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हाथी दिखाने की चीज नहीं

अपनी मेज से चिपके रहने वाले या फिर बर्गर और कोला के बीच फंसे रहने वाले, निष्क्रिय जीवन शैली के शिकार बच्चों   को उपभोक्ताओं के बीच आसानी से पहचाना जा सकता है. लेकिन जब बच्चे में निष्क्रियता के लक्षण नजर आने लगें तो समझ लीजिए कि अब समय आ गया है कि सोफे में धंसे लोग तन कर बैठ जाएं और अपने माथे पर चिंता के बल डाल लें.

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हाथियों के जुलूस के बिना त्योहार कैसे होगा? केरल में यह आशंका कई लोगों को परेशान किए हुए है, क्योंकि यदि केंद्र सरकार ने हाथी को विरासत (हेरिटेज) एनिमल का दर्जा दे दिया तब उसके सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक लग जाएगी. केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने एलिफेंट टास्क फोर्स की सिफारिश पर हाल ही में यह फैसला लिया है.

महेश रंगराजन की अगुआई वाली पर्यावरण और वन मंत्रालय की 12 सदस्यीय समिति की कई सिफारिशों के खिलाफ केरल में हाथियों के मालिक उठ खड़े हुए हैं. केरल एलिफेंट ओनर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधियों और कुछ राजनीतिकों ने केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्री जयराम रमेश से त्योहारों में हाथियों के जुलूस पर रोक न लगाने का आग्रह किया था.

एलिफेंट ओनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष टी.एन. अरुण कुमार कहते हैं, ''हाथी केरलवासियों की जिंदगी का हिस्सा है और उसे सिर्फ एक जंगली जानवर समझ्ना ठीक नहीं.'' प्रदेश के वन और पर्यावरण मंत्री बिनय विश्वम भी प्रतिबंध के खिलाफ हैं.

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वे कहते हैं, ''इसका यह मतलब कतई नहीं है कि अपने व्यावसायिक लाभ या धार्मिक मकसद के लिए मालिकों को हाथियों पर ज्यादती करने या उन्हें तंग करने की छूट है. हाथियों के साथ होने वाली बर्बरता को नियंत्रित करने के प्रयासों का मालिक संस्कृति और परंपरा के नाम पर विरोध करते हैं.''{mospagebreak}

पर्यावरण और वन मंत्रालय की समिति ने अपनी रिपोर्ट गज (भारत में हाथियों के भविष्य की रक्षा) में कहा है कि हाथी फिर वह जंगली हो या पालतू, उसे वन्यसंरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची 1 के तहत वन्यजीव का दर्जा मिला है और कोई व्यक्ति न तो उसका मालिक हो सकता है और न ही उसका व्यापार कर सकता है क्योंकि उस पर राज्य का हक है. किसी भी पालतू हाथी की कानूनी हैसियत वन्यजीव अधिनियम और पशुओं के विरुद्ध क्रूरता (रोक) अधिनियम, 1960 के अंतर्गत आती है. इससे उनका दुरुपयोग और उन पर ज्यादती बढ़ी है.

ऑल केरला एलिफेंट लवर्स एसोसिएशन के वी.के. वेंकटाचलम कहते हैं, ''परंपरा और अनुष्ठानों के नाम पर हाथियों पर होने वाली ज्यादतियों और उनके व्यावसायिक शोषण ने सारी हदें तोड़ दी हैं.'' पालतू हाथियों के साथ होने वाली ज्यादतियों का ही नतीजा है कि त्योहारों के मौकों पर गुस्साए हाथियों के महावतों पर हमले बढ़ गए हैं और कई बार तो उनकी मौत तक हो गई है.

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जनवरी से मार्च के दौरान केरल के मंदिरों में हर साल त्योहारों का मौका होता है और इस बार इस दौरान कम से कम 10 महावतों को उनके हाथियों ने पटककर मार डाला. 2006-07 के दौरान हाथियों ने 48 महावतों को मार डाला था. उसी वर्ष 117 हाथियों ने काम के बोझ्, अपर्याप्त खुराक, इलाज में कमी, सड़क हादसे और ज्यादितयों के कारण दम तोड़ दिया था.{mospagebreak}

हाथियों पर होने वाली ज्यादतियों ने प्रदेश सरकार को 2003 में एक वृहत्‌ कानून केरल कैप्टिव एलिफेंट मेंटनेंस एक्ट लाने को मजबूर कर दिया था. इसमें इस पशु के काम करने के घंटे, आराम, खुराक आदि के बारे में निर्देश दिए गए थे और इसका उल्लंघन करने वाले मालिकों को कड़ी सजा देने के प्रावधान किए गए थे. असल में हाथी पालना केरल का एक आकर्षक व्यवसाय है क्योंकि त्योहारों के दिनों में एक हाथी 50,000 रु. किराए पर उठता है.

पर्यावरण और वन मंत्रालय की समिति की सिफारिशों से मालिक जहां नाखुश हैं तो महावत खुश हैं. ऑल केरला महावत एसोसिएशन के के. बीजू कहते हैं, ''सबसे ज्यादा शोषण तो हमारा होता है. हमें बहुत कम मेहनताना मिलता है जबकि हमेशा हमारी जान जोखिम में होती है.''

वे महावतों की संख्या में आई भारी गिरावट का हवाला देते हैं कि बीते दस वर्षों में उनकी संख्या 2,500 से घटकर 1,000 रह गई है. वे कहते हैं, ''इससे महावतों की कमी हो गई और इसी वजह से नाकाबिल और अप्रशिक्षित लोग भी महावत बन गए हैं. लिहाजा हाथी उन्मत होकर भागते हैं और आसानी से ऐसे महावतों को पटक देते हैं.'' समिति की सिफारिशें हाथियों के तो हित में हैं लेकिन उसने मालिकों को नाराज कर दिया है.

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