फसल के दाम नहीं मिले तो किसान जान देते हैं, आंदोलन करते हैं. सरकार आंदोलन खत्म करने के लिए समझौते करती है और राहत का ऐलान करती है. मगर फिर उस राहत की घोषणाओं का क्या होता है किसी को याद नही. राजस्थान में लहसुन किसान ने मंडी में दम तोड़ा तो आंदोलन भड़का और सरकार ने 3200 प्रति क्विंटल पर सरकारी खरीद का ऐलान कर आंदोलन शांत किया. मगर जब हमने सच्चाई जानने के लिए मंडी का दौरा किया तो हैरान करने वाले हालात नजर आए.
राजस्थान की सबसे बड़ी मंडियों में से एक प्रतापगढ़ मंडी में सरकार का लहसुन बिक्री केंद्र बना है. यहां बैनर लगा है जिस पर लिखा है 3200 प्रति क्विंटल के भाव से सरकार खरीद रही है लहसुन. उसके नीचे कृषि विपणन अधिकारी मांगीलाल अकेले बैठकर दो लहसुन के गाठ से खेल रहे हैं. इनका कहना है कि बीते सप्ताह से जबसे खरीद केंद्र शुरु किया तब से कोई खरीद नहीं की है. किसान आते हैं और भाव पूछकर चले जाते हैं. हम उनकी फसल नहीं खरीद सकते हैं क्योंकि सरकार ने लहसुन के साथ गिरदावरी रिपोर्ट यानी पटवारी का प्रमाण पत्र मांगा है कि किसान के खेत में इतनी फसल हुई है. बीते कई दिनों से पटवारी हड़ताल पर हैं तो किसानों को सर्टिफिकेट कौन दे.
लेकिन इसके ठीक बगल में इसी मंडी का नजारा बिल्कुल उल्टा है. किसानों के लहसुन से मंडी अटी पड़ी है. बाजार में किसान और व्यपारी के बीच भारी गहमागहमी है. ढेर लगाकर बैठे तमाम किसान अपनी-अपनी पर्ची दिखा रहे हैं जिस रेट पर मंडी समिति ने इनके लहसुन नीलाम किए हैं. ज्यादातर को 1000, 1200, 1500 प्रति क्विंटल तो किसी को 2500 और 2800 तक भी मिले हैं. इनकी मजबूरी है कि दूर-दूर से 3000 का भाड़ा लगाकर फसल लाए हैं और इसे बेचकर जो पैसे मिलेंगे उसी से घर चलाना है. ऐसे में जल्दी-जल्दी बेचें. अगर रुक गए तो बारिश शुरू हो गई है तो ये भी सड़ जाएगा. किसान कह रहा है कि सरकारी खरीद पर सर्टिफिकेट मांगा जा रहा है और वो पटवारी के हड़ताल की वजह से हम दे नहीं सकते हैं. व्यापारी इसका फायदा उठा रहे हैं. यूपी, एमपी, राजस्थान और गुजरात से आए व्यापारी कहते हैं कि हमें आगे इसका भाव नहीं मिल रहा तो हम महंगा कैसे खरीदें.
यानी राजस्व विभाग हड़ताल पर है इसलिए किसानों को सर्टिफिकेट मिलेगा नहीं, और तब तक किसान अपनी फसल औने-पौने भाव बेच देंगे और सरकार खरीद से भी बच जाएगी. सरकार ने नाम के खरीद केंद्र भी खोल लिए हैं.
पिछले साल यही लहसुन 50 रुपए से लेकर 100 रुपए किलो तक बिक रहे थे और इस साल 10 से रुपए से 28 रुपए तक बेचना मुश्किल हो गया है. व्यापारी कहते हैं कि हम क्या करें हमें आगे भी दाम नहीं मिल रहा है लेकिन इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं है कि किसान के 10 रुपए किलो का लहसुन हमारी थाली तक पहुंचते-पहुचते 80 रुपए कैसे हो जा रहा है.