मोदी को लेकर कल्बे सादिक के बयान को उनका अपना निजी बयान बताते हुए बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी ने कहा है कि मोदी के अतीत को भुलाने का कोई सवाल ही नहीं उठता. मोदी अगर इस बारे कुछ में कहते भी हैं तो भी उनपर भरोसा नहीं किया जा सकता.
मोदी पहले गुजरात के दंगों के दाग धोकर दिखाएं तभी उनके बारे में कुछ सोचा जा सकता. वहीं दूसरी तरफ सुन्नी धर्म गुरु खालिद रशीद फिरंगी महली ने भी इसे शिया धर्मगुरु का निजी नजरिया बताते हुये कहा है कि देश का मुसलमान मोदी को गुजरात में मुसलमानों के साथ हुए कत्लेआम के लिये कभी माफ नहीं कर सकता है. साथ ही उनका ये भी कहना था कि सबसे पहले गुजरात दंगों के लिये जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कारवाई हो और पीड़ितों को इंसाफ मिलना चाहिये.
लखनऊ के पेश इमाम ईदगाह के खालिद रशीद फिरंगी महली ने कहा, '2002 में जो कुछ भी हुआ है गुजरात में. हजारों मुसलमानों का कत्लेआम हुआ है. कोई आदमी अगर ये कहे कि जो 2002 दंगों के जिम्मेदार हैं उनको माफ कर दिया या भुला दिया जाये. उसके अतीत को नजरअंदाज कर दिया जाये तो ये पॉसिबल नहीं है, किसी भी सूरत में नहीं. पहले तो जरुरत इस बात की है कि जो कुछ गुजरात में हुआ उसपर सफाई पेश की जाए, जो मुजरिम है उनको सजा दी जाये और जो मजलूम हैं उनको इंसाफ दिया जाए. उसी के बाद इन सिलसिले में कोई बात सोची जा सकती है. इसको लेकर कोई कमेंट कर दे तो उसका ये पर्सनल नजरिया माना जा सकता है. लेकिन मुसलमानों का ऑन द होल नजरिया नहीं माना जा सकता है.
महली ने आगे कहा, 'कोई रास्ता या सूरत है मोदी को माफ करने का या उसे भुलाने का. मोदी के साथ सबसे बड़ा मसला कम्यूनलिज्म का है. 2002 गुजरात दंगों का है. अगर आप उनका ट्रैक रिकॉर्ड देखें. 3 बार मुख्यमंत्री रहे, एक बार भी किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया. किसी मुसलमान को इस लायक नहीं समझा कि उसे मिनिस्ट्री में शामिल किया जाए. इसके अलावा कश्मीर में जो धारा 370 का मसला है, यूनिफार्म सिविल कोड का मसला है. बाबरी मस्जिद का मसला है जबतक इन मसलों पर उधर से सफाई नहीं आती है तबतक आप इस बारे कुछ सोच ही नहीं सकते.
उधर लखनऊ में ऑल इंडिया बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के कनवीनर जफरयाब जिलानी ने कहा, 'ये उनका अपना पर्सनल विचार हो सकता है लेकिन हमारा तर्जुबा ये है कि संघ परिवार के लोगों का जबानी वादा क्या तहरीरी वादे की भी कोई अहमियत नहीं है. इन्होंने 1992 में जब बाबरी मस्जिद के बारे में जब सुप्रीम कोर्ट में केस चल रहा था. तो खुद चीफ मिनिस्टर नें और विश्व हिंदू परिषद के नायब सदर नें सुप्रीम कोर्ट में लिखकर हलफनामा दिया था कि बिल्डिंग को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जायेगा. जबकि वो लोग तय कर चुके थे कि इसको गिराना है और उन्होंने गिरा दी. बाबरी मस्जिद को शहीद कर दिया. ऐसे लोगों का जबानी वायदे की क्या अहमियत है.
जिलानी ने आगे कहा कि वैसे वो अभी ऐसा कोई वादा भी नहीं कर रहे हैं तो हम क्यों उनको बिना वजह ये ऑफर दें. ये तो आजमाए हुए लोग हैं. जिनके बारे में 10-11 साल से सिर्फ गुजरात में ही नहीं बल्कि देश का सेक्यूलर आवाम और मीडिया में कहा जा रहा है कि अब गुजरात दंगों के बारे में न्यूट्रल होईए. सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्शन के बाद उनको मुकदमा ट्रांसफर करना पड़ा. जिसने आजतक कुछ नहीं किया है तो उसके बारे में एक दो जुमले कहने से कैसे भरोसा कर सकते हैं.
यह पूछे जाने पर कि आखिर उन पर आप भरोसा कैसे कर सकते हैं, कोई सूरत है तो इस पर जिलानी ने कहा, 'देखिये भरोसा तो ये होता है कि मान लीजिए किसी से कोई गलती हो जाए. तो वो उस गलती को दूर करे, साथ में ये दिखाई भी दे कि वो उस गलती को दूर कर रहा है. गुजरात में जो अब तक हुआ है और जो उन्होंने अब तक नहीं किया. मान लीजिए उनपर इल्जाम लग रहे हैं, उनका डीजीपी उनपर इल्जाम लगा रहा है कि हमें स्टेट की तरफ से इंस्ट्रक्शन थे. उसके बारे में बताएं जिनके बारे में इल्जाम लग रहा है उनके बारे में इंक्वायरी करें. जो मुकदमे इन्होंने खत्म करा दिए या आज जिन मुकदमो में इंसाफ नहीं होने दे रहे हैं, उनमें इंसाफ दिलवाएं. जितनी भी इमारतें वहां गिरी थीं. मस्जिदें और दूसरी इमारतें जिनके लिये हाईकोर्ट ने डायरेक्शन दिया कि आप उनकी मरम्मत कराएं, जिन लोगों का अभी तक रिहैब्लिटेशन नहीं हो पाया है, उनको रिहैब्लिट कराएं. ये सब इंसाफ जब दिलाएंगे तब आदमी कुछ सोचेगा. एक दम से भरोसा नहीं कर सकता.