दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में महिलाओं का खतना करने की प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट ने गंभीर टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा है कि महिलाओं की खतना सिर्फ इसलिए नहीं की जा सकती है, क्योंकि उन्हें शादी करनी है.
सोमवार को इस मसले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि महिलाओं का जीवन केवल शादी और पति के लिए नहीं होता है. शादी के अलावा भी महिलाओं के दायित्व होते हैं. कोर्ट ने साफ कहा कि किसी महिला पर ही ये दायित्व क्यों हो कि वह अपने पति को खुश करे.
कोर्ट ने महिलाओं के खतने वाली प्रथा को निजता के अधिकार का उल्लंघन माना है. साथ ही ये भी कहा है कि यह लैंगिक संवेदनशीलता का मामला है और ऐसा किया जाना स्वास्थ्य ने लिए हानिकारक हो सकता है.
दरअसल, दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में नाबालिग लड़कियों की 'खतना प्रथा' के खिलाफ कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं. केंद्र सरकार ने भी इन याचिकाओं का समर्थन किया है. याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने अपनी दलील में कहा कि किसी भी आपराधिक कृत्य को इस आधार पर इजाजत नहीं दी सकती कि वह प्रैक्टिस का हिस्सा है. उन्होंने अपनी दलील में साफ कहा कि प्राइवेट पार्ट को छूना पॉस्को एक्ट के तहत अपराध है.
जिरह के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रथा के खिलाफ सख्त टिप्पणियां कीं. कोर्ट ने कहा कि ये किसी भी व्यक्ति के पहचान का केंद्र बिंदु होता है और ये एक्ट ( खतना) किसी की पहचान के खिलाफ है. कोर्ट ने माना कि इस तरह का एक्ट एक औरत को आदमी के लिए तैयार करने के मकसद से किया जाता है, जैसे वो जानवर हों.
पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धर्म के नाम पर कोई किसी महिला के यौन अंग कैसे छू सकता है. यौन अंगों को काटना महिलाओं की गरिमा और सम्मान के खिलाफ है.
वहीं केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना करना जुर्म है और वह इस पर रोक का समर्थन करती है.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित इस प्रक्रिया पर रोक लगाने वाली याचिका पर केरल और तेलंगाना सरकारों को भी नोटिस जारी किया था. याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील सुनीता तिहाड़ की याचिका पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है. तिहाड़ ने कहा कि भारत ने संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं. सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को भी इस मसले पर सुनवाई जारी रहेगी.