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राजनीतिक दलों को नहीं मिले RTI के दायरे में लाने से छूट

दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए पी शाह और पूर्व कैबिनेट सचिव टी एस आर सुब्रमण्यम समेत कई प्रबुद्ध नागरिकों ने सांसदों से अपील की है कि वे ऐसे किसी विधेयक के पक्ष में मतदान नहीं करें, जिसमें राजनीतिक दलों को आरटीआई कानून के दायरे में लाने से छूट प्रदान की गई हो.

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दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए पी शाह और पूर्व कैबिनेट सचिव टी एस आर सुब्रमण्यम समेत कई प्रबुद्ध नागरिकों ने सांसदों से अपील की है कि वे ऐसे किसी विधेयक के पक्ष में मतदान नहीं करें, जिसमें राजनीतिक दलों को आरटीआई कानून के दायरे में लाने से छूट प्रदान की गई हो.
इस आशय की अपील के पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले लोगों में पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त शैलेश गांधी, आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक, मुंबई पुलिस के पूर्व आयुक्त जुलियो रिबेरो आदि शामिल हैं, जिन्होंने सांसदों से अपील की है कि कानून में संशोधन करने की बजाए राजनीतिक दल सीआईसी के उस आदेश को अदालत में चुनौती दे सकते हैं जिसमें सार्वजनिक प्राधिकार घोषित किया गया है.
अपील में कहा गया है कि, ‘मीडिया में ऐसी खबरें आई हैं कि संसद में एक विधेयक पेश किये जाने की संभावना है जो आरटीआई कानून में संशोधन से जुड़ा होगा. इसके पीछे आसरटीआई के संबंध में सीआईसी के राजनीतिक दलों को सार्वजनिक प्राधिकार घोषित किये जाने से जुड़े आदेश को कारण बताया जा

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रहा है.’ पत्र में कहा गया है कि अगर विधिक प्राधिकार की ओर से जारी कोई भी आदेश कानून सम्मत नहीं है तब सही प्रक्रिया उसे उपयुक्त मंच पर चुनौती देना है.

पत्र में कहा गया है कि, ‘सीआईसी के आदेश को उच्च न्यायालय में रिट याचिका के माध्यम से चुनौती दी जा सकती है और ऐसे कई उदाहरण हैं जहां ऐसे आदेश को रद्द किया गया है. किसी भी राजनीतिक दल ने आदेश पर स्थगन के लिए याचिका दायर नहीं की और अब वे संसद में कानून में संशोधन के जरिये

आदेश पर अपने विरोध को उचित और वैध बनाने की उम्मीद कर रहे हैं.’

सभी सांसदों को संबोधित पत्र में कहा गया है कि विधिक आदेश की अवहेलना करने से गलत उदाहरण स्थापित होगा और यह कानून के शासन को तोड़ने का काम करेगा. पत्र के अनुसार, यह कानून आज नागरिकों को विभिन्न इकाइयों से अधिक सम्मान दिलाने का काम कर रहा है. इसमें महत्वपूर्ण यह है कि

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आरटीआई कानून ‘हमारा पैसा, हमारा हिसाब’ के नारे पर आधारित है.
 इसमें कहा गया है कि संसद सहित सभी संस्थान ‘हम लोग’ की ओर से योजक कड़ी हैं लेकिन इनमें से कोई भारत के लोगों का स्थान नहीं ले सकता है.
पत्र में कहा गया है कि सूचना के अधिकार के तहत स्वयं को लाने से देश में किसी संस्थान को नुकसान नहीं पहुंचेगा. पत्र पर चुनाव विश्लेषक योगेन्द्र यादव और सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे के भी हस्ताक्षर हैं.

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