छुट्टियों के इस मौसम में एक रेल टिकट हासिल करने के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है इसका अंदाजा ज्यदातर लोगों को होगा. ऐसे ही हालात से निबटने के लिए रेलवे ने तत्काल सेवा शुरू की थी. लेकिन क्या इस सेवा का फायदा लोगों को मिल रहा है. ज्यादातर लोगों का जवाब होगा नहीं. आज तक ने इस सवाल से पर्दा उठाया है कि आखिर भारतीय रेल में क्या है तत्काल का खेल औऱ कौन हैं इसके बड़े खिलाड़ी.
गर्मी की छुट्टी पर जाना हो या फिर किसी जरूर काम से, इस मौसम में रेल का एक टिकट हासिल कर पाना भी मुश्किल काम है. जहां जाइए वेटिंग की लंबी फेहरिस्त है. आप इंटरनेट के जरिए ऑनलाइन बुकिंग करवाइए या फिर घंटों कतार में खड़े रहिए, हाथ लगेगी सिर्फ निराशा ही. देश के चाहे जिस भी रेलवे स्टेशन पर चले जाइए हर तरफ अफरातफरी है, मारामारी है.
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कई घंटों के इंतजार के बाद भी ज्यादातर लोग खाली हाथ लौटने को मजबूर हैं. तत्काल टिकट का ये हाल कमोबेश हर छोटे-बड़े स्टेशन पर है. रेलवे स्टेशन से तत्काल का टिकट लेने आए ज्यादातर मुसाफिरों को लगता है कि उनकी ये मुसीबत इसलिए है क्योंकि सारे टिकट वेबसाइट के जरिए ऑनलाइन बुक हो जाते हैं.
ऑनलाइन बुकिंग भी आठ बजे चालू हो जाती है, काउन्टर भी नहीं खुलते रेलवे के, नैट से बुकिंग आठ बजे ही खुलती है, यहाँ ब्लॉक हो जाती है. लेकिन नेट से बुकिंग का भी वही हाल है. हैरानी की बात ये है कि सुबह 8 बजे के थोड़ी ही देर बाद वेबसाइट बिल्कुल ठीक काम करने लगती है. लेकिन तब तक सारे टिकट बुक हो जाते हैं. तत्काल के टिकट न तो सुबह से काउंटर पर कतार में खड़े लोगों को मिल रहा और न ही इंटरनेट पर नजरें गड़ाए बैठे लोगों को.
सवाल ये कि तत्काल सेवा के सारे टिकट आखिर कहां से बुक हो रहे हैं? आज तक ने इस सवाल का जवाब ऑनलाइन रिजर्वेशन वेबसाइट का काम संभालने वाली आईआरसीटीसी के अधिकारियों से जानने की कोशिश की, लेकिन कैमरे के सामने कोई नहीं आया. हां उत्तरी रेलवे के सीपीआरओ ने थोड़ी मेहरबानी जरूर की. उत्तरी रेलवे के सीपीआरओ आनंद स्वरूप का कहना है कि ये जो वेबसाइट है इसका काम आईआरसीटीसी देखती है और वो हमारी बात उन तक पहुंचा देंगे.
देश भर में तत्काल सेवा के करीब 12 हज़ार काउंटर हैं. रेलवे अधिकारियों का दावा है कि इतने लोग जब एक साथ काउंटर पर टिकट बुक कराते है तो वेबसाइट क्रैश हो जाती है. लेकिन रेलवे काउंटर की हकीकत ये है कि वहां भी ज्यादातर लोग खाली हाथ ही लौटते हैं. मतलब ये कि टिकट काउंटर पर खड़े लोगों को गलतफहमी है कि तमाम टिकट ऑनलाइन बुक हो जाते हैं और ऑनलाइन बुकिंग करने वालों को लगता है कि सारी बुकिंग काउंटर पर हो गई. तकनीक और भीड़ के नाम पर उपजे कंफ्यूजन के बीच दलाल और रेलवे अधिकारी सारी मलाई चट कर जाते हैं और लोगों के बीच छूट जाती हैं कुछ गलतफहमियां कि आजकल भीड़ कुछ ज्यादा ही है.