एक तरफ फूड सिक्योरटी बिल और दूसरी तरफ अरबों की लूट. एक तरफ मुफ्त में अनाज बांट कर 82 करोड़ लोगो का पेट भरने का सवाल और दूसरी तरफ सवा सौ करोड़ लोगों के हक और जरुरत के पैसों में सेंध लगाकर अरबों-खरबों की लूट.
यानी सत्ता का हुनर लूट भी है और लूट की रकम से भूखे देश को दो जून की रोटी का जुगाड़ कराने का सपना भी है. देश के सामने पहली बार यह सवाल बडा होता जा रहा है कि आखिर गरीबी की रेखा से नीचे 80 करोड़ लोग हैं क्यों? और देश के सिर्फ 8 करोड़ लोगों को 80 करोड़ लोगों से ज्यादा संसाधन क्यों मुहैया कराये जा रहे हैं?
सवाल यह भी है कि एक तरफ अनाज से लेकर पानी और शिक्षा से लेकर इलाज तक के जरीये चंद लोग अरबों मुनाफा बना रहे हैं और देश के 70 फिसदी लोगो को पानी, शिक्षा और इलाज मुहैया नहीं है. अगर ध्यान दें तो जो सरकार फूड सिक्योरटी बिल के जरीये सस्ते अनाज की बात कर रही है उसके लिये एक लाख करोड़ का बजट है.
यानी अनाज बांटने के नाम पर लूट की पूरी संभावना है क्योकि सरकार की हर वैसी योजना जो व्यापक तौर पर लोगों के लिये होती है उसका चरित्र ही कैसे लूट में जा सिमटा है यह सरकार की योजनाओ से ही समझा जा सकता है. इसकी एक बानगी देखिए....
- मनरेगा में लूट.
- ग्रामिण स्वास्थ्य योजना में लूट.
- कोयला खादान आंवटन में लूट.
- संचार इन्फ्रस्ट्रक्चर में लूट.
- अन्न बंटवारे में लूट.
- किसानों के राहत पैकेज में लूट.
यानी जहां भी सवाल देश के बहुसंख्य तबके से जुड़ी योजनाओं का हुआ है वहां घोटाला और लूट मौजूदा वक्त का नायाब सच बन चुका है.
और सरकार की नीतियां गरीबों के लिये सरकारी योजनाओं और नीतियों के तहत निजी कंपनियो के हाथ क्यों मजबूत करती हैं यह इससे भी समझा जा सकता है कि अब जब सरकार फूड सिक्योरटी बिल के जरीये कांग्रेस के हाथ को आम आदमी के साथ जोड़ने की बात कह रही है तो पहली बार अनाज बांटने का बजट एक लाख करोड़ का है और देश के कृर्षि मंत्रालय का बजट इसका आधा भी नहीं है.