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चुनावों में राजनीतिक दल करते हैं बड़े वादे, फिर जाते हैं भूल: CJI खेहर

देश के प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर ने कहा कि चुनावी वायदे आमतौर पर पूरे नहीं किए जाते हैं. जस्टिस खेहर ने कहा कि घोषणा पत्र सिर्फ कागज का एक टुकड़ा बन कर रह जाता है, इसके लिए राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए.

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देश के प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर
देश के प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर

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देश के प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर ने कहा कि चुनावी वायदे आमतौर पर पूरे नहीं किए जाते हैं. जस्टिस खेहर ने कहा कि घोषणा पत्र सिर्फ कागज का एक टुकड़ा बन कर रह जाता है, इसके लिए राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए.

प्रधान न्यायाधीश ने यहां चुनावी मुद्दों के संदर्भ में आर्थिक सुधार विषय पर एक सेमिनार को संबोधित करते हुए यह टिप्पणी की. उन्होंने कहा, आजकल चुनावी घोषणा पत्र महज कागज के टुकड़े बन कर रहे गए हैं, इसके लिये राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए.'

राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के सानिध्य में सेमिनार को संबोधित करते हुए जस्टिस खेहर ने कहा कि चुनावी वायदे पूरे नहीं करने को न्यायोचित ठहराते हुए राजनीतिक दलों के सदस्य आम सहमति का अभाव जैसे बहाने बनाते हैं. प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि नागरिकों की याददाश्त अल्पकालिक होने की वजह से ये चुनावी घोषणा पत्र कागज के टुकड़े बनकर रह जाते हैं, लेकिन इसके लिए राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाया जाना चाहिए.

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वर्ष 2014 में हुए आम चुनावों के दौरान राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों के बारे में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इनमें से किसी में भी चुनाव सुधारों और समाज के सीमांत वर्ग के लिए आर्थिक-सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के सांविधानिक लक्ष्य के बीच किसी प्रकार के संपर्क का संकेत ही नहीं था. उन्होंने कहा कि इस तरह से रेवड़ियां देने की घोषणाओं के खिलाफ दिशानिर्देश बनाने के लिए निर्वाचन आयोग को सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद से आयोग आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन के लिए राजनीतिक दलों के खिलाफ कार्रवाई कर रहा है.

प्रधान न्यायाधीश के बाद दूसरे सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा ने भी चुनाव सुधारों पर जोर देते हुए कहा कि खरीदने की ताकत का चुनावों में कोई स्थान नहीं है और प्रत्याशियों को यह ध्यान में रखना चाहिए कि चुनाव लड़ना किसी प्रकार का निवेश नहीं है. उन्होंने कहा कि चुनाव अपराधीकरण से मुक्त होने चाहिए और जनता को चाहिए कि प्रत्याशियों की प्रतिस्पर्धात्मक खामियों की बजाये उनके उच्च नैतिक मूल्यों के आधार पर ही उन्हें मत दे.

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