मेक इन इंडिया के तहत सेमी हाई स्पीड ट्रेनों को बढ़ावा देने के लिए ट्रेन सेट देश में ही बनाने की रेलवे की कोशिशों को झटका लगा है. 2500 करोड़ रुपए की लागत वाले ट्रेन सेट लाने के लिए रेलवे ने पिछले 2 साल में दो बार टेंडर निकाले हैं लेकिन विदेशी कंपनियों ने इस टेंडर में जुड़ी हुई मेक इन इंडिया की शर्त को देखते हुए पांव पीछे खींच लिए हैं.
दरअसल रेलवे को रफ्तार देने के इरादे से मोदी सरकार ने विदेशी ट्रेन सेट्स को दौड़ाने की योजना बनाई थी, इसके लिए 2015 में रिक्वेस्ट फॉर कोटेशन यानी आरएफक्यू मांगे गए थे. लेकिन टेंडर की शर्तों को देखते हुए जापानी और अमेरिकी कंपनियों ने इसमें रुचि नहीं दिखाई, रेलवे के आला अफसरों के मुताबिक शर्तों में संशोधन करते हुए दो बार रिक्वेस्ट फॉर कोटेशन मांगे जा चुके हैं लेकिन विदेशी कंपनियों ने इस मामले में अभी तक कोई दिलचस्पी नहीं ली है. लिहाजा ट्रेन सेट का मामला ठंडे बस्ते में जा चुका है.
दरअसल ट्रेन सेट्स वो ट्रेनें हैं जो दोनों तरफ चल सकती हैं और इनको मौजूदा रेल पटरियों पर आसानी से 160 किलोमीटर प्रति घंटे से लेकर 180 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलाया जा सकता है. राजधानी की तर्ज पर ट्रेन सेट दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-कोलाकाता के बीच चलाए जाने की योजना थी, यह ट्रेन सेट 20 कोच के बनने थे. जबकि चेयरकार ट्रेन सेट दिल्ली-चंडीगढ़, दिल्ली-अमृतसर, मुंबई-अहमदाबाद रूट पर चलने की योजना थी. यह ट्रेन सेट 15 कोच के होने थे, इसके प्रत्येक कोच में मिनी पेंट्री कार होगी.
इसमें शर्त यह थी कि जो कंपनी ट्रेन सेट्स का टेंडर हासिल करेगी उसके लिए देश में मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट लगाना जरूरी होगा ताकि मोदी सरकार के मेक इन इंडिया विजन को भी बल मिले. गौरतलब है कि ट्रेन सेट्स के सप्लाई एग्रीमेंट में इनके मेंटीनेंस को 7 साल तक दिए जाने का प्रावधान भी रखा गया था.
इसके लिए ऑपन बिडिंग के जरिए रेलवे 15 ट्रेन सेट्स खरीदने की योजना बनाई थी, इसके लिए रेलवे 21 अगस्त 2015 को RFQ यानी REQUEST FOR QUALIFICATION खोले गए. RFQ से पहले प्री बिडिंग सेशन में 25 डोमेस्टिक और विदेशी कंपनियों ने इस टेंडर के लिए रजिस्ट्रेशन कराया था. इन कंपनियों में एलस्टॉम, हिताची इंडिया प्रा लि, बॉम्बाडियर ट्रांसपोर्टेशन इंडिया प्रा लि, सीमेंस, ह्युडई रोटम जैसी बड़ी कंपनियां शामिल रही हैं.
RFQ की शर्तों को देखते हुए विदेशी कंपनियों ने इस में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. 2016 में रेलवे ने एक बार दोबारा कोशिश की लेकिन अलग-अलग कंपनियों से बातचीत करने के बावजूद कोई भी इसके लिए तैयार नहीं हुआ.
विदेशी कंपनियों ने टेंडर में दिलचस्पी इसलिए नहीं दिखाई है क्योंकि टेंडर की शर्तों में एक शर्त यह भी है कि 15 ट्रेन सेट में से 10 ट्रेन सेट भारत में ही बनाए जाने हैं और इसके लिए यहां पर कारखाना स्थापित करना होगा. विदेशी कंपनियों का तर्क यह है कि भारतीय रेलवे की दशा और दिशा तय नहीं है वह महज कुछ ट्रेन सेट तैयार करने के लिए हिंदुस्तान में कारखाना नहीं लगा सकते हैं. भारतीय रेलवे को इसके लिए ज्यादा ट्रेन सेट लेने होंगे और आगे के लिए भी उनको भरोसा दिलाना होगा.