किसानों और विपक्ष के गुस्से और विरोध के बावजूद आखिरकार संशोधित भूमि अधिग्रहण बिल लोकसभा में पास हो ही गया. लेकिन सरकार ने इस संशोधन में भी कुछ और संशोधन किए हैं. कुछ खास बंदिशों को हटा दिया गया है. संशोधन में संशोधन करने के पीछे बढ़ता विरोध एक बड़ी वजह माना जा रहा है. हालांकि अभी भी बिल में कई ऐसे पेंच हैं जिन पर सरकार ने किसी की नहीं सुनी. भूमि अधिग्रहण विधेयक में जो संशोधित बिल पास हुआ है जानिए उसमें किए गए पांच मुख्य संशोधन-
01. खेती योग्य जमीन दायरे में नहीं
मोदी सरकार ने पहले संशोधन में खेती योग्य भूमि को अधिग्रहित करने का भी प्रस्ताव शामिल किया था. लेकिन अब लोकसभा में लाए गए बिल में संशोधन कर दिया गया है. अब बहुफसली भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा. साथ ही इंडस्ट्रियल कॉरीडोर के लिए सीमित जमीन लिए जाने का फैसला लिया गया है. इससे किसानों के एक बड़े वर्ग को राहत मिलेगी.
02. मंजूरी जरूरी
भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के मुताबिक अधिग्रहण के लिए 80 फीसदी किसानों की मंजूरी का प्रावधान था. उसे मोदी सरकार ने नए संशोधन में खत्म कर दिया था लेकिन अब लोकसभा में पास किए गए बिल के मुताबिक सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट के लिए होने वाले अधिग्रहण में किसानों की मंजूरी भी जरूरी होगी. इसी तरह से आदिवासी क्षेत्रों में अधिग्रहण के लिए पंचायत की सहमति जरूरी होगी.
03. अपील का अधिकार
मोदी सरकार ने 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में शामिल अपील के अधिकार को खत्म कर दिया था. पर अब संशोधन के बाद आए बिल में किसानों को अपील का अधिकार वापस मिल गया है. अब वे अधिग्रहण के किसी भी मामले में अपील कर सकेंगे. इससे उनके अधिकारों की सुरक्षा को बल मिलेगा.
04. मिलेगी नौकरी
पहले चले आ रहे भूमि अधिग्रहण कानून में प्रभावित किसानों को मुआवजा देने का प्रावधान था लेकिन किसी को नौकरी नहीं दी जाती थी. संशोधन के बाद लोकसभा में पास हुए बिल में प्रभावित परिवार के किसी एक सदस्य को नौकरी दिए जाने का प्रावधान किया गया है.
05. इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के लिए अधिग्रहण
भूमि अधिग्रहण बिल में शामिल किए गए एक प्रावधान से रेलवे ट्रेक और हाइवे के एक किलोमीटर दायरे में रहने वालों को परेशानी हो सकती है. सरकार ने फैसला कर लिया है कि इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के लिए अब रेलवे ट्रैक और हाईवे के दोनों तरफ एक किलोमीटर तक की जमीन का अधिग्रहण किया जा सकता है. संशोधित भूमि अधिग्रहण बिल के मुताबिक बंजर जमीनों के लिए अलग से रिकॉर्ड रखा जाएगा.
चार अप्रैल तक इस संशोधित बिल का कानून बनाया जाना जरूरी है, नहीं तो अध्यादेश रद्द हो जाएगा. अब राज्यसभा में विपक्ष ने अगर बिल का विरोध जारी रखा तो सरकार को संयुक्त सत्र बुलाना होगा. और वहां बहुमत होने की वजह से सरकार आसानी अपना काम कर लेगी. उधर, किसान संगठन दिल्ली में होने वाली किसान पंचायत की तैयारी में जुटे हैं. सरकार संसद में विपक्ष से तो निपट लेगी लेकिन किसानों से निपटना आसान नहीं होगा.