दक्षिण भारत में बीजेपी का कमल मुरझाने लगा है. विधानसभा चुनाव से पहले येदियुरप्पा की कर्नाटक जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों मिलकर बीजेपी का सूपड़ा साफ करने के प्लान पर लग गए हैं और देश की विपक्षी पार्टी को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है.
भाजपा ने अच्छी तरह जान लिया है कि जनता दल-सेक्युलर के साथ कांग्रेस पूरे राज्य में उसकी प्रबल प्रतिद्वंद्वी है. दोनों पार्टियां राज्य के कुछ हिस्सों में चुनौती पेश कर रही हैं.
इससे परे भाजपा की गतिविधि से यही पता चलता है कि उसे सबसे ज्यादा चिंता केजेपी की है. भाजपा के ही मुख्यमंत्री रह चुके बी.एस. येदियुरप्पा ने इस पार्टी को खड़ा किया है.
केजेपी शायद ही एक भी सीट जीत पाए, लेकिन 225 सदस्यों वाली विधानसभा के लिए 224 सीटों के चुनाव में वह भाजपा की अभिलाषाओं पर पानी फेरने का दम रखती है. विधानसभा में एक सदस्य मनोनीत होते हैं.
नुकसान टालने की कार्रवाई से बचने के लिए भाजपा प्रत्याशियों का चुनाव करने में इंतजार करने के मूड में है, क्योंकि पार्टी को यह नहीं पता कि कौन उसका दामन छोड़ केजेपी चला जाए.
अभी तक येदियुरप्पा तीन मंत्रियों और 10 विधायकों को अपने पाले में करने में सफल रहे हैं. कम से कम तीन और मंत्री और कई विधायकों के भाजपा को बाय कहने की संभावना जताई जा रही है. पार्टी का साथ छोड़ने वालों को इसके दोबारा सत्ता में आने का भरोसा नहीं है.
कुछ मंत्री और भाजपा विधायक तो कांग्रेस से टिकट पाने की फिराक में घूम रहे हैं. ऐसे लोगों को लग रहा है कि भाजपा के हाथों से सत्ता कांग्रेस के हाथों में जा सकती है.