लोकपाल की मांग को लेकर देश ने एक बड़ा आंदोलन देखा है. इस आंदोलन के गर्भ से एक पार्टी निकली और वो दिल्ली की सत्ता पर काबिज भी हो गई. बीजेपी ने भी विपक्ष में रहते समय इस आंदोलन को भरपूर समर्थन दिया. जनता ने स्पष्ट बहुमत देकर केंद्र में उसकी सरकार बनवा दी. इस सरकार को बने आज चार साल पूरे हो गए हैं लेकिन देश को एक लोकपाल नहीं मिल सका है.
तकरीबन साढ़े चार दशक से ज्यादा समय से लटका हुआ लोकपाल बिल साल 2013 के अंत में पास हो गया था. अन्ना हजारे के जन आंदोलन और भारी जन दबाव के बाद यूपीए सरकार ने 2013 के दिसंबर महीने में इसे पारित किया और जनवरी 2014 में इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिली थी. उसके बाद मई में नई एनडीए सरकार आ गई. तबसे चार साल बीत गए, कानून भी है, लेकिन सरकार एक लोकपाल की नियुक्ति नहीं कर पाई है. इस वजह से सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े किए जाते हैं, कि वह लोकपाल की नियुक्ति करना भी चाहती है या नहीं.
इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि, 'लोकपाल भ्रष्टाचार से जुड़ी किसी भी शिकायत या आरोप की जांच करेंगे या करवाएंगे, चाहे वह प्रधानमंत्री से जुड़ा हुआ मामला क्यों न हो.'
हाल में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सरकार को फटकार लगाई थी, जिसके बाद गत मार्च महीने में लोकपाल की नियुक्ति के लिए मोदी सरकार ने एक मीटिंग की. लेकिन नतीजे के नाम पर अभी कुछ नहीं है.
हाल में राहुल गांधी ने भी लोकपाल नियुक्त न कर पाने के सवाल पर ट्वीट कर सरकार को घेरा था.
बीत गए चार साल
नहीं आया लोकपाल
जनता पूछे एक सवाल
कब तक बजाओगे 'झूठी ताल'?
Are the ‘defenders of democracy’ & ‘harbingers of accountability’ listening?#FindingLokpal pic.twitter.com/v9Kc2Io3Ur
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) January 5, 2018
लोकपाल की नियुक्ति में एक तकनीकी पेच
लोकपाल की नियुक्ति में एक तकनीकी पेच भी है. असल में लोकपाल कानून में लोकपाल की चयन समिति को लेकर दी गई गाइडलाइन के मुताबिक चयन समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के अलावा इन सबकी सलाह से चुना गया कोई गणमान्य नागरिक होगा. इस बार लोकसभा में किसी को भी नेता प्रतिपक्ष का दर्जा नहीं मिला है. लोकसभा चुनावों में कांग्रेस 44 पर ही अटक गई थी, जिसके बाद मोदी सरकार ने कांग्रेस के किसी नेता को नेता प्रतिपक्ष का दर्जा देने से इनकार कर दिया था. नियम के मुताबिक लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने के लिए 54 सीटें ( लोकसभा के सदस्यों की कुल संख्या का दस फीसदी) होना जरूरी है.
अगर मोदी सरकार चाहती तो इस पेच को बहुत पहले ही सुलझा सकती थी. सीवीसी (मुख्य सतर्कता अधिकारी), सीआईसी (मुख्य सूचना अधिकारी) और यहां तक की सीबीआई चीफ की नियुक्ति के लिए भी पहले ऐसी शर्त जरूरी होती थी, लेकिन तीनों के चयन नियम में संशोधन हो चुके हैं और 'नेता प्रतिपक्ष' की जगह 'सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता' लिखा जा चुका है. लोकपाल के लिए भी ऐसा किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
27 अप्रैल 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल की नियुक्ति के मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि लोकपाल एक्ट पर बिना संशोधन के ही काम किया जा सकता है. केंद्र के पास इसका कोई जस्टिफिकेशन नहीं है कि इतने वक्त तक लोकपाल की नियुक्ति को सस्पेंशन में क्यों रखा गया. लोकपाल की नियुक्ति बिना नेता विपक्ष के ही हो सकती है. पीठ ने कहा था कि यह एक व्यावहारिक कानून है और इसके प्रावधानों को लागू करने में किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद केंद्र सरकार ने इस साल फरवरी माह में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया था कि भ्रष्टाचार निरोधक संस्था के लिए लोकपाल की नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है और इसके लिए चयन समिति की बैठक एक मार्च को होगी. इस समिति में प्रधानमंत्री भी शामिल हैं.
न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति आर भानुमति की पीठ को अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सूचित किया कि लोकपाल की नियुक्ति के लिए कदम उठाए गए हैं और इस मुद्दे पर चर्चा के लिए एक मार्च को प्रधानमंत्री, प्रधान न्यायाधीश, लोकसभा अध्यक्ष और विपक्ष के सबसे बड़े दल के नेता वाली चयन समिति की बैठक होगी. लेकिन कांग्रेस ने एक मार्च को होने वाली इस बैठक का बहिष्कार कर दिया.
कांग्रेस की नाराजगी
लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने केंद्र सरकार के निमंत्रण को ठुकरा दिया. खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लिखे पत्र में कहा कि बैठक में विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में आमंत्रण देकर विपक्ष की आवाज़ को दबाने की कोशिश की जा रही है. खड़गे विपक्ष के नेता नहीं हैं, इस वजह से मोदी सरकार ने लोकसभा में कांग्रेस के नेता को ‘विशेष आमंत्रण’ के तौर पर बैठक में शामिल होने के लिए बुलाया था. इस बैठक में लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन , पीएम नरेंद्र मोदी और सीजेआई दीपक मिश्रा ने हिस्सा लिया.
खड़गे ने पीएम मोदी को लिखे अपने लेटर में कहा, 'विशेष तौर पर भेजा गया आमंत्रण सबसे जरूरी भ्रष्टाचार विरोधी निगरानी समूह की चयन प्रक्रिया से विपक्ष की आवाज को बाहर करने का एक सम्मिलित प्रयास है.'
अप्रैल, 2018 में लोकपाल की नियुक्ति के केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें उम्मीद है कि सरकार जल्द ही लोकपाल की नियुक्ति करेगी. हालांकि, कोर्ट ने फिलहाल लोकपाल की नियुक्ति को लेकर आदेश जारी करने से इंकार कर दिया है.
केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि नामचीन हस्ती की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया जारी है. वहीं कॉमन कॉज की ओर से प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार जान-बूझकर नियुक्ति को लटका रही है. पिछली सुनवाई में केंद्र ने कहा था कि लोकपाल की नियुक्ति को लेकर मीटिंग हुई. केंद्र ने कहा कि सबसे पहले एमिनेंट जूरिस्ट की नियुक्ति करेंगे. डीओपीटी ने सुप्रीम कोर्ट में अपना हलफनामा दाखिल किया. 1 मार्च की मीटिंग के बारे में भी बताया.
लोकपाल की नियुक्ति में देरी को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी द्वारा सवाल उठाए जाने के बाद कांग्रेस पार्टी ने चौतरफा हमला किया. कांग्रेस नेता शकील अहमद ने एक वेबसाइट से कहा, 'यह गुजरात से लेकर नीरव मोदी तक भ्रष्टाचार के सभी मामलों पर पर्दा डालने की सरकार की सोची-समझी कोशिश है. जब वे विपक्ष में थे, तो लोकपाल पर तत्काल अमल चाहते थे और यहां तक कि भ्रष्टाचार विरोधी अभियान का भी हिस्सा थे. अब वे फाइलों पर बैठे हैं.'
फिर एक समय सीमा
एक वेबसाइट के मुताबिक सरकार ने लोकपाल के कामकाज के लिए नियमों का मसौदा तैयार करने की खातिर 15 जून की समय-सीमा तय की है. कार्मिक, जन शिकायत और पेंशन मंत्रालय बाकी संबंधित पक्षों के साथ मिलकर 'लोकपाल कानून की धारा 59 के तहत 11 नियम बनाने की तैयारी में है, जो शिकायतों से जुड़े चार्टर, अफसरों की नियुक्ति और लोकपाल के अधिकारों से जुड़े अन्य मामलों को परिभाषित करेगा.'