बंगलुरु में तंजानिया की छात्रा के साथ बदसलूकी और कुछ अन्य अफ्रीकियों की पिटाई के बाद नस्लीय हमले को लेकर चर्चा और बहस का दौर शुरू हो गया है. रविवार देर शाम की इस घटना के बाद कई लोग आश्चर्य जता रहे हैं कि कैसे आधुनिकता और प्राकृतिक खूबसूरती को समेटने वाला यह शहर अचानक उग्र हो गया. वैसे अगर इतिहास के पन्नों को पलटे तो पांच ऐसी घटनाएं सामने आती हैं, जो बताती हैं कि बंगलुरु का चरित्र उतना भी शांत और सरल नहीं है, जितना की राज्य के गृह मंत्री जी. परमेश्वरा बयान कर रहे हैं.
1994 में उर्दू बुलेटिन का प्रसारण और 25 की हत्या
साल 1994 में 2 अक्टूबर को कर्नाटक की सरकार ने दूरदर्शन पर 10 मिनट के ऊर्दू बुलेटिन की शुरुआत की. यह बुलेटिन कन्नड़ समाचार के ठीक बाद शाम साढ़े सात बजे प्रसारित किया गया. चुनाव सामने थे और आचार संहिता लागू थी, लिहाजा तब इसे वीरप्पा मोइली की सरकार की ओर से मुसलमान वोटरों को रिझाने की कोशिश के तहत लिया गया. शुरुआत विरोध प्रदर्शन से हुई, जिसने बाद में दंगे का रूप ले लिया. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, इस दौरान 25 लोगों की हत्या की गई, जबकि दर्जनों घायल हुए.
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बुलेटिन के विरोध में तब 6 अक्टूबर को शुरू हुए प्रदर्शन को कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री, कर्नाटक साहित्य अकादमी, कर्नाटक एडवोकेट्स एसोसिएशन और राज्य के फिल्म चैंबर ऑफ कॉमर्स का भी समर्थन मिला था. करीब एक हफ्ते बाद जब तक प्रशासन ने हिंसा पर काबू पाया, मुस्लिम इलाकों के कई घर तबाह हो चुके थे और गाड़ियां राख हो गई थीं.
1991 में कावेरी जल विवाद में 18 की हत्या
साल 1991 में 11 दिसंबर को कर्नाटक सरकार कानूनी लड़ाई हार गई और केंद्र सरकार ने आदेश दिया कि उसे कावेरी नदी से अरबों लीटर पानी तमिलनाडु के लिए छोड़ना होगा. इसके अगले ही दिन कन्नड़ कट्टरपंथियों ने बंगलुरु में प्रदर्शन शुरू किया, जो बाद में हिंसक हो गया और फिर दंगे का रूप अख्तियार कर लिया. बताया जाता है कि सड़क पर हर उस शख्स की पिटाई की गई जो कन्नड़ नहीं बोल पाता था. इसके साथ ही तमिलनाडु के नंबर प्लेट वाली गाड़ियों को आग के हवाले किया गया और उसमें सवार यात्रियों की पिटाई की गई. करीब एक लाख तमिल लोगों ने राज्य से पलायन किया, जबकि 15 हजार लोग बंगलुरु छोड़ने पर मजबूर हो गए. पुलिस ने कार्रवाई करते हुए हिंसक भीड़ पर कई बार फायरिंग की. इस पूरे घटनाक्रम 18 लोगों के मारे जाने की पुष्टि की गई.
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2012 में असम दंगों के बाद का डर
ऐसा नहीं है बंगलुरु में हिंसा सिर्फ कर्नाटक के मामलों को लेकर ही भड़की है. साल 2012 में असम में बोडो जाति के लोगों को बांग्लादेशी प्रवासी मुसलमानों ने एक-दूसरे पर हमला किया. असम दंगों में 77 लोगों की जान गई थी. बंगलुरु में बड़ी संख्या में नॉर्थ-ईस्ट के लोग बसते हैं. अफवाह फैली कि ईद के मौके पर मुसलमान बंगलुरु में नरसंहार की योजना बनाई है. बताया जाता है तब एक रात में 10 हजार रेलवे टिकट बुक किए गए. हालात ऐसे बने कि कर्नाटक के तत्कालीन गृह मंत्री आर. अशोक को बंगलुरु रेलवे स्टेशन का दौरा कर लोगों से शांत रहने की अपील करनी पड़ी.
2006 में एक्टर राजकुमार की मौत के बाद भड़की हिंसा
साल 1953 से 2000 तक कुल 206 फिल्मों में अभिनय करने वाले कर्नाटक के मशहूर अभिनेता राजकुमार की 12 अप्रैल 2006 को मौत हो गई. आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, मौत की खबर के फौरन बाद लोग दुख में सड़कों पर उतर आए और प्रदर्शन करने लगे. इस दौरान भीड़ हिंसक हो गई और प्रदर्शनकारियों ने बंगलुरु में सभी दुकानों को जबरदस्ती बंद करवा दिया गया. करीब 1000 गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया. पत्रकारों पर हमला किया गया. चार पेट्रोल पंप और चार सिनेमा हॉल में भी आगजनी की गई. इस हादसे में एक पुलिस कांस्टेबल समेत 8 लोगों की हत्या की गई.
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2007 में राजनीतिक रैली और सद्दाम हुसैन
बंगलुरु पुलिस ने 19 जनवरी 2007 को राजनीतिज्ञ जफर शरीफ को रैली करने की इजाजत दी. कांग्रेस से अलग हुए जफर को तब अपनी नई पीपुल्स फ्रंट पार्टी को मुसलमानों का चेहरा बनाने के लिए एक मुद्दा चाहिए था और उन्होंने इराक में सद्दाम हुसैन के तख्तापलट को मुद्दा बनाया. उसी दौरान आरएसएस एमएस गोलवलकर का जन्मदिन भी मना रही थी. बताया जाता है कि तब करीब 30 हजार लोगों की भीड़ ने स्टेडियम के बाहर लगे फगवा झंडों को फेंक दिया. दोनों पक्षों में हिंसा शुरू हुई तो आगजनी और पत्थरबाजी भी शुरू हो गई. आधिकारिक तौर पर इस घटना में पुलिस फायरिंग के दौरान एक अनाथ फैजल की मौत हो गई, जबकि दर्जनों लोग घायल हो गए.