मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) नवीन चावला ने अपने पूर्ववर्ती सीईसी द्वारा खुद को हटाने की मांग समेत दो घटनाक्रमों का जिक्र करते हुए सरकार से अनुरोध किया है कि मनमाने तरीके से बर्खास्तगी से चुनाव आयुक्तों को संरक्षण देने के लिए संविधान में जल्दी संशोधन किया जाए.
उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर कहा है कि चुनाव आयुक्तों को मुख्य चुनाव आयुक्त की तरह ही संविधान से संरक्षण मिलना चाहिए. चावला ने एक पत्र में कहा है, ‘आयोग मजबूती से मानता है कि जब तक अनुच्छेद 324 (5) के प्रावधान इसी तरह रहेंगे, तब तक भविष्य में उपरोक्त प्रकृति के घटनाक्रमों की पुनरावृत्ति को खारिज नहीं किया जा सकता.’ चावला जुलाई में अपना पद छोड़ेंगे.
आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल की आरटीआई अर्जी के जवाब में चुनाव आयोग की तरफ से यह पत्र आया है. चावला ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि मामले में निजी तौर पर ध्यान दें ताकि निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों एवं लोकतंत्र में चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और मजबूत हो.
चावला ने जिन दो घटनाक्रमों का जिक्र किया है, इनमें एक 1993 का है, जिसमें पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन ने चुनाव आयुक्तों एम.एस. गिल और जी.वी.जी. कृष्णमूर्ति की नियुक्ति को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी. अपने खुद से जुड़े मामले का जिक्र करते हुए चावला ने कहा है कि पिछले साल भी ऐसा वाकया दोहराया गया जब उनके पूर्ववर्ती गोपालस्वामी ने उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की थी.
उन्होंने कहा, ‘आपके कुशल नेतृत्व वाली सरकार को इस बात का श्रेय जाता है कि सरकार ने श्री गोपालस्वामी की सिफारिशों को स्वीकार करने से इंकार कर दिया और महामहिम राष्ट्रपति को सुझाव दिया गया, और उन्होंने कथित सिफारिश को नहीं स्वीकारने का फैसला किया.’ चावला के मुताबिक इन घटनाक्रमों ने न केवल सार्वजनिक तौर पर चुनाव आयोग की छवि बिगाड़ी है बल्कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों के बीच द्वेष पैदा किया है, जिसने आयोग के सद्भावना पूर्ण कामकाज को प्रभावित किया.