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फैक्ट फाइल: क्या विमान वाकई आकाश से गिराते हैं मानव-मल?

विमान से उड़ान के दौरान मानव मल गिरने के मामले में एनजीटी से लगी फटकार के बाद  DGCA ने सर्कुलर जारी किया है. इसके तहत अगर उड़ाने के दौरान मल नीचे गिरता है तो एयरलाइंस को 50 हजार रुपये का जुर्माना भरना पड़ेगा.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

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नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) के सामने एक मुश्किल चुनौती है- वो है आकाश से मानव मल गिरना. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) से फटकार खाने के कुछ दिनों बाद DGCA ने एयरलाइंस को सर्कुलर जारी किया. इसके मुताबिक विमान से उड़ान के दौरान मानव मल नीचे गिरता है तो 50,000 रुपए का जुर्माना भरना पड़ेगा.  

इसी मुद्दे पर DGCA  ने NGT  को बताया कि वो इस आदेश को लेकर ‘मजाक का पात्र’ बन गया है क्योंकि बीच हवा में विमानों के टॉयलेट से मानव मल को नीचे गिराना नामुमकिन है.  

विमानों से इस तरह मल गिरने की घटनाएं भारत और विदेश में कई जगह से रिपोर्ट हो चुकी हैं. ये मामला अक्टूबर 2016 में NGT के पास तब पहुंचा जब दिल्ली निवासी लेफ्टिनेट जनरल (रिटायर्ड) सतवंत सिंह दहिया ने शिकायत दर्ज कराई कि उनके दक्षिण दिल्ली स्थित घर की छत पर एक विमान से मल गिरा. हालांकि ये मामला विचाराधीन है लेकिन लोग हैरानी जता रहे हैं कि क्या वाकई ऐसा हो सकता है. इसी मुद्दे पर इंडिया टुडे की फैक्ट चेक टीम ने उड्डयन विशेषज्ञों से बात की.     

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पूर्व नागरिक उड्डयन महानिदेशक एच एस खोला ने जोर देकर कहा, ‘आधुनिक विमानों में ऐसा कोई सिस्टम नहीं है जिसके जरिए मानव मल को बीच हवा में गिराया जा सके.’   

मार्टिन कंसल्टिंग के सीईओ और उड्डयन तकनीकी विशेषज्ञ मार्क डी मार्टिन ने कहा, ‘आधुनिक विमान में ऑनबोर्ड कचरे (Waste) को एड्डिटिव्स के साथ ट्रीट करने के बाद अलग टैंक में स्टोर किया जाता है जो ईंधन, हाइड्रोलॉजिक, न्यूमेटिक और एयर कंडिशनिंग लाइनों से दूर होता है. ऑनबोर्ड सिस्टम में ये असंभव है कि बीच हवा में वेस्ट सॉफ्ट को खोल दिया जाए. ये विमान के जमीन पर खड़ा होने पर ही संभव हो सकता है जब लेवेटरी ट्रक को उसके साथ जोड़ा जाता है.’

मार्टिन ने कहा, 1970 के दशक में सीवर वेस्ट लाइन्स पर्याप्त तौर पर सील नहीं होती थी नतीजा कचरे के लीक होने की संभावना रहती थी. ये बीच हवा में भी हो सकता था. आधुनिक विमान में ऐसा कोई तरीका नहीं कि पायलट या कोई क्रू सदस्य वेस्ट लाइन को खोल सके. ये तभी संभव है जब विमान के इंजन बंद हो और वो जमीन पर पार्क हुआ हो.  

30 साल से भी ज्यादा पहले पुरानी पीढ़ी के विमानों में बीच हवा में कचरा गिराया जाता था. लेकिन वो भी कभी-कभार. उन विमानों में अलग तरह का इलेक्ट्रिक सिस्टम होता था. तब नीले रंग के रासायनिक कीटनाशक के जरिए टॉयलेट को फ्लश किया जाता था. इस नीले द्रव को ‘स्काईकेम’ कहा जाता था. इसके लीक होने की संभावना रहती थी. कचरा खराब वाल्व्स से लीक होकर विमान के बाहर निकलने पर फ्रीज हो जाता था. जैसे ही विमान अपेक्षाकृत गर्म हवा में पहुंचता तो कचरा नीचे गिर जाता था.   

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विमानों के मौजूदा वैक्यूम टॉयलेट सिस्टम को जेम्स केम्पर ने 1974 में डिजाइन किया. इसे सबसे पहले 1982 में एक बोइंग में फिट किया गया. विमान के टॉयलेट में तेज खिंचाव (Suction)  और टेफ्लॉन की दीवारों की वजह से फ्लश में बहुत कम पानी इस्तेमाल होता है. जैसे ही आप फ्लश बटन दबाते हैं तो बोल के नीचे लगा वैक्यूम कचरे को टैंक में खींच लेता है. फिर इसे एयरपोर्ट पर टैंकर के जरिए खिंचाव से ही निकाल कर डम्प किया जाता है. अगर पायलट और फ्लाइट अटेंडेंट्स चाहें भी तो बीच हवा में टैंक को खाली नहीं कर सकते. ऐसा इसलिए है क्योंकि वॉल्व विमान के बाहर होता है और इसे ज़मीन पर ही बाहर से खोला जा सकता है.   

आपने ब्लू आइस या ‘नीली बर्फ’  के बारे में सुना होगा. ये पुराने विमानों के सीवेज टैंक से लीक होकर बीच हवा में बाहर आकर फ्रीज हो जाने वाला कचरा होता था. इसमें कीटाणुनाशक नीला द्रव, पानी और मानव का मल-मूत्र भी होता था. जैसे ही हवा भारी होती थी तो ये ब्लू आइस रूपी कचरा जमीन पर गिर जाता था. ऐसा साधारण तौर पर विमान के नीचे उतरने पर होता था. विमान जब ऊंचाई से नीचे आता है तो हवा का तापमान भी बढ़ता है.      

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ऐसे में किसी पुराने जमाने के विमान के उड़ते वक्त नीली बर्फ आपकी छत पर गिरे तो समझ जाइएगा कि वो क्या है. वैसे आधुनिक विमानों में ऐसा होने की संभावना ना के बराबर है.

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