रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया विवाद पर पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा, "इतिहास में पहली बार हुआ है कि सरकार को रिजर्व बैंक की धारा 7 के अंतर्गत डायरेक्शन आदेश देना पड़ रहा है. इसका मतलब है कि बातचीत से कोई नतीजा नहीं निकला. धारा 7 में ही लिखा हुआ है कि यह आदेश देने से पहले सरकार को रिजर्व बैंक के गवर्नर के साथ कंसल्टेशन करना होगा. क्या वह हुआ या नहीं हुआ? अगर कंसल्टेशन हुआ और रिजर्व बैंक के गवर्नर उसके लिए राजी नहीं हुए जो सरकार का सुझाव था तभी सरकार को इस धारा का इस्तेमाल करना पड़ा है. यह अपने आप में अत्यंत गंभीर मसला है. मैं मानता हूं कि वित्तीय क्षेत्र में इससे ज्यादा गंभीर घटनाक्रम आज तक कभी नहीं हुआ है."
सरकार की नीति पर सवाल उठाते हुए सिन्हा बोले, "यह सरकार तो रोज ही इतिहास बना रही है. रोज कहीं ना कहीं सर्जिकल स्ट्राइक कर रही है. कुछ दिन पहले उन्होंने सीबीआई के ऊपर सर्जिकल स्ट्राइक किया अब उनका अगला टारगेट रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया है. बाजार में लिक्विडिटी तो कम है ही, हमारी अर्थव्यवस्था में आज पेमेंट क्राइसिस है जो ILFS के फेल होने की वजह से हुआ है, इस वजह से संकट और गहराया है.
अर्थव्यवस्था की रीड़ की हड्डी आज के दिन झुकी
हमारे देश में नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी (NBFCs) की एक बड़ी भूमिका है. सब मिला जुला कर अर्थव्यवस्था की जो रीड़ की हड्डी है, वह आज के दिन झुक गई है. इस परिस्थिति में सरकार ने शायद कुछ रिजर्व बैंक से चर्चा में कहा होगा कि वह ऐसे कदम उठाएं जो गवर्नर ने मानने से इनकार कर दिया होगा, तब इन्होंने निर्देश जारी किए हैं."
सरकार के आदेश को स्वीकार नहीं कर सकते
आगे बोलते हुए यशवंत सिन्हा ने कहा, "यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण होगा अगर उर्जित पटेल इस्तीफा देते हैं. सीबीआई में क्या हुआ? सीबीआई के डायरेक्टर और स्पेशल डायरेक्टर सरकार के द्वारा नियुक्त किए गए. उसी प्रकार आरबीआई के गवर्नर और डिप्टी गवर्नर जिन्होंने खुलेआम सरकार का विरोध किया, यह दोनों इसी सरकार द्वारा बनाए गए हैं. जब उनकी स्वायत्तता के ऊपर इतना भीषण आक्रमण हुआ तो जाहिर है कि रिजर्व बैंक विचलित हुआ और उन्होंने कहा कि यह सरकार के आदेश को स्वीकार नहीं कर सकते. तब सरकार ने उन्हें निर्देश दिया है धारा 7 के तहत."
सरकार संस्थाओं को नष्ट करने पर तुली
सरकार पर तंज कसते हुए सिन्हा बोले, "यह अत्यंत ही गंभीर मसला है और मुझे लगता है कि बड़े पैमाने पर देखें तो शायद यह सरकार हर उस संस्था को नष्ट करने पर तुली हुई है जिनका हमारे स्वतंत्र भारत के इतिहास में या उसके पहले भी बहुत बड़ी भूमिका रही है. मैं भी 4 साल वित्त मंत्रालय में था और उस समय के आरबीआई गवर्नर बिमल जालान के साथ बहुत ही मधुर संबंध थे, कभी कोई दिक्कत ही नहीं पैदा हुई तो आज क्या हो गया?"