पर्यावरण विशेषज्ञ, विशंभर चौधरी के मुताबिक राज्य सरकार की ही एक संस्था है एन ई ई आर आइ. उससे इन्होंने एक एनवायरामेंट इम्पेक्ट एसेसमेंट रिपोर्ट बनवाई जिसमें ऊंचाई का कहीं भी ज़िक्र नहीं है और राज्य सरकार से क्लीयरेंस ले ली. राज्य सरकार के पास ये क्लीयरेंस देने का कोई अधिकार नहीं था. इनका मुख्य द्वार 1050 मीटर की ऊंचाई पर है.
लवासा हिल स्टेशन एक हज़ार मीटर से ऊंची पहाड़ी पर बसाया जा रहा है. देश का कानून कहता है कि अगर किसी भी राज्य में एक हज़ार मीटर से ऊंची पहाड़ी पर कोई हिल स्टेशन का प्रोजेक्ट शुरू किया जाता है, तो अनुमति राज्य सरकार की बजाए केंद्र सरकार से लेनी होती है. लेकिन लवासा कॉर्पोरेशन पहाड़ी की ऊंचाई ही कम बता रहा है.
लवासा के मुताबिक-
* लवासा कॉर्पोरेशन का मानना है उनका प्रोजेक्ट केंद्र सरकार के पर्यावरण कानून के दायरें में नहीं आता है.
* उनका कहना है कि तुरंत प्रभाव से काम रोकने का नोटिस केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने जल्दबाज़ी में दिया है, साथ ही, उनके पक्ष को जानने की कोशिश भी नहीं की गई.
* उनका ये भी कहना है कि नोटिस राजनैतिक कार्यकरता मेधा पाटकर और उनके साथियों के दबाव में दिया गया है.
* कंपनी का कहना है कि प्रोजेक्ट को विवादों में घेरने की साजिश कंपनी के 2 हज़ार करोड़ के आईपीओ को रोकने के लिए की जा रही है.
इस मामले को लेकर एन ए पी एस ने मुंबई हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कंपनी के दावे को चुनौती दी है.
एक खुबसूरत शहर को लेकर खड़े हुए विवाद यहीं खत्म नहीं होते. इस पर कुछ और भी गंभीर आरोप है. लवासा प्रोजेक्ट पर केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार और जयराम रमेश आमने सामने है. इसबीच महाराष्ट्र सरकार ने पूरे मामले की जांच कराने का फैसला किया है और लवासा कॉरपोरेशन लिमिटेड ने बॉम्बे हाइकोर्ट में पर्यावरण मंत्रालय के नोटिस को चुनौती दी है.
महाराष्ट्र की सरकार के लिए लवासा शहर एक नई उलझन बन गयी है. पुणे से 70 किलोमीटर दूर बस रहे शहर पर पर्यावरण मंत्रालय ने रोक क्या लगाई – केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार और केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश आमने सामने आ गए है.
पवार का कहना है कि वहां हिल स्टेशन बनाने का फैसला लिया गया था. पानी की कोई परेशानी नहीं है. 18 हज़ार लोग वहां काम कर रहे है और 20 हज़ार अपार्टमेंट बेचे जा चुके है. मैं लवासा के प्रोजेक्ट को पूरा समर्थन देता हू. वालचंद ग्रुप एक इज्जतदार ग्रुप है.
जबकि पर्यावरण मंत्रालय का कहना है कि ऊंचाई 1100 मीटर है. अगर ऊंचाई ज्यादा है तो शहर को तोड़ दिया जाना चाहिए. नोटिस के बाद 18000 कामगार पिछले एक हफ्ते से खाली बैठे है.