है और अब इसमें सरकार के बढे खर्चों की समीक्षा कर उन्हें उत्पादक दिशा देने की जरुरत है. इसके साथ ही इसमें उद्योग जगत को वैश्विक संकट के समय दिये गये प्रोत्साहन पैकेज को धीरे धीरे विदा करने की सलाह भी दी गई है.
अर्थव्यवस्था में विभिन्न क्षेत्रों में आये सुधार को देखते हुये अगले वित्त वर्ष 2010-11 में आर्थिक वृद्धि 8.75 प्रतिशत और 2011.12 में नौ प्रतिशत से अधिक रहने की भविष्यवाणी की गई है.
समीक्षा में कहा गया है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की ढांचागत सुविधाओं में सुधार तथा प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार को समाप्त करने से अगले चार सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था असाधारण द्विअंकीय (दस प्रतिशत या उससे उपर की) आर्थिक वृद्धि का स्तार हासिल कर दुनिया की सबसे तेजी से बढने वाली अर्थव्यवस्था होगी.
आर्थिक समीक्षा में खाद्य उत्पादों की महंगाई दो अंकों में पहुंचने पर गहरी चिंता व्यक्त की गई है. महंगाई के मोर्चे पर सरकार के खराब प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराते हुये खाद्य उत्पादों की महंगाई को काबू में लाने के ठोस प्रयास करने को कहा गया है. इसमें कहा गया है कि सरकार के पास गेहूं चावल का विपुल भंडार होने के बावजूद उसका सही समय पर सदुपयोग नहीं किया गया, बजाय इसके खरीफ फसलों की असफलता का बढ-चढकर प्रचार हो गया, जिसका जमाखोरों और मुनाफाखोरों ने पूरा लाभ उठाया. इससे महंगाई बढ गई.
उल्लेखनीय है कि दिसंबर में खाद्य उत्पादों की महंगाई एक समय 20 प्रतिशत तक पहुंच गई थी. थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति दिसंबर में 7. 3 प्रतिशत और जनवरी 2010 में 8. 53 प्रतिशत तक पहुंच गई. समीक्षा कहती है कि खाद्य उत्पादों की बढती कीमतों का असर दूसरे क्षेत्रों में भी फैल सकता है इसके कुछ संकेत सरकारी नियंत्रण से अलग दूसरे ईंधन उत्पादों की कीमतों में आती मजबूती से भी मिलने लगे हैं. इससे आने वाले महीनों में महंगाई को लेकर चिंतायें बढी हैं.

Advertisement
Advertisement