हिंदी दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने हिंदी के महत्व को बताते हुए कहा कि अंग्रेजी एक बीमारी है जिसे अंग्रेज जाते-जाते भारत में छोड़ गए हैं. दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने इस इस बात पर बल दिया कि हिंदी भारत में "सामाजिक-राजनीतिक और भाषाई एकता" का प्रतीक थी. इस कार्यक्रम में गृह मंत्री राजनाथ सिंह, गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू और हंसराज अहीर तथा केन्द्रीय मंत्री रामदास आठवले भी मौजूद थे.
उपराष्ट्रपति नायडू ने कहा कि संविधान सभा ने 14 सितंबर, 1949 को हिंदी को आधिकारिक भाषाओं में से एक के रूप में स्वीकार कर लिया था. उन्होंने पूछा क्या हम संविधान सभा की इच्छाओं को पूरी कर पाए. दिलचस्प बात यह है कि असेंबली ने एक ही बैठक में अंग्रेजी को आधिकारिक भाषा के रूप में भी अपनाया.
इस दौरान उन्होंने एक हैरान कर देने वाली बात भी बताई. उन्होंने कहा कि आपको जानकर हैरानी होगी कि कॉलेज के दिनों में मैं हिंदी विरोधी मुहिम का हिस्सा था. हिंदुस्तान में हिंदी के बिना आगे बढ़ पाना असंभव है.
#WATCH: Vice President M Venkaiah Naidu at 'Hindi Diwas Samaroh-2018' in Delhi says, "You will be surprised to know that I once took part in anti-Hindi movement in my college days.... It's impossible to move forward in Hindustan without Hindi". (14.09.18) pic.twitter.com/AktxjCws7E
— ANI (@ANI) September 15, 2018
नायडू, जो आमतौर पर हिंदी या अंग्रेजी में बोलने से पहले विभिन्न राज्यों में स्थानीय भाषा में भाषण शुरू करते हैं, ने यह भी कहा कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम अपनी मातृभाषा को प्रोत्साहित करें.
'भाषा और भावनाएं साथ-साथ चलती हैं'
वेंकैया नायडू ने कहा कि भाषा और भावनाएं साथ-साथ चलती हैं. अगर आप लोगों तक पहुंचना चाहते हैं और उनको समझता चाहते हैं तो आपको अपनी भावनाओं को सही ढंग से व्यक्त करना होगा. अपनी मातृभाषा में भावनाओं को व्यक्त करना आसान होता है. यह हर किसी का अनुभव है. यही कारण है कि हर किसी को घर पर अपनी मातृभाषा में बात करनी चाहिए.
उपराष्ट्रपति ने कहा कि क्षेत्रीय भाषाओं के साहित्य को भी हिंदी में अनुवाद करना चाहिए. उन्होंने कहा कि हिंदी स्वतंत्रता सेनानियों की मुख्य भाषा थी, और देश के ज्यादातर लोगों ने इसे बोला और समझ लिया था.
उन्होंने कहा कि अगर हम चाहते हैं कि हमारा लोकतंत्र प्रगतिशील और मजबूत हो जाए, तो हमें राज्य सरकारों के कामकाज में क्षेत्रीय भाषाओं और केंद्र सरकार के कामकाज में हिंदी का उपयोग करना होगा.
उन्होंने कहा कि जब विदेशी गणमान्य लोग भारत आते हैं, तो वे अपनी भाषा में बोलते हैं, हमें इस भावना को समझना चाहिए. नायडू ने कहा कि सभी भारतीय भाषाएं जीवंत थीं और उनमें से प्रत्येक का अपना साहित्य, शब्दकोश और मुहावरा था. यह बहस का विषय नहीं था कि क्या हिंदी सभी भारतीय भाषाओं में सबसे अच्छी थी क्योंकि कई अन्य भाषाएं भी थीं जो हिंदी से पुरानी और अधिक जीवंत थीं.