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पुलवामा पर क्यों खामोश हैं इमरान खान? पाक पर FATF से ब्लैकलिस्ट होने का खतरा

कमर आगा ने कहा कि पाकिस्तान को लेकर अमेरिका और पश्चिमी देशों का रुख दोहरा रहा है. वो एक तरफ तो इस्लामाबाद को अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए न होने देने के लिए चेतावनी देते है, तो वहीं अफगानिस्तान में उसके लिए बड़ी भूमिका भी तय करते हैं.

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पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (फाइल फोटो: @ImranKhanPTI)
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान (फाइल फोटो: @ImranKhanPTI)

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जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में हुए आतंकी हमले से पूरा देश स्तब्ध है. संयुक्त राष्ट्र से लेकर अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे देशों ने इस घटना की निंदा की है और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में भारत के समर्थन की बात कही है. लेकिन आम तौर पर हर मौके पर बोलने वाले, अमनो-अमान की बात करने वाले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस हमले को लेकर चुप्पी साध रखी है. पुलवामा में यह आतंकी हमला तब हुआ है जब आज से (रविवार) से पेरिस में फायनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की 5 दिवसीय बैठक होनी है. जिसमें पाकिस्तान पर भारत समेत तमाम देशों ने आतंकी फंडिंग के सबूत पेश किए हैं. लिहाजा एफएटीएफ की बैठक से पहले इसे इमरान की कूटनीतिक चुप्पी समझा जा सकता है.

विदेश मामलों के जानकार और पाकिस्तान पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार कमर आगा ने 'आजतक' से बातचीत में कहा है कि पाकिस्तान इस वक्त आर्थिक संकट से जूझ रहा है. ऐसे में भारत-पाक के बीच तनाव की स्थिति इस्लामाबाद को सूट करती है. क्योंकि इससे फोकस कहीं और शिफ्ट हो जाएगा और पाकिस्तान यही चाहता है. कमर आगा ने कहा कि पाकिस्तान पहले से ही एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट यानी निगरानी सूची में शामिल है. ऐसे में पेरिस में आज होने वाली यह बैठक और अहम हो जाती है जब अमेरिका, यूरोपीय संघ, फ्रांस, जर्मनी समेत तमाम देशों ने पाकिस्तान को अपनी जमीन से आतंकवाद को खत्म करने की बात कही है.

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सबूतों का डोजियर तैयार

इधर भारत भी एफएटीएफ (FATF) की बैठक के मद्देनजर सक्रिय हो गया है. पुलवामा हमले के बाद तमाम एजेंसियों पाकिस्तान के खिलाफ सबूतों का डोजियर तैयार कर विदेश मंत्रालय को सौंपने को कह दिया गया है. इससे पहले सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक में पाकिस्तान को दिया गया मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का स्टेटस वापस ले लिया गया है. जिससे पाक से आयात होने वाली किसी भी वस्तु पर अब 200 फीसदी कस्टम ड्यूटी लगेगी. अंतरराष्ट्रीय दबाव के बीच भारत का यह प्रयास रहेगा कि पहले से ही आर्थिक मोर्चे पर जूझ रहे पाकिस्तान को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग किया जाए. कमर आगा कहते हैं इमरान खान इस बैठक के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं. क्योंकि इस्लामाबाद ने आतंक की फंडिंग रोकने के लिए एक ब्लू प्रिंट पिछली बैठक में एफएटीएफ को सौंपा था.

मसूद अजहर की करतूत पड़ेगी भारी

बता दें कि एफएटीएफ की पिछली बैठक में पाकिस्तान को ग्रे-लिस्ट में शामिल किया गया था. इस बैठक में भारत समेत दुनिया के अन्य देशों ने लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों द्वारा धन उगाही और बैंकिंग सिस्टम के उपयोग करने के सबूत पेश किए. संयुक्त राष्ट्र ने इन आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध लगा रखा है. पाकिस्तान लगातार इस सूची से बाहर निकलने का प्रयास कर रहा है. लेकिन पुलवामा हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद द्वारा लिए जाने के बाद पाक की राह एफएटीएफ में आसान नहीं रहने वाली.

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एफएटीएफ की यह अहम बैठक पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की चुप्पी का तात्कालिक कारण हो सकता है. लेकिन इसका दूसरा बड़ा कारण इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के खुफिया एजेंसी आईएसआई और जैश से संबंध भी हो सकते हैं. बता दें कि जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मौलाना मसूद अजहर को पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का समर्थन हासिल है. इस बात की पुष्टि स्वयं भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल कर चुके हैं कि 1999 के कंधार विमान हाईजैक की घटना में आईएसआई ने तालिबानी आंतकियों का समर्थन किया था. इस घटना में मसूद अजहर समेत 3 आतंकी छोड़े गए थे.

आपको बता दें कि पिछले साल पाकिस्तान में हुए आम चुनाव में इमरान खान की पार्टी सबसे बड़ा दल बनकर उभरी थी. तब यूरोपीय संघ के चुनाव पर्यवेक्षकों ने सवाल उठाए थे कि चुनाव से पहले पाकिस्तान के राजनीतिक माहौल ने नतीजों को प्रभावित किया. पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने भी दावा किया था कि चुनाव की विश्वसनियता पर सवाल खड़े करने के पर्याप्त आधार हैं. आखिर ये संगठन किस ओर इशारा कर रहे थे, इसे समझने के लिए हमे उन घटनाक्रमों पर नजर डालनी होगी. पठानकोट एयफोर्स बेस हमले के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने जैश की भूमिका स्वीकार करते हुए मसूद अजहर समेत अन्य आतंकियों को गिरफ्तार करने के आदेश दे दिए.

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चुनाव में इमरान को मिला था मसूद का समर्थन

लेकिन पाकिस्तानी सेना ने यह सुनिश्चित किया कि मसूद अजहर और उसके साथियों की गिरफ्तारी न की जाए, बल्कि उन्हें आईएसआई के किसी सेफ हाउस में हिरासत में रखा जाए. ताकि ना तो शरीफ सरकार और ना ही भारत सरकार मसूद अजहर को हाथ लगा पाए. शरीफ के इस कदम पर मसूद अजहर ने उन्हें 'गद्दार' और मुशर्रफ व जरदारी से भी बदतर कहा था. पनामा पेपर्स में नवाज शरीफ का नाम आने के बाद पाकिस्तानी सेना को न्यायपालिका के जरिए उन्हें अपदस्थ करने का मौका मिल गया. जबकि अजहर मसूद ने चुनाव के दौरान पंजाब प्रांत में खुलकर इमरान खान के समर्थन में प्रचार किया.

पाकिस्तान में हुए आम चुनाव पर इस्लामाबाद हाई कोर्ट के जज अजीब सिद्दिकी ने गंभीर आरोप लगाए थे. उन्होंने कहा था कि खुफिया एजेंसी आईएसआई ने न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप किया और आरोप लगाया कि आईएसआई ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को कहा था कि चुनाव खत्म होने तक नवाज शरीफ और उनकी बेटी मरियम जेल से बाहर न आएं.

पाकिस्तान की सत्ता पर काबिज होने के बाद इमरान खान ने महज बयानों में भारत से बातचीत की वकालत की, और दूसरी तरफ सेना व आईएसआई की शह पर मसूद अजहर को अपने संगठन का विस्तार करने की खुली छूट मिलती रही. जाहिर है जिस सेना और आईएसआई की वजह से इमरान खान को कुर्सी मिली है उनके हाथ मसूद अजहर को लेकर बंधे ही रहेंगे. क्योंकि पाकिस्तानी सेना और आईएसआई भारत के खिलाफ जो प्रॉक्सी वार लड़ रहे हैं मसूद अजहर उस बिसात का सबसे बड़ा मोहरा भी है और दोनों का लाडला भी.

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