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सुप्रीम कोर्ट का आदेश- सीमित वक्त के लिए नहीं हो सकती अग्रिम जमानत

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एक आदेश में कहा कि अग्रिम जमानत किसी सीमित वक्त के लिए नहीं हो सकती. सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने अग्रिम जमानत को लेकर फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि कई मामलों में ये अग्रिम जमानत ट्रायल खत्म होने तक भी जारी रह सकती है.

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सुप्रीम कोर्ट (Photo-IANS)
सुप्रीम कोर्ट (Photo-IANS)

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  • 5 जजों की संविधान पीठ ने अग्रिम जमानत को लेकर फैसला सुनाया
  • कोर्ट के समन करने पर भी अग्रिम जमानत खत्म नहीं होगी

सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को एक आदेश में कहा कि अग्रिम जमानत किसी सीमित वक्त के लिए नहीं हो सकती. सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने अग्रिम जमानत को लेकर फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि कई मामलों में ये अग्रिम जमानत ट्रायल खत्म होने तक भी जारी रह सकती है. कोर्ट के समन करने पर भी अग्रिम जमानत खत्म नहीं होगी. कोर्ट ने यह भी कहा कि इससे पुलिस के जांच करने के अधिकार पर भी कोई असर नहीं पड़ेगा.

अक्तूबर 2019 में जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत सरन, जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस एस रविंद्र भट की सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सुशीला अग्रवाल और अन्य बनाम राज्य (दिल्ली NCT) और अन्य  के मामले से संबंधित दलीलें सुनकर फैसला सुरक्षित रखा था. ये मामला 15 मई 2018 को जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस मोहन एम शांतनगौदर और जस्टिस नवीन सिन्हा की पीठ के फैसले से उठा, जिसमें कुछ सवालों को संविधान पीठ को भेजा गया था.

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ये सवाल थे:

  1.  क्या सीआरपीसी की धारा 438 के तहत किसी शख्स को दिया गया संरक्षण एक निश्चित अवधि तक सीमित होना चाहिए ताकि वह शख्स ट्रायल कोर्ट के सामने सरेंडर कर सके और नियमित जमानत ले सके?
  2. क्या आरोपी को न्यायालय द्वारा बुलाने पर अग्रिम जमानत का समय और अवस्था खत्म हो जानी चाहिए?

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इस सुनवाई में कानून के इन सवालों पर संविधान पीठ ने विचार किया. दरअसल गुरबख्श सिंह सिब्बिया और अन्य बनाम पंजाब राज्य, सिद्धराम सतलिंगप्पा म्हात्रे बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य के मामलों में फैसला था कि अग्रिम जमानत सीमित अवधि के लिए नहीं होनी चाहिए.

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