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AAP से न निकाले जाएं योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण, 5 वजहें

योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण आम आदमी पार्टी (AAP) में बने रहेंगे या निकाले जाएंगे, इस फैसले में अब 8 दिन ही बाकी हैं. लेकिन इस आर्टिकल के लेखक को लगता है कि AAP को इन दोनों नेताओं को अपने साथ बनाए रखना चाहिए, इससे उसे सबसे कम नुकसान होगा. योगेंद्र और प्रशांत को पार्टी से न निकालने की ये रही पांच वजहें:

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Yogendra Yadav, Prashant Bhushan
Yogendra Yadav, Prashant Bhushan

योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण आम आदमी पार्टी (AAP) में बने रहेंगे या निकाले जाएंगे, इस फैसले में अब 8 दिन ही बाकी हैं. चर्चाए हैं कि 28 मार्च को होने वाली पार्टी की नेशनल काउंसिल की बैठक में दोनों नेताओं को निकाले जाने पर फैसला लिया जा सकता है. बैठक से पहले पार्टी में पक्ष और विरोध में लॉबीइंग का सिलसिला भी जारी है. लेकिन इस आर्टिकल के लेखक को लगता है कि AAP को इन दोनों नेताओं को अपने साथ बनाए रखना चाहिए, इससे उसे सबसे कम नुकसान होगा. योगेंद्र और प्रशांत को पार्टी से न निकालने की ये रही पांच वजहें:

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1. पार्टी का कैनवस बड़ा करते हैं दोनों
योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण आम आदमी पार्टी के उन नेताओं में से हैं जो विचार, बल्कि सीधे कहा जाए तो विचारधारा से सीधा जुड़ाव महसूस करते हैं. योगेंद्र गांधीवादी रुझान के हैं और समाजवादी जनपरिषद में रहे हैं. वहीं प्रशांत का राजनीतिक रुझान वाम की ओर माना जाता है. दोनों के बने रहने से पार्टी में समान-आधारित राजनीति और वैचारिकता का एक संतुलन बना रहता है, जो हमेशा पार्टी के पक्ष में ही काम करता है. साथ ही, इससे पार्टी का कैनवस और समर्थकों का दायरा भी बड़ा होता है. जनाधार के स्तर पर लेफ्ट भले ही लुटा-पिटा दिखता हो, पर वाम विचार से सहमत कई लोग आज भी AAP के लिए उपयोगी भूमिका निभा रहे हैं. कुछ झाड़ू के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं तो कुछ बाहर से ही हमदर्दी रखते हैं. मौजूदा हालात में योगेंद्र-प्रशांत के जाने से इन सबका समर्थन भी चला जाएगा. ऐसा नहीं है कि इससे पार्टी किसी कथित 'कम्युनल' छवि की ओर बढ़ चलेगी, लेकिन फिर भी सेक्युलर राजनीति के हिमायती इससे रुष्ट जरूर होंगे. पार्टी में इस्तीफों की झड़ी लग सकती है.

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2. योगेंद्र एक उपयोगी प्रवक्ता, कामयाब सैफोलॉजिस्ट
AAP के लिए योगेंद्र यादव को खोना एक उपयोगी शख्स को खोना होगा. वह देश के सबसे प्रतिष्ठित सैफोलोजिस्ट में से एक हैं और बेहद विनम्र और शानदार प्रवक्ता हैं. उनके सहज, सौम्य, शांत और धीर व्यक्तित्व का फायदा पार्टी को मिलता रहता है. जिस तरह से वह समाचार चैनलों पर बोलते हैं, उनकी शैली पर कई AAP समर्थक मुग्ध हैं. हालिया दिल्ली चुनाव में भी आम आदमी पार्टी को उनकी काबिलियत का खूब लाभ मिला. वह रणनीतिकारों में शामिल थे, हर विधानसभा सीट पर पार्टी की स्थिति पर सर्वेक्षण कर रहे थे और साथ ही मीडिया में पार्टी का पक्ष मजबूती से रख रहे थे.

जब सारे एग्जिट पोल पार्टी को बहुमत दे रहे थे, फिर भी वह अड़े हुए थे कि अब भी उनकी सीटें कम दिखाई जा रही हैं. उनके आकलन का सोशल मीडिया पर मजाक उड़ाया गया, लेकिन अंत में वह सच के काफी करीब साबित हुआ. इस चुनाव में योगेंद्र ने काफी रैलियां भी कीं और कुछ सीटों पर उनकी मौजूदगी का ठीक-ठाक असर भी पड़ा. हरियाणा में पार्टी के वह सबसे बड़े नेता हैं और पार्टी में उन्हें भावी मुख्यमंत्री के तौर पर भी देखा जाता रहा है. हरियाणा AAP के लिए अगली उपजाऊ जमीन हो सकता है, लेकिन योगेंद्र के जाने से उस जमीन का भावी किसान AAP से छिन सकता है.

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3. प्रशांत भूषण, क्रूसेडर अगेंस्ट करप्शन
यह बात प्रशांत भूषण पर भी लागू होती है. कागजों के आधार पर बात करें तो आम आदमी पार्टी में करप्शन के खिलाफ सबसे बड़े नायक केजरीवाल नहीं, प्रशांत भूषण हैं. वह हमेशा कुछ न कुछ खोजी निकालने में लगे रहते हैं और अहम मुद्दों पर याचिकाएं फंसाते रहते हैं. उनकी यह शैली आम आदमी पार्टी के तौर-तरीकों से काफी मेल खाती है. अपने वकालती उपक्रमों से उन्होंने कई बड़े घोटालों की कलई खोली है. पूर्व सीबीआई डायरेक्टर रंजीत सिन्हा 2जी केस की जांच करते हुए आरोपियों से मिल रहे थे, यह दावा करके उन्होंने हड़कंप मचा दिया था. विपक्षियों को घेरने के लिए दस्तावेज जुटाने हों या किसी सरकारी-तकनीकी या कोर्ट संबंधी आदेश की व्याख्या करनी हो, वह हर लिहाज से पार्टी के लिए तुरुप के इक्के हैं. स्वभाव से विनम्र और सार्वजनिक जीवन भी बेदाग. कश्मीर पर उनके विवादित बयान को छोड़ दें तो जनता में उनकी छवि भी अच्छी है. उनके जाने से उनकी याचिकाओं के सकारात्मक असर का श्रेय कभी AAP की झोली में नहीं डाला जा सकेगा.

4. निंदक नियरे राखिए
योगेंद्र और प्रशांत ने पार्टी को खड़ा करने में अहम रोल निभाया है. योगेंद्र के चेहरे पर स्याही पोती गई और केजरीवाल को रिहा करवाने के लिए प्रदर्शन करते हुए वह थाने में सोए. प्रशांत भूषण ने कश्मीर मुद्दे पर अपनी 'विवादित' लेकिन बेबाक राय खुलकर सामने रखी. योगेंद्र सार्वजनिक मौकों पर पार्टी की कमियां स्वीकारने से भी हिचकते नहीं हैं. कुल मिलाकर, दोनों की छवि से ऐसा लगता है कि पार्टी के भीतर वे जनपक्षीय मुद्दों पर हमेशा प्रखर रहेंगे और असहमतियों को व्यक्त करेंगे. साथ ही, भीतरी-बाहरी मुद्दों पर आलोचक के तौर पर हमेशा उपयोगी होंगे. एक पार्टी जो पारदर्शिता को अहम सिद्धांत बनाकर खड़ी हुई है, उसे आंतरिक मतभेदों से असुरक्षा नहीं होनी चाहिए.

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5. अब डैमेज कंट्रोल जरूरी है
पार्टी के शुभचिंतक और कार्यकर्ता उन्हें बाहर किए जाने से नाराज हैं. कार्यकर्ताओं को लगता है कि 2013 में जनता से पूछकर सरकार बनाने वाले अब अपने कार्यकर्ताओं की राय लेने से भी हिचक रहे हैं. कार्यकर्ताओं के लिए आज भी केजरीवाल ही सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन योगेंद्र और प्रशांत को जिस तरीके से बेदखल किया जा रहे, वह किसी को हजम नहीं हो रहा. खास तौर से पार्टी को खूब चंदा देने वाले एनआरआई समर्थक इससे खासे नाराज हैं. 'केजरीवाल ब्रिगेड' को लेकर कार्यकर्ताओं की राय बहुत अच्छी नहीं है. भले ही यह थूककर चाटने जैसा लगे, पर अपनी विश्वसनीयता बचाने के लिए AAP के पास यही रास्ता है कि वह योगेंद्र और प्रशांत को पार्टी में बनाए रखे. इससे उसे सबसे कम नुकसान होगा.

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