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नेताजी से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करने की मांग पर भूख हड़ताल

नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लापता हुए 70 साल हो गये. एक बार फिर नेताजी से संबंधित गोपनीय फाइलें सार्वजनिक करने की मांग जोर पकड़ रही है. अबकी बार नेताजी के वंशज, आजाद हिंद फौज के बचे खुचे सैनिकों के परिजन और कई नागरिक संगठनों ने क्रमिक भूख हड़ताल के जरिये सरकार पर दबाव बनाने की पहल की है.

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सुभाष चंद्र बोस (फाइल फोटो)
सुभाष चंद्र बोस (फाइल फोटो)

नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लापता हुए 70 साल हो गये. एक बार फिर नेताजी से संबंधित गोपनीय फाइलें सार्वजनिक करने की मांग जोर पकड़ रही है. अबकी बार नेताजी के वंशज, आजाद हिंद फौज के बचे खुचे सैनिकों के परिजन और कई नागरिक संगठनों ने क्रमिक भूख हड़ताल के जरिये सरकार पर दबाव बनाने की पहल की है. हालांकि सरकार ने साफ कर दिया है कि किसी भी सूरत में गोपनीय फाइलें सार्वजनिक नहीं की जा सकतीं.

विमान हादसे से जुड़ी फाइल
ऐसी बातें सामने आईं थी कि 18 अगस्त 1945 को विमान हादसे में नेता जी की मौत हो गई थी लेकिन उसके बाद से नेताजी की कोई खबर नहीं है. अब तक उस हादसे की असलियत सिर्फ फाइलों में दर्ज है. इस असलियत को फाइलों से निकाल कर जनता तक पहुंचाने की मांग अब तक जारी है. तभी तो जंतर-मंतर पर क्रमिक भूख हड़ताल चल रही है. नाम है लांग मार्च फॉर नेताजी... इसमें नागरिक संगठन भी शामिल हैं.

वंशजों समेत तमाम लोगों की मांग
शहीदों के वंशज भी और साथ में नेताजी के परिवार की तीसरी-चौथी पीढ़ी के नौ दस सदस्य भी भूख हड़ताल में शामिल हैं. मांग वही पुरानी कि नेताजी से संबंधित गोपनीय फाइलें सार्वजनिक की जाय. नेताजी के प्रपौत्र चंद्र कुमार बोस का कहना है, 'सरकार को फाइलें सार्वजनिक करनी होगी. पीएम मोदी ने कहा है कि ये तो देश का कर्तव्य है. 100 से ज्यादा फाइलें केंद्र सरकार के पास हैं और 64 फाइलें बंगाल सरकार के पास'. नेताजी की भतीजी कहती हैं. 'हमारा आंदौलन चलता रहेगा. सरकार को हमारी बात माननी चाहिये. सरकार अपनी पर अड़ी है.'

सूचना आयोग ने भी कहा
हाल ही में मुख्य सूचना आयुक्त ने भी केंद्र सरकार से कहा था कि गोपनीय फाइलों को सार्वजनिक करने पर अपना रुख साफ करें. सरकार ने दोहरा दिया कि नहीं किया जा सकता. अब ये आंदोलन कितना असरदार होगा कहना मुश्किल है. लेकिन आंदोलनकारियों के इरादे भी साफ है.

लांग मार्च जारी रहेगा
लांग मार्च की आयोजक गोपा घोष कहती हैं, 'चाहे दो-चार जान चली जाएं लेकिन ये आंदोलन रुकेगा नहीं जब तक कि नेताजी से संबंधित फाइलें सार्वजनिक नहीं हो जातीं. सरकार की एक दलील ये भी है कि गोपनीय फाइलें सार्वजनिक करने से कुछ देशों के साथ हमारे रिश्ते बिगड़ जाएंगे. तो अब कशमकश ये है कि एक ओर जन भावना और दूसरी ओर विदेशी कूटनीति. देखें रिश्तों और भावनाओं की एक रस्साकशी में कौन जीतता है.

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