नेताजी की जुबान है कि काबू में नहीं रहती. मौके-बेमौके ऐसे बेलगाम हो जाती है कि लोकतंत्र शर्मसार हो जाता है. चंडीगड़ की एक सभा में बोलते वक्त बीजेपी अध्यक्ष गडकरी ऐसे आपे से बाहर हुए कि मर्यादा की सारी सीमाएं तोड़ दी.
लालू-मुलायम पर निशाना साधते हुए गडकरी ने ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया जो लोकतांत्रिक सियासत को शर्मसार कर देने वाली हैं. गडकरी जी खुद इस सवाल पर गौर करें कि क्या सार्वजनिक सभाओं में इस तरह की भाषा का इस्तेमाल क्या एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष को शोभा देता है?
पार्टी कार्यकर्ताओं को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले अध्यक्ष जब खुद इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करेंगे तो सियासत किसी रसातल में जाकर रुकेगी इसका अंदाजा जनता खुद लगा सकती है.