उत्तर प्रदेश में चुनाव की सुगबुगाहट शुरू होते ही अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के दावे होने भी शुरू हो गए हैं. बीजेपी के नेता यहां तक दावे कर रहें है कि 2019 तक मंदिर का निर्माण हो जाएगा. वैसे यह संभव नही दिखता.
राम मंदिर निर्माण में हो सकती है देरी
'अयोध्या रिविजिटेड' के लेखक पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल का कहना है कि यह कहीं से भी संभव नही दिखता है कि 2019 तक मंदिर का निर्माण हो जाएगा. उनका कहना है कि अभी तक सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई भी शुरू नहीं हुई है. उन्हें नहीं लगता कि दो-तीन सालों में सुप्रीम कोर्ट सुनवाई पूरी कर कोई फैसला सुना सकता है.
अयोध्या रिविजिटेड ने खारिज की पुरानी धारणाएं
लेखक के तौर पर किशोर कुणाल का मानना है और उन्होंने अपनी पुस्तक में प्रमाणित भी किया है कि अयोध्या में राम मंदिर था. वहीं भगवान राम की जन्मभूमि भी है. अपनी किताब 'अयोध्या रिविजिटेड' में उन्होंने कई पुरानी धारणाओं को गलत साबित किया है.
अयोध्या गया ही नहीं था बाबर
जिस राम जन्मभूमि पर बाबरी मजिस्द का निर्माण की बात की जाती है उसे किशोर कुणाल ने प्रमाणिकता के आधार पर खारिज कर दिया है. उनका कहना है कि कथित बाबरी मस्जिद से बाबर का कोई लेना-देना नहीं था. बाबर न कभी अयोध्या गया, न तो किसी मंदिर को तोड़ा और ना ही कोई मस्जिद बनाई.
बाबर ने नहीं तोड़ा था कोई मंदिर
अपनी किताब में किशोर कुणाल ने बाबर को इस आरोप से मुक्त किया है कि उसने कोई मंदिर तोड़ा है. उन्होंने अपनी किताब में बाबर को एक उदार किस्म का सम्राट बताया है. फिर आखिर राम मंदिर को किसने तोड़ा और कब तोड़ा गया, इसका जवाब भी किताब में है. किशोर कुणाल लिखते है कि औरंजेब के शासन काल में 1660 में मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनाई गई थी.
यहां 1858 में हुआ था पहला सांप्रदायिक दंगा
किताब ने दस्तावेज के आधार पर इस बात को सिद्ध किया है कि 1858 ईस्वी तक उस मंदिर में नमाज भी पढ़ी जाती थी और पूजा भी की जाती थी. 1855 ईं में पहली बार सांप्रदायिक दंगा हुआ. उसके बाद ये अफवाह फैलाई गई कि हनुमानगढ़ी में जो मंदिर है वह अवध नवाबों के समय में बनाया गया था. उसके बारे में अफवाह फैलाई गई कि आलमगिरी मस्जिद के उपर ये मंदिर बनाया गया है.
अयोध्या ही है भगवान राम की जन्मभूमि
किशोर कुणाल ने कहा कि इतिहास में पहली बार सिद्ध किया गया कि वही पर राम मंदिर था और वही स्थान जन्मभूमि है . इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद ये सब प्रमाण आए हैं. किताब में जो कुछ भी लिखा गया है वो सब प्रमाणिक तौर पर लिखा गया है. इलाबाद हाईकोर्ट का फैसला 2010 में आया था जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
20 सालों से अयोध्या पर शोध कर रहे हैं कुणाल
किशोर कुणाल की मानें तो 20 वर्षों से वो अयोध्या पर शोध कर रहे हैं. उनके पास कुछ ऐसे दस्तावेज हैं जो सिर्फ उनके पास हैं. पूरी पुस्तक दस्तावेजों के आधार पर लिखी गई है. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जिन सबूतों के आधार पर फैसला दिया उसके बाद पिछले 6 वर्षों में काफी नए दस्तावेज और पुख्ता प्रमाण किशोर कुणाल ने अपनी किताब के जरिए पेश किया है. निश्चित तौर पर सुप्रीम कोर्ट में जब इस मामले की सुनवाई होगी तो ये दस्तावेज मुकदमे को अहम मुकाम दिलाने में काफी मददगार हो सकते हैं.