क्या कभी आप सोच सकते हैं कि देश में अविवाहित बड़ी उम्र की महिलाओं को भी देह व्यापार में धकेलने में कोई पीछे नहीं है. बड़ी उम्र की महिलाओं की तस्करी की जाती है और उनके खरीददार होता है मजदूर वर्ग. जी हां, क्योंकि इन महिलाओं के दाम कम लगाएं जाते हैं और मजदूर वर्ग उन्हें खरीदकर जिंदगीभर के लिए अपना गुलाम बना लेता है.
ये खुलासा हुआ है राष्ट्रीय महिला आयोग की एक रिपोर्ट में. आयोग की एक टीम ने पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार में महिलाओं को देह व्यापार में धकेलने की घटनाओं पर संज्ञान लेते हुए इन इलाकों में दौरा किया और उसी दौरान ये तमाम जानकारियां सामने आईं.
रिपोर्ट में बताया गया है कि पश्चिम बंगाल में 40 से 45 साल की अविवाहित महिलाओं को काम देने के बहाने बहलाया फुसलाया जाता है और उनकी तस्करी कर उन्हें बिहारी मजदूरों को लगभग 25 हजार रुपये में बेच दिया जाता है. इन महिलाओं को घरों में पूरी तरह से कैद करके रखा जाता है, यदि कोई महिला बाहर भागकर पुलिस से शिकायत करने में कामयाब भी हो जाती है तो पुलिस भी उसकी शिकायत गंभीरता से नहीं लेती.
अपनी रिपोर्ट में आयोग ने खासतौर पर इस बात का भी जिक्र किया है कि देह व्यापार के लिए तस्करी की जाने वाली ज्यादातर महिलाएं, लड़कियां गरीब होने के साथ-साथ अनुसूचित जाति और जनजाति की होती हैं. कभी-कभार जब ऐसे मामले पकड़े भी जाते हैं तो पुलिस दोषियों के खिलाफ एससी-एसटी प्रीवेंशन ऑफ एट्रोसिटी एक्ट 1989 के तहत मामला दर्ज नहीं करती जिससे दोषी आसानी से छूट जाते हैं.
आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बंगाल के कई इलाकों में चल रही पारंपरिक शादी की रीति-रिवाज को भी महिलाओं की तस्करी के लिए जिम्मेदार माना है. शादी के बाद दूल्हा-दुल्हन तीन दिन के लिए गायब हो जाते हैं और इस दौरान कई बार खुद पति ही लोगों के साथ मिलकर अपनी पत्नी को बेच देता है. तीन दिन बाद लड़की के माता-पिता लड़की की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराते हैं. लेकिन तब तक लड़की को मीलों दूर भेज दिया जाता है. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि रिकवरी होने पर इन लड़कियों को सहारा देने के लिए शेल्टर होम तक की पुख्ता व्यवस्था नहीं है. इन इलाकों में हेल्प लाइन नंबर भी ठीक से काम नहीं करता. साथ ही महिलाओं को देह व्यापार में घकेलने वाले दोषियों को सजा देने के लिए बना कानून भी पुराना और लचीला हो चला है.
देह व्यापार के लिए लड़कियों की तस्करी को रोकने के लिए आयोग ने अपनी सिफारिशों में इमॉरल ट्रैफिकिंग प्रीवेंशन एक्ट 1956 को और ज्यादा सख्त बनाने की बात की है. साथ ही ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में लड़कियों को जागरूक करने के लिए कई कार्यक्रम शुरू करने को कहा है. आयोग का ये भी कहना है कि घर के बड़े सदस्यों को भी जागरूक करने के लिए ट्रेनिंग देने की जरूरत है जिससे वो भी अपनी लड़कियों को हर किसी के साथ जाने की अनुमति ना दें. साथ ही आयोग ने पुलिस को ऐसे मामलों में संवेदनशीलता के साथ पेश आने की भी सिफारिश की है.