लगातार बढ़े होते जा रहे किसानों के प्रदर्शन के बाद जिला कलेक्टर स्वतंत्र कुमार सिंह के आदेश के बाद पूरे जिले में इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है. वहीं इसके अलावा बल्क मैसेज भेजने पर भी रोक लगा दी गई है. इस दौरान सुवासरा में किसानों और व्यापारियों के बीच झड़प भी हो गई है. व्यापारियों ने पूरे नगर को अनिश्चितकाल के लिए अनिश्चितकाल बंद कर दिया है.
अपनी तमाम समस्याओं और सरकार की किसान विरोधी कही जाने वाली नीतियों से आजिज आकर महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के किसान सड़कों पर उतर आए थे. इस बीच दोनों सरकारों और किसान संगठनों में सुलह की भी खबरें आईं, लेकिन फिर आंदोलन में फूट पड़ गई और दूसरे धड़ों ने आंदोलन जारी रखा है. अब यह आंदोलन और तेज होता दिख रहा है.
1 जून से चल रहा है आंदोलन
महाराष्ट्र में किसानों ने फसल खराब होने की वजह से कर्ज माफी तथा एमएसपी की गारंटी सहित विभिन्न मांगों के लिए एक जून को आंदोलन शुरू किया था. महाराष्ट्र के किसानों ने देवेंद्र फडणवीस सरकार के खिलाफ ‘किसान क्रांति’ नाम से आंदोलन
शुरु किया है, तो मध्यप्रदेश में भी किसानों ने अपनी मांग लेकर 1 से 10 जून तक मंडियों को माल न पहुंचाने का आंदोलन शुरु कर दिया है. आंदोलन कर रहे किसानों ने अहमदनगर जिले में बड़ी मात्रा में दूध हाईवे पर बहा दिया. वहीं किसानों ने चेतावनी दी
है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे आंदोलन जारी रखेंगे.
कहां से हुई शुरुआत
महाराष्ट्र में किसान आंदोलन की शुरुआत अहमद नगर जिले में गोदावरी नदी के किनारे बसे पुणतांबा गांव से हुई. सबसे पहले इसी गांव में हड़ताल हुआ.
ये हैं किसानों की प्रमुख मांगें
- किसानों के सभी कर्ज माफ किए जाएं
- स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू की जाए
- खेती के लिए बिना ब्याज के कर्ज दे सरकार
- 60 साल के उम्र वाले किसानों को पेंशन दिया जाए
- दूध के लिए प्रति लीटर 50 रुपये मिले
नासिक बना नया केंद्र
मुंबई, ठाणे, नवी मुंबई जैसे इलाकों को सब्जी और दूध की आपूर्ति करने वाला नासिक किसान आंदोलन का नया केंद्र बन गया है. इसलिए ऐसी आशंका है कि अगर यह आंदोलन खत्म नहीं हुआ तो इन सबका असर मुंबई और आस-पास के शहरों पर पड़ेगा.
किसान नेताओं और सरकार में सुलह नहीं हुई तो मुंबई समेत आसपास के शहरों में संकट गहरा सकता है. इन शहरों में तमाम जरूरी सब्जियों की कालाबाजारी शुरू हो सकती है. किसानों की हड़ताल संबंधित सभी निर्णय नासिक में लिए जाएंगे, जिसकी वजह
से हड़ताल में फूट पड़ने के संकेत दिख रहे हैं.
सुलह की कोशिश असफल
शुक्रवार की रात किसान नेताओं से बात करने के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने शनिवार को ऐलान किया था कि उनकी सरकार कम जमीन वाले किसानों का कर्ज माफ करेगी. उन्होंने कहा कि इस कदम से विदर्भ और मराठवाड़ा के ऐसे 80 फीसदी किसानों को
लाभ होगा. सीएम से समझौते के बाद पुणतांबा के किसानों की कोर कमिटी द्वारा हड़ताल वापस लेने का ऐलान किया गया, लेकिन सोमवार को महाराष्ट्र बंद की पुकार के साथ किसान फिर से एकजुट हुए.
इस आंदोलन में फूट पड़ गई. किसानों के आंदोलन की आगे की नीति तय करने के लिए नासिक में किसानों के नेताओं की सभा हुई, जिसमें 5 जून को महाराष्ट्र बंद रखने का निर्णय लिया गया. किसानों द्वारा सोमवार को महाराष्ट्र बंद करने की घोषणा की गई. सोमवार को कई जगहों पर सब्जियों से भरी गाडि़यों को रोक कर उनमें भरी सब्जियों को सड़कों पर फेंक दिया गया. इसी तरह दूध की गाड़ियों को भी रोककर दूध सड़क पर बहाया गया.
हड़ताल को मिला राजनीतिक रंग
किसानों की हड़ताल में अब राजनीतिक पार्टियों ने भी दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी है. राज्य के विभिन्न स्थानों में किसानों के आंदोलन में राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेताओं की सक्रिय भूमिका नजर आई. साथ ही शिवसेना ने भी हड़ताल को समर्थन का ऐलान
किया. शिवसेना कार्यकर्ताओं ने आंदोलन को सहयोग देते हुए उस्मानाबाद में चक्का जाम किया. महाराष्ट्र के कई इलाकों में अभी भी किसानों का प्रदर्शन जारी है. सोलापुर में किसानों ने मुख्यमंत्री फड़णवीस का पुतला भी जलाया और सिर मुंडवाकर विरोध
जताया. महाराष्ट्र के अहमदनगर के राहुरी में किसानों की हड़ताल का असर देखने को मिल रहा है.
मध्य प्रदेश के किसान आंदोलन में भी फूट
मध्य प्रदेश में किसानों की हड़ताल में सियासत हावी हो गई है. भारतीय किसान संघ ने मुख्यमंत्री के साथ वार्ता के बाद आंदोलन ख़त्म करने का फैसला किया है, लेकिन अन्य संगठनों ने आंदोलन नहीं छोड़ने का ऐलान किया है. मध्य प्रदेश के कई किसान
संगठन भी 10 दिन की हड़ताल पर हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय किसान संघ (बीकेएस) ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ वार्ता के बाद आंदोलन ख़त्म करने का फैसला किया है, लेकिन आंदोलन में अगुआ भारतीय किसान यूनियन और
राष्ट्रीय किसान मज़दूर संघ ने संघर्ष का रास्ता नहीं छोड़ने का ऐलान किया है.
उज्जैन में बैठक के बाद तय हुआ कि किसान कृषि उपज मंडी में जो उत्पाद बेचते हैं, उनका 50 फीसदी उन्हें नकद मिलेगा जबकि 50 फीसदी आरटीजीएस के ज़रिए यानी सीधा उनके बैंक खाते में आएगा. ये भी तय हुआ कि मूंग की फसल को सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदेगी. कई और निर्णय भी किए गए. बैठक के बाद भारतीय किसान संघ के शिवकांत दीक्षित ने घोषणा की कि चूंकि सरकार ने उनकी सारी बातें मान ली हैं इसलिए आंदोलन को स्थगित किया जाता है. वहीं राष्ट्रीय किसान मजदूर संघ ने इस समझौते की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि सरकार इस आंदोलन से घबराकर ऐसे हथकंडे अपना रही है, वहीं भारतीय किसान यूनियन ने कहा कि हड़ताल उनके संगठन ने शुरू की थी और खत्म भी वही करेंगे. दूसरे गुट अभी भी हड़ताल पर कायम हैं.
एमपी में आंदोलन की वजह
मध्य प्रदेश के किसान नेताओं का कहना है कि किसानों को उनके उत्पाद का वाजिब दाम नहीं मिल रहा है. जितना पैसा वे अपनी फसल उगाने में लगा रहे हैं, उतना उन्हें उसे बेचने में नहीं मिल रहा है. इससे किसान की हालत बहुत खराब हो गई है और वे
कर्ज के तले दबे हुए हैं. मध्यप्रदेश सरकार ने गेहूं को न्यूनतम समर्थन मूल्य 1625 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है, लेकिन सरकार किसानों के गेहूं को इस कीमत पर नहीं खरीद रही है, जिसके कारण उन्हें अपने उत्पाद को 1200 रुपये से 1300 रुपये
प्रति क्विंटल मजबूरी में बाजार में बेचना पड़ रहा है. इससे ज्यादा कीमत पर कोई भी किसान से गेहूं खरीदने को तैयार नहीं है. प्याज एवं संतरे तो बहुत ही कम दाम मिलने के कारण किसानों को फेंकने पड़ रहे है.