2014 में हुए चुनावों के समय किसानों से यह वादा किया गया था कि वर्ष 2022 तक उनकी आय दोगुनी हो जाएगी लेकिन 4 साल बीत जाने के बाद भी किसानों की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ है. टमाटर उत्पादन करने वाले किसान हों या फिर लहसुन उपजाने वाले या फिर प्याज उगाने वाले किसानों की बात करें, हर कोई परेशान है.
किसानों का कहना है कि जब से हमने इन फसलों को उपजाना शुरू किया है, तब से अब तक इतनी बुरी हालत में कभी नहीं रहे जितनी अब है. हालत यह है कि टमाटर और लहसुन किसान सड़क किनारे जानवरों को खाने के लिए फेंक कर रहे हैं.
जयपुर का सरना डूंगर का खोरा बिसल इलाका देशभर में टमाटर के उत्पादन के लिए जाना जाता है. शायद ही देश की कोई ऐसी जगह हो जहां के लिए यहां से ट्रक भरकर टमाटर नहीं जाते हैं, लेकिन इस बार हालत यह है कि किसानों के टमाटर खेतों में पक कर सड़ रहे हैं और कोई उन्हें खरीदने वाला नहीं है.
मंडियों में है जानवरों का डेरा
किसानों ने खेत के पास जो मंडी बनाई हुई हैं वहां इन दिनों जानवरों का डेरा है. भेड़- बकरियां, गाय-भैंस यहां पर टमाटर खाने के लिए झुंड बनाकर बैठे रहते हैं. कई दिनों तक किसानों के पास कोई खरीदार नहीं आता जिसके बाद उन्हें जानवरों के सामने फेंकने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचता. किसानों की हालत यह है कि वो 1 से लेकर 2 रुपये किलो तक की कीमत में भी टमाटर बेचने के लिए तैयार हैं लेकिन कोई उन्हें खरीदने नहीं आ रहा.
खेतों में सड़ रही किसानों की फसल
किसानों की फसल खेतों में ही सड़ रही है. किसानों का कहना है कि जब से भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते खराब हुए हैं उनकी हालत भी खराब हो गई है. जब देश में फसल ज्यादा होती थी तो टमाटर पाकिस्तान जाता था लेकिन पाकिस्तान बॉर्डर सीज है और देश में टमाटर की फसल इतनी ज्यादा हुई है कि कोई खरीदार नहीं है.
दरअसल पिछली बार लोगों ने टमाटर की कम फसल लगाई थी क्योंकि उसके अच्छे दाम नहीं मिले थे जिसके चलते इनकी कीमत काफी ज्यादा हो गई थी. इसी के चलते इस बाद अच्छी फसल पैदा की गई लेकिन अब इसके खरीदार नहीं मिल रहे हैं. टमाटर उत्पादक रामेश्वर यादव हैं. जिन्होंने एक एक बीघा में 3 लाख के टमाटर लगाए हैं लेकिन एक लाख भी कमाई भी नहीं हो रही है. ऐसे में 2 लाख का एक बीघे के हिसाब से उनपर कर्ज चढ़ गया है.
मिर्च उगाने वाले किसान भी परेशान
टमाटर उगाने वाले किसानों के अलावा मिर्च, प्याज और लहसुन उगाने वाले किसान भी परेशान हैं. उनका कहना है कि मिर्च कोई एक रुपए किलो के भाव भी नहीं खरीद रहा और वह किसान के घर ही खराब हो रही है.
लहसुन के भी नहीं मिल रहे दाम
राजस्थान के कोटा में लहसुन की बंपर पैदावार होती है और हर बार किसान को लहसुन का उचित मूल्य नहीं मिल पाता. ऐसे में यहां का किसान लहसुन को फेंकने पर मजबूर हो जाता है. कोटा में एशिया की सबसे बड़ी मंडी भामाशाह मंडी है और यहां पर पूरे हाड़ौती का किसान लहसुन लेकर आता है लेकिन इस बार भी किसान को लहसुन का दाम नहीं मिल पा रहा है. बाजार में उसका लहसुन तीन से चार रुपये प्रति किलो में बिक रहा है जो उसकी लागत भी नहीं है. ऐसे में किसान मंडी में माल नहीं ला पा रहा है और उसे खेतों में ही फेंक रहे हैं.
कोटा में 8 से 9 लाख मीट्रिक टन लहसुन का उत्पादन हुआ है, जिसमें से 1,54,000 मीट्रिक टन लहसुन बाजार हस्तक्षेप योजना के अंतर्गत खरीद करने का लक्ष्य रखा जिसकी कीमत 3,257 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित की गई लेकिन इसके लिए कड़े मापदंड रखे गए हैं जिसमें लहसुन की मोटाई 25 MM से अधिक होनी चाहिए और लहसुन पीला नहीं, गठीला हो. इसके साथ ही किसान को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराकर टोकन लेना पड़ेगा जिसमें उसको भामाशाह कार्ड, गिरदावरी रिपोर्ट, पासबुक, आधार कार्ड की अनिवार्यता रखी गई है. ऐसे में कई किसान यह औपचारिकताएं पूरी नहीं कर पा रहे हैं. जब किसान इस मापदंड को पूरा नहीं कर पाते तो उन्हें मजबूरन बाजार में 3-4 रुपये प्रति किलो के हिसाब से लहसुन बेचना पड़ता है.
कोटा के सांसद ओम बिरला पिछले दिनों केंद्रीय कृषि मंत्री से मिले थे और लहसुन की बाजार हस्तक्षेप योजना में खरीद की बात कही थी. उसके बाद सहकारिता मंत्री ने 26 अप्रैल से बाजार हस्तक्षेप योजना से लहसुन की खरीद की घोषणा की लेकिन कड़े मापदंडों के चलते इसमें किसानों का लहसुन नहीं खरीद पा रहा है. अभी तक केवल 1500 क्विंटल ही लहसुन खरीदा गया है.
किसान राजेंद्र प्रसाद का बताया कि वो 100 कट्टे लहसुन लाए हैं जिनकी कीमत उन्हें 1100-1200 रुपये मिल रही है. ऐसे में वो उसे फेंकने को मजबूर है. उन्होंने बताया कि इतनी कीमत में उन्हे इसका लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है.
प्याज भी रुला रहा है
केंद्र सरकार की ओर से प्याज की लंबाई निर्धारित करते हुए सरकारी रेट पर खरीद के फैसले को लेकर किसानों में भारी आक्रोश है. किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार बेतुके फैसले जारी कर किसानों के साथ मजाक कर रही है. 35 MM का प्याज की लंबाई निर्धारित करते हुए सरकारी दर पर खरीद के फैसले का किसानों ने आक्रोश जताया और कहा कि प्याज खेत में उगता है फैक्ट्री में नहीं बनता जिससे इसकी लंबाई और चौड़ाई को रोका जा सके .
देश में सीकर प्याज उत्पादन के लिए नासिक के बाद दूसरे पायदान पर है यहां सीकर में प्याज की पैदावार बंपर होती है लेकिन किसानों को उनकी लागत नहीं मिलने से निराशा ही हाथ लगती है. सीकर में प्याज 5-7 रुपये किलो में बिक रहा है. किसानों ने 35 MM के प्याज की लंबाई के फैसले को नकारते हुए सरकार से इस फैसले को वापस लेने की मांग की है.