पट्टी में पोस्टमार्टम के बाद सरबजीत का शव उनके पैतृक गांव भिखीविंड ले जाया गया. इस पूरे सफर में परिवार भी साथ था. लेकिन अपने घर पहुंचकर सभी के सब्र का बांध टूट पड़ा. बहन रोई, पत्नी रोई और बेटियां भी फूट-फूटकर रो पड़ीं. पूरा गांव गम के सैलाब में डूब गया.
जो आंगन कभी भाई-बहन की खुशियों से गुलजार था, उसी आंगन में आज तिरंगे में लिपटा और ताबूत में पड़ा है शहीद सरबजीत सिंह का बेजान शरीर और अपनी बदनसीबी पर जार-जार रोए जा रही है बहन दलबीर कौर.
ताबूत में लगे एक छोटे-से शीशे के पीछे देख रही है कि भाई सोया हुआ है और अब उसे ये चीत्कार भी नहीं जगा सकती. उसकी रिहाई की तमाम कोशिशें बेकार गईं. अब वो कभी नहीं लौटकर आएगा...अपनी बहन से राखी बंधवाने नहीं आ सकेगा.
पंजाब के भिखीविंड में जब सरबजीत का शव अपने गांव पहुंचा तो पूरे परिवार का मानो सब्र का बांध टूट पड़ा. अपने उजड़े सुहाग को देख-देखकर फफक-फफक कर रो पड़ी सुखप्रीत. 23 सालों से पति की यादों को जेहन में बसाए करवाचौथ करती रही, लेकिन सुखप्रीत के जीवन में जैसे सुख लिखा ही नहीं था. पति को जी भरकर देखा भी नहीं कि उसके हमेशा के लिए रुखसत होने का वक्त आ गया.
जिन बेटियों के सपने में पापा हर रोज आते थे, वो आज सामने पड़ा अंतिम विदाई मांग रहा है. बेटियों के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. पत्नी का सीना छलनी हुआ जा रहा था और बहन के तो सारे अरमान ही मिट्टी में मिल गए.
अपने भाई को शीशे के पीछे से ही दलबीर चूमती रहीं और शीशे को यूं सहलाती रहीं, मानो भाई के गाल को सहला रही हों और अपनी बेबसी के लिए माफी मांग रही हो. जब से सरबजीत पर हमले की खबर आई थी तभी से पूरा परिवार आंखों-आंखों में ही वक्त काटता रहा और सोचता रहा काश ये तपस्या पूरी हो जाती. सरबजीत जिंदा बच जाते. गांव लौटी भी तो उनकी लाश.
रात के करीब दो बजे जब सरबजीत का पार्थिव शरीर भिखीविंड पहुंचा तो पूरा गांव उनकी की एक झलक पाने के लिए उमड़ पड़ा. हिंदुस्तान के लाल को घर की दहलीज तक लाने के लिए एक एक कर कंधा देते रहे और अपनी आंखों के आंसू पोंछते रहे.
पूरा गांव सरबजीत के परिवार के आंसू देखकर चीत्कार कर उठा.