जासूसी का मसला सिर्फ पेट्रोलियम और दूसरे चंद मंत्रालयों तक ही सिमटा नहीं है बल्कि इसकी आंच रक्षा मंत्रालय तक काफी पहले ही पहुंच चुकी थी. रक्षा मंत्रालय के उच्च स्तरीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक 15 फरवरी 2014 को रक्षा मंत्री के दफ्तर में तबके रक्षा मंत्री एके एंटनी और तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल विक्रम सिंह की गुप्त बातचीत की जानकारी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई तक को हो गई. सूत्रों के मुताबिक तब सरहद पर भारतीय सेना की तैनाती में फेरबदल की खबर पाकिस्तान को पहले ही लग गई और उसने उसके मुताबिक अपनी सेना की तैनाती में बदलाव कर दिया.
रायसीना हिल पर मौजूद साउथ ब्लॉक की पहली मंजिल पर कमरा नंबर 104 में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी और सेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह मौजूद थे. वे जम्मू कश्मीर और राजस्थान में पाकिस्तान से लगने वाली सरहद पर भारतीय सेना की तैनाती की योजना में कुछ फेरबदल पर बात कर रहे थे. रक्षा मंत्री से बात करने के बाद सेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह ने डायरेक्टर जनरल मिलिट्री ऑपरेशन यानी डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया को कुछ जरुरी निर्देश दिए. लेकिन इससे पहले कि फेरबदल होता, ये जानकारी लीक होकर पाकिस्तान पहुंच गई.
बंद कमरे में तत्कालीन रक्षा मंत्री और आर्मी चीफ के बीच जो गुप्त बात हुई, उसके खुलासे ने सबको चौंका दिया. भारत जब तक सीमा पर सेना की तैनाती में बदलाव करता उससे पहले ही पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई से जानकारी मिलने पर पाक सेना ने सरहद पर अपनी तैनाती में फेरबदल शुरू कर दिया. पाकिस्तान के इस चौंकाने वाले कदम की जानकारी तत्कालीन डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया ने तुरंत सेना प्रमुख को दी.
सूत्रों की माने तो इस हैरान कर देने वाली जासूसी की खबर को तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल बिक्रम सिंह ने रक्षा मंत्री को दी. बाद में रक्षा मंत्री एके एंटनी और सेना प्रमुख की मीटिंग की बातें लीक होने की जानकारी एंटनी ने तत्कालीन प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह को दी और उसके बाद प्रधानमंत्री ने इस मामले में साउथ ब्लॉक में वार रूम में एक गुप्त बैठक की.
इस खास मीटिंग की जानकारी सिर्फ तीन लोगों को थी जिसमें रक्षा मंत्री, सेना प्रमुख और डीजीएमओ शामिल थे. आजतक से एक्सक्लूसिव बातचीत में इस घटना के गवाह और तत्कालीन डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया ने माना कि जासूसी हुई थी और इसके पीछे कोई घर का भेदी था.
इसके बाद मामले की युद्धस्तर पर छानबीन शुरू हुई, तो पता चला कि डीजीएमओ में काम करने वाले एक अधिकारी के तार आईएसआई से जुड़े थे. इस अधिकारी पर कोर्ट मार्शल की कार्रवाई की गई. हालांकि इस मामले में सेना की तरफ से कोई ज्यादा जानकारी नहीं दी जा रही है.
आजतक ने रक्षा मंत्रालय में जासूसी के इस सनसनीखेज मामले के तीन गवाह तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी, सेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह और डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया से बात की. हालांकि पूर्व सेना प्रमुख जनरल बिक्रम सिंह ने कैमरे पर बात करने से इंकार कर दिया और रक्षा मंत्रालय पर मामला टाल दिया.
इस मामले में रक्षा मंत्रालय और सेना से भी आजतक ने संपर्क साधा, लेकिन उन्होंने आजतक के भेजे मेल का कोई जवाब नहीं दिया. इस बारे में तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी से बात की, तो उन्होंने इस बारे में सीधे-सीधे बोलने से इंकार कर दिया और मौजूदा सरकार पर बात टाल दी.
इस घटना के बाद साउथ ब्लॉक में रक्षा मंत्री और सेना प्रमुखों समेत सभी अहम दफ्तरों की डी-बगिंग की जिम्मेदारी मिलिट्री इंटेलिजेंस के अलावा आईबी को दी गई, जबकि प्रधानमंत्री कार्यालय के आदेश पर सारे साउथ ब्लॉक में सीसीटीवी कैमरे लगाये गए. पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी के ऑफिस में जासूसी का ये पहला मामला नहीं है. इससे पहले 16 फरवरी 2012 को एक सनसनीखेज मामले में रक्षा मंत्रालय अधिकारियों को पता चला कि रक्षामंत्री एके एंटनी के कार्यालय की कथित रूप से जासूसी की जा रही थी. इसके बाद रक्षा सचिव शशिकांत शर्मा ने इसकी जांच आईबी से कराई थी.