भारत में दुनिया की सबसे ज्यादा युवा आबादी बसती है. इस देश में करीब 30.56 करोड़ युवा बसते तो हैं लेकिन शायद इनमें से कुछ ही जानते हैं कि 12 अगस्त का दिन उनके नाम है.
युवाओं से जुड़े मुद्दों को गंभीरता से सामने लाने के लिए यूनाइटेड नेशंस ने हर साल 12 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय युवा दिवस मनाने का ऐलान किया. इस दिन तमाम सामाजिक और युवा संगठन वर्कशॉप और अलग-अलग इंवेट आयोजित करते हैं. भारतीय गणतंत्र अपनी आजादी के 69वें साल में है. आइए देखते हैं किन मुद्दों से भारतीय युवा को आजादी चाहिए...
1. लिंग भेद से आजादी-
यह ऐसी आजादी है जिसके लिए हर लड़की जन्म लेने के साथ ही लड़ना शुरू कर देती है. घर में ज्यादा तवज्जो न मिलने से लेकर अपनी मर्जी के कपड़े न पहन पाने तक, लड़कियों को कई सारी मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं. यहां तक कि शादी करने में भी उनकी पसंद का ख्याल नहीं रखा जाता.
(फिल्म 'कॉरपोरेट' के एक सीन में बिपाशा बसु)
2. ऑनर किलिंग से आजादी
देश के कई हिस्सों में खाप जैसी पंचायतों के तुगलकी फरमान युवाओं की इच्छा के आड़े आते हैं. खास तौर पर हरियाणा में खाप का असर ज्यादा है. जहां जरा सी बात पर लोग आत्म सम्मान के नाम पर बेटियों को मार देते हैं. कई मामलों में लड़के लड़की दोनों की हत्या कर दी कई. समलैंगिकता, प्रेम विवाह, अपनी मर्जी से लड़का चुनना ये सारी बातें खाप के नियमों के खिलाफ मानी जाती हैं, जिनसे मुक्ति जरूरी है. यही नहीं, पुलिस भी ऐसे कामों में तुगलकी फरमान सुनाती है. हाल ही में मुंबई में पुलिस ने होटल के कमरों से जोड़ों को गिरफ्तार किया जबकि वह अपनी मर्जी से साथ थे.
(फिल्म 'दोस्ताना' का एक सीन)
3. जबरन करियर तय करना
देश के ज्यादातर युवा इस मुश्किल से जूझ रहे हैं. 18 साल की उम्र तक पहुंचते ही उन पर करियर को लेकर सवालों की झड़ी लगा दी जाती है और आखिर में उन पर जबरन कुछ भी थोप दिया जाता है. ज्यादातर मां-बाप बच्चे की ख्वाहिश पूछे बिना ही उसे इंजीनियर या डॉक्टर बनने के लिए मजबूर करते हैं.
(फिल्म '3 ईडियट्स' का एक सीन)
4. अपना नजरिया रखने की आजादी
लोकतंत्र में रहने के चलते हर किसी को अपना नजरिया रखने की आजादी होनी चाहिए लेकिन भारत ऐसा देश है जहां अपनी बात रखना आपके लिए मुसीबत बन सकता है. सोशल मीडिया ने इस वॉर को और बढ़ाया है. भीड़ से अलग हटकर अगर आप अपा नजरिया पेश करते हैं तो किसी न किसी राजनीतिक पार्टी या उसके समर्थकों के शिकार बन जाते हैं.
(फिल्म 'रंग दे बसंती' की एक तस्वीर)
5. सुरक्षा की चिंता से आजादी
हर मां-बाप अपने बच्चे को सुरक्षित देखना चाहते हैं लेकिन वे इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं कि घर की चारदीवारी में कैद करके बच्चों को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता. खासकर लड़कियों के मामले में परिजन ज्यादा सख्त होते हैं. उनके घर से निकलने और घर लौटने के समय को लेकर वो ज्यादा चिंतित होते हैं क्योंकि उन्हें यौन उत्पीड़न, अपहरण या हत्या जैसी वारदातों का डर सताता रहता है.