प्रतिबंधित माओवादी संगठन की एक पूर्व महिला काडर शोभा मंडी ने नक्सल आंदोलन को बुद्धिमान लोगों का एक ऐसा अड्डा कहा है, जहां बलात्कार, वाइफ स्वैपिंग, शोषण और महिलाओं के खिलाफ हिंसा अपवाद नहीं बल्कि बेहद आम बात है.
शोभा मंडी को उमा या शिखा के नाम से भी जाना जाता है. साल 2010 में हथियार डालने से पहले वह 25-30 सशस्त्र माओवादियों के एक ताकतवर ग्रुप का हिस्सा थीं. अपनी किताब 'एक माओवादी की डायरी' में शोभा कहती हैं कि उनके साथी कमांडर्स ने सात साल तक कई बार उनके साथ बलात्कार किया.
25 साल की शोभा मंडी का कहना है कि उन्होंने माओवादी विद्रोह के अगुवा रहे किशनजी समेत कई अन्य वरिष्ठ नेताओं को महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार के बारे में बताया था, लेकिन किसी ने उनकी सुध नहीं ली.
उनके मुताबिक, 'मैंने किशनजी की मौजदूगी में कुछ नेताओं की हरकत का विरोध भी किया, लेकिन किसी को यह पसंद नहीं आया. नेताओं ने दल के सदस्यों को निर्देश दिया कि वे मुझसे बात ना करें. मैं अकेली पड़ गई थी. मुझे धमकी दी गई थी कि अगर मैंने विरोध किया तो मुझे भयानक परिणाम भुगतने पड़ेंगे.'
शोभा साफ तौर पर कहती हैं कि उनके साथ जो कुछ हुआ वह अकेला मामला नहीं था. उनकी किताब के मुताबिक वरिष्ठ माओवादी नेता संगठन की ज्यादातर महिलाओं का शोषण करते थे. यही नहीं वरिष्ठ महिला माओवादी नेत्रियों के भी कई सेक्शूअल पार्टनर होते थे.
शोभा के मुताबिक, 'अगर कोई महिला गर्भवती हो जाती थी तो उसके पास गर्भपात कराने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता था. बच्चे को परेशानी के तौर पर देखा जाता था जो गुरिल्लाओं की जिंदगी में बाधा डाल सकता था.'
शोभा ने अपनी किताब में लिखा है, 'हर एक महिला को वस्तु के तौर पर देखा जाता था जो सभी पुरुष काडर की वासना को तुष्ट करने का साधन मात्र थी. मैं नक्सल आंदोलन में 2003 में शामिल हुई थी क्योंकि मुझे विश्वास दिलाया गया था कि यह एक ऐसी व्यवस्था है जहां स्त्री और पुरुष को समान समझा जाता है.'
वे कहती हैं, 'लेकिन मैंने वहां जो कुछ भी भुगता वह ग्रामीण महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़न से भी ज्यादा भयावह है.'
आज शोभा रांची के पास अपने पैतृक गांव में शांतिपूर्ण जीवन जी रही हैं, लेकिन अभी भी उनके जेहन में नक्सल आंदोलन के दौरान मिली यातनाओं की तस्वीरें बिलकुल ताजा हैं.