यह देश में अपनी तरह का दूसरा मामला है. एक दंपती ने डाउन सिंड्रोम वाली एक बच्ची को गोद लेने के लिए अमेरिका में अच्छे करियर को छोड़कर भारत लौटने का फैसला किया. डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को देश में गोद लेने का इससे पहले एक ही वाकया हुआ है. तब भोपाल के एक शख्स ने ऐसे बच्चे को गोद लेकर सिंगल पैरेंट बनने का फैसला किया था. उसी शख्स से मिली प्रेरणा से इस दंपति ने भी ऐसी स्पेशल बच्ची को गोद लिया है.
गाजियाबाद के रहने वाले दंपति- कविता (28 वर्ष) और हिमांशु (30 वर्ष) ने बीते साल 20 महीने की बच्ची 'वेदा' को भोपाल में गोद लिया. टेक जॉब के लिए हिमांशु कुछ साल पहले अमेरिका गए थे. कुछ ही समय बाद कविता भी पति के पास अमेरिका चली गईं. अमेरिका में इस दंपति को डाउन सिंड्रोम वाली एक बच्ची का पता चला तो उन्होंने उसे गोद लेने का फैसला किया. लेकिन अमेरिकी अधिकारियों ने उनके इस आग्रह को नामंजूर कर दिया. दंपति को शीघ्र ही पता चला कि अमेरिका का कानून गैर-नागरिकों को बच्चों को गोद लेने की इजाजत नहीं देता.
गोद लेने के लिए छोड़ा अमेरिका
कविता और हिमांशु ने ऐसे ही किसी बच्चे को गोद लेने के लिए फिर भारत में कुछ एनजीओ से संपर्क किया. भोपाल स्थित एक एनजीओ ने दंपति को बताया कि यह तभी संभव हो सकता है कि जब वह भारत आकर कम से कम दो साल यहां रहें. यह जानने के बाद हिमांशु और कविता ने अमेरिका से भारत लौटने का फैसला किया. इसके लिए उन्होंने इसकी भी परवाह नहीं की कि अमेरिका में अच्छे भविष्य की संभावनाओं पर असर पड़ेगा. हिमांशु और कविता ने गाजियाबाद लौटने के बाद भोपाल स्थित एनजीओ से संपर्क किया तो उन्हें डाउन सिंड्रोम वाली बच्ची वेदा का पता चला. एनजीओ ने औपचारिकताएं शुरू कीं और दंपति ने भोपाल जाकर पहली बार वेदा को देखा.
कविता के मुताबिक पहली नजर में ही उन्हें वेदा बहुत प्यारी लगी. इतनी मासूम, इतनी पवित्र, जिसकी कोई तुलना नहीं की जा सकती. हिमांशु और कविता सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद वेदा को साथ ले आए. वेदा जब तीन महीने की थी तो उसे मध्य प्रदेश में रेलवे ट्रैक पर बेसहारा छोड़ दिया गया था. कुछ लोगों ने उसे रोते देखा तो पुलिस को सूचना दी. पुलिस ने उसे भोपाल में दिव्यांग बच्चों के शेल्टर होम में पहुंचाया.
गोद लेने से पहले कविता ने ली खास ट्रेनिंग
वेदा के जिंदगी में आने के बाद हिमांशु और कविता को तो मानों खुशियों का खजाना मिल गया. वेदा भी अपने नए घर में बहुत खुश है. डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों की कैसे देखभाल की जाती है, इसके लिए कविता ने खास तौर पर ट्रेनिंग भी ली.
कविता ने कहा, "देश में ऐसे बच्चों को गोद लेना आसान है और उनकी देखभाल भी कोई मुश्किल नहीं है. बस कुछ बातों का नियमित तौर पर ख्याल रखना होता है. ऐसे बच्चों को दिल की समस्याएं होती हैं, लेकिन भगवान की कृपा से वेदा को ऐसी कोई समस्या नहीं है."
वेदा को बैठने और खड़े होने के लिए नियमित योग और फिजियोथेरेपी की जरूरत होती है. हिमांशु बताते हैं कि भोपाल में आदित्य पहले ऐसे शख्स हैं जिन्होंने भारत में डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को गोद लिया और सिंगल पैरेंट बने. उन्हीं से प्रेरणा मिली.
हिमांशु ने बताया, "जब वेदा को पहली बार घर लेकर आए तो नोटिस किया कि वह हर चीज को महसूस करने के लिए जीभ का सहारा लेती है. तब हमें अहसास हुआ कि उसकी आंखों की रोशनी में दिक्कत है. हम उसे डॉक्टर के पास ले गए. डॉक्टर ने उसे चश्मा दिया."
कविता और हिमांशु ने युवा लोगों से आग्रह किया कि जो आर्थिक रूप से मजबूत हैं उन्हें डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों को गोद लेने के लिए आगे आना चाहिए, जिससे कि उन्हें वो जिंदगी मिल सकें जिसके वे हकदार हैं.
नोएडा के एक अस्पताल में बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. प्रियंका का कहना है, "भारत में डाउन सिंड्रोम वाले बच्चे को गोद लेना अन्य देशों की तरह मुश्किल नहीं है. भारत में ऐसे बच्चों की देखभाल के लिए अमेरिका की तरह खास सोसायटीज की जरूरत नहीं है. ऐसे बच्चों को नियमित व्यायाम, अच्छी डाइट और नियमित चेकअप की जरूरत होती है.
डाउन सिंड्रोम है क्या?
डाउन सिंड्रोम एक आनुवंशिक या क्रोमोसोम से जुड़ी जटिलता है. ये शरीर में क्रोमोसोम्स का अतिरिक्त जोड़ा बन जाने से होती है. सामान्य रूप से शिशु 46 क्रोमोसोम के साथ पैदा होते हैं. 23 क्रोमोसोम का एक सेट शिशु अपने पिता से और 23 क्रोमोसोम का एक सेट वह अपनी मां से ग्रहण करता है. डाउन सिंड्रोम वाले शिशु में एक अतिरिक्त क्रोमोसोम आ जाता है, जिससे उसके शरीर में क्रोमोसोम्स की संख्या बढ़कर 47 हो जाती है. यह आनुवंशिक तब्दिली शारीरिक विकास और मस्तिष्क के विकास की गति को धीमा कर देती है.