राफेल डील पर देश में मचे सियासी घमासान के बीच फ्रांस की वेबसाइट मीडियापार्ट ने दावा किया है कि दसॉल्ट के सामने राफेल डील के लिए रिलायंस के साथ सौदे की शर्त रखी गई थी. वेबसाइट ने दावा किया है कि दसॉ के प्रतिनिधि ने अनिल अंबानी की कंपनी का दौरा किया तो सैटेलाइट इमेज से पता चला कि वहां सिर्फ एक वेयर हाउस था, इसके अलावा किसी तरह की कोई सुविधा मौजूद नहीं थी.
वेबसाइट की ओर से जारी किए गए दस्तावेजों की मुताबिक फ्रेंच कंपनी दसॉ के सामने अनिल अंबानी के कंपनी रिलायंस के साथ राफेल डील करने की शर्त रखी गई थी और इसके अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं दिया गया था. दसॉ एविएशन के डिप्टी चीफ एग्जीक्यूटिव ऑफिसर ने नागपुर में दोनों कंपनियों के स्टाफ के सामने प्रेजेंटेशन देते वक्त यह बात साफ तौर पर कही थी. मीडियापार्ट ने अपने दस्तावेज में यह दावा किया है.
दसॉ के डिप्टी सीईओ ने यह बयान 11 मई 2017 को नागपुर में दिया था. हालांकि जब मीडियापार्ट की ओर से इस बारे में दसॉ कंपनी से प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने इस दस्तावेज की बातों को सिरे से खारिज करते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया था.
Explosive revelation in French media: an internal Dassault document says the Reliance offset deal was a “trade-off”, “imperative and obligatory” to clinch the #Rafale deal. @INCIndia https://t.co/2xiMmgwL9K
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) October 10, 2018
कुछ दिन पहले ही फ्रेंच वेबसाइट ने फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के हवाले से लिखा था कि राफेल डील के लिए भारत सरकार की ओर से अनिल अंबानी की रिलायंस का नाम प्रस्तावित किया था. दसॉ एविएशन कंपनी के पास कोई और विकल्प नहीं था. ओलांद का कहना था कि भारत सरकार की तरफ से ही रिलायंस का नाम दिया गया था. इसे चुनने में दसॉ की भूमिका नहीं है.
ओलांद का इंटरव्यू छापने वाली मीडिया पार्ट के अध्यक्ष एडवे प्लेनले ने इंडिया टुडे से इस मामले में कहा था कि डील को लेकर ओलांद बिल्कुल स्पष्ट हैं. उन्होंने डील के वक्त अनिल अंबानी की मौजूदगी को लेकर भारत सरकार से सवाल किए थे. भारत सरकार की ओर से इस मामले में रिलायंस को जबरन थोपा गया था. पहले करार 100 से ज्यादा विमान को लेकर था, लेकिन बाद में भारत सरकार ने 36 विमानों पर सहमति जताई.