केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी 'स्वच्छ गंगा' अभियान का महज 63 फीसदी रकम ही खर्च हो पाया है. यही नहीं, इस अभियान के तहत ही बनाए गए क्लीन गंगा फंड के तहत उपलब्ध पूरी राशि बैंकों में पड़ी है और इसमें से एक रुपया भी नहीं निकाला गया है. सीएजी की एक रिपोर्ट में यह जानकारी दी गई है.
सीएजी की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2014-15, 15-16 और 16-17 में क्रमश: 2,133.76 करोड़, 422.76 करोड़ और 59.28 करोड़ रुपये की रकम खर्च नहीं पाई थी. रिपोर्ट के अनुसार क्लीन गंगा फंड की पूरी राशि (31 मार्च, 2017 तक 198.14 करोड़ रुपये) राशि बैंकों में ही पड़ी है. असल में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के लिए कार्ययोजना को अभी अंतिम रूप ने मिल पाने के कारण यह रकम खर्च नहीं हो पाई है. यही नहीं, आइआइटी के कंसोर्शियम के साथ एक समझौते पर दस्तखत होने के साढ़े छह साल बीत जाने के बाद भी लांग टर्म कार्य योजनाओं को भी अंतिम रूप नहीं दिया जा सका.
सीएजी के अनुसार इसकी वजह से नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी के नोटिफिकेशन के 8 साल बीत जाने के बाद भी स्वच्छ गंगा के तहत रिवर बेसिन मैनेजमेंट प्लान तैयार नहीं किया जा सकेगा.
देरी की वजह से बढ़ी लागत
रिपोर्ट के अनुसार, 46 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में से 26 को लागू करने में देरी, जमीन उपलब्ध न होने, धीमी प्रगति आदि की वजह से लागत बढ़कर 2,710.14 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है. रिपोर्ट के अनुसार बिहार, झारखंड, उत्तराखंड, यूपी और पश्चिम बंगाल में ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम काफी धीमी गति से चल रही है. इनकी निगरानी और मूल्यांकन का काम भी लक्ष्य से काफी पीछे है. सीएजी ने सुझाव दिया है कि नमामि गंगे आयोग को वार्षिक कार्य योजना तैयार करनी चाहिए.
गंगा को सबसे अधिक गन्दा करने वाले शहरों में कोलकाता, वाराणसी, कानपुर, इलाहाबाद, पटना, हावड़ा, हरिद्वार और भागलपुर शामिल है. यही 10 शहर गंगा में 70% प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं.