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गैंगरेप में पुलिस कमिश्नर क्यों नहीं जिम्मेदारः हाई कोर्ट

दिल्ली गैंगरेप की घटना पर हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाई है. हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से पूछा है कि घटना की जिम्मेदारी सिर्फ निचले स्तर के अधियारियों, कर्मचारियों पर ही क्यों? बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई?

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नीरज कुमार
नीरज कुमार

दिल्ली गैंगरेप की घटना पर दिल्‍ली हाई कोर्ट ने सख्ती दिखाई है. हाई कोर्ट ने दिल्ली पुलिस से पूछा है कि घटना की जिम्मेदारी सिर्फ निचले स्तर के अधियारियों, कर्मचारियों पर ही क्यों डाली गई? बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या इस घटना के लिए दिल्ली पुलिस कमिश्नर जिम्मेदार नहीं हैं? हाई कोर्ट ने इन तमाम सवालों का दिल्ली पुलिस से जल्द जवाब मांगा है. दिल्ली गैंगरेप मामले में स्टेटस रिपोर्ट सौंपने पहुंची दिल्ली पुलिस को हाई कोर्ट ने जमकर फटकार लगाई.

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हाई कोर्ट ने पुलिस के रवैये पर ही सवाल उठा दिया. हाई कोर्ट ने पूछा है कि इस मामले पर बड़े अधियारियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या इस घटना कि लिए सिर्फ निचले स्तर के अधिकारी, कर्मचारी ही जिम्मेदार थे?

इसके पहले 23 साल की लड़की से गैंगरेप के मामले में बंद कमरे में सुनवाई करने और मीडिया को इसकी रिपोर्टिंग से दूर रखने के फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले को दिल्ली की एक अदालत ने बुधवार को बरकरार रखा.

डिस्ट्रिक्ट सेशन जज आर.के. गाबा ने कहा कि फास्ट ट्रैक कोर्ट के 7 जनवरी के आदेश में कुछ भी 'अनुचित' नहीं था. जज ने कहा कि मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट ना सिर्फ अपने अधिकारों की सीमा में थी, बल्कि रेप और इससे जुड़े मामलों की कार्यवाही के लिए आईपीसी की धारा 327 (2) के प्रावधानों को लागू करने के लिए बाध्य थीं.

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जज ने कहा कि हकीकत तो यह है कि उनके अदालत रूम में बड़ी संख्या में भीड़ थी जिसके कारण विचाराधीन कैदियों को भी लाने की जगह नहीं बची थी, जिस वजह से अदालत को यह आदेश देना पड़ा.

अदालत ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 327 (2) के तहत पीठासीन अधिकारी के लिए रेप और संबंधित अपराधों के मामलों में बंद कमरे में सुनवाई करना अनिवार्य होता है.

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